नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने संसद से संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने की सिफारिश की है। इन प्रावधानों के तहत स्पीकर विधायकों को अयोग्य घोषित कर सकता है। सीजेआइ बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने तेलंगाना के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर दल बदल को नहीं रोका गया तो लोकतंत्र कमजोर हो सकता है। पीठ ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को तीन माह में अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि स्पीकर की ओर से अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने की बार-बार देरी की जाती है। इसके कारण कई बार मामले विधानसभा के कार्यकाल की समाप्ति तक भी लंबित रह जाते हैं। इससे दल-बदलू बेखौफ रहते हैं और बचकर निकल जाते हैं।पीठ ने कांग्रेस में शामिल हुए बीआरएस के दस विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी के लिए तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष की आलोचना करते हुए संसद से इन प्रावधानों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। इसी के साथ स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं में तीन माह में लेने के आदेश दिए।
विफल हो जाएगा दसवीं अनुसूची का उद्देश्य
पीठ ने कहा कि संविधान के 52वें संशोधन के तहत दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी। इसमें अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया था ताकि इन्हें देरी का सामना न करना पड़े। ऐसे में अगर अध्यक्ष ही मामलों को लंबित रखते हैं तो दसवीं अनुसूची का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
व्यवस्था की जांच जरूरी
सीजेआइ ने लिखित निर्णय में संसद से अपील की गई कि यह हमारा क्षेत्राधिकार नहीं है फिर भी संसद को विचार करना चाहिए कि दलबदल के आधार पर अयोग्यता के मुद्दे पर निर्णय लेने का महत्वपूर्ण कार्य अध्यक्ष/सभापति को सौंपने की व्यवस्था दलबदल से प्रभावी ढंग से निपटने के उद्देश्य को पूरा कर रही है या नहीं। हमारे लोकतंत्र की नींव और उसे बनाए रखने वाले सिद्धांतों की रक्षा करनी है, तो वर्तमान व्यवस्था को जांचना जरूरी है।
Published on:
01 Aug 2025 12:58 am