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कांग्रेस: नैरेटिव बनाने का शोर, ज़मीन पर कमज़ोर

-बिहार की शर्मनाक हार -वोट चोरी और चुनाव आयोग के पीछे अपनी कमजोरी नहीं छिपा सकती कांग्रेस

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Congress (फोटो-सोशल मीडिया)

शादाब अहमद

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार ने कांग्रेस की पुरानी कमजोरियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने वोट चोरी, बेरोजगारी, पलायन, महंगाई, किसान संकट से लेकर सामाजिक न्याय तक कई बड़े नैरेटिव खड़े किए, लेकिन ये मुद्दे वोट में तब्दील नहीं हो पाए। कारण साफ है कि जमीनी संगठन का ढांचा लगभग नदारद है।

दरअसल, बिहार में ब्लॉक, बूथ स्तर पर संगठन न होने से कांग्रेस चाहकर भी भाजपा की रणनीति से मुकाबला नहीं कर पाई। कांग्रेस का संगठन पिछले कई सालों से जड़ता का शिकार है। जिला अध्यक्षों से लेकर ब्लॉक और मंडल पदाधिकारियों तक, पार्टी का ढांचा या तो निष्क्रिय है या अधूरा है। इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी की नीतियां और संदेश ज़मीन तक पहुंच ही नहीं पाए।

नैरेटिव बनाम बूथ प्रबंधन

कांग्रेस और राजद भले ही चुनावी मुद्दों पर तीखी आक्रामकता दिखा रही थी, लेकिन भाजपा-जेडीयू गठजोड़ के सामने उसकी ज़मीनी मशीनरी बेहद कमजोर साबित हुई।

बीजेपी का बूथ मॉडल- पन्ना प्रमुख, शक्ति केंद्र, माइक्रो-मैनेजमेंट—बिहार में एक बार फिर कारगर रहा। जेडीयू का स्थानीय प्रशासनिक नेटवर्क और सामाजिक समीकरण भी इसमें जुड़ गया। कांग्रेस के पास इनका कोई जवाब नहीं था। कांग्रेस के नेता अपने ही सहयोगी दल राजद से लड़ते रहे।

फिर वही शिकायत

चुनाव के बाद कांग्रेस ने फिर वही शिकायत दोहराई कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर स्टोरी गड़बड़ियां थीं।लेकिन इन गड़बड़ियों को पकड़ने के लिए बूथ स्तर पर सक्रिय टीमें चाहिए होती हैं—जो कांग्रेस के पास नहीं है। बीजेपी और सहयोगी दलों ने हफ्तों तक घर-घर जाकर नाम मिलान किए, जबकि कांग्रेस चाहकर भी यह काम नहीं कर सकी। कई सीटों पर पार्टी यह तक पहचान नहीं पाई कि किन मोहल्लों में वोट कटे या ट्रांसफर हुए।

संगठनहीनता की बड़ी कीमत

कांग्रेस के एक राष्ट्रीय महासचिव ने पत्रिका को बताया कि बिहार के परिणामों ने साफ कर दिया कि सिर्फ बड़े नेताओं के दौरे और सोशल मीडिया अभियानों से चुनाव नहीं जीते जाते।कांग्रेस के पास मुद्दे और माहौल था, लेकिन जनता से संवाद नहीं हुआ। मतदाता केंद्र तक पहुंचने वाले कार्यकर्ता, बूथ स्तर के नेता और लगातार सक्रिय जिला संगठन की अनुपस्थिति ने पार्टी के लिए हार का रास्ता तैयार किया।

अब आगे क्या?

1. नैरेटिव तभी मायने रखता है, जब उसे वोट में बदलने की मशीनरी हो

2. संगठन सृजन के तहत पूरे देश में बूथ कमेटियों का गठन जरूरी

3. मतदाता सूची सत्यापन के लिए समर्पित बूथ टीमें बनाए बिना कांग्रेस हर चुनाव में नुकसान उठाएगी


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