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ईको फ्रेंडली गणेश:मिट्टी में घुला बदलाव, प्रकृति में बढ़ा विश्वास

Ganeshotsav's picture is changing with awareness

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Ganeshotsav's picture is changing with awareness

Ganeshotsav's picture is changing with awareness

नरसिंहपुर-पिछले आठ-दस सालों में गणेश उत्सव की तस्वीर बदल गई है। एक समय था जब 90 प्रतिशत से अधिक गणेश प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जाती थीं। इनके विसर्जन से नदिया और तालाब प्रदूषित होतेए जलीय जीवों की जान जोखिम में पड़ती और पानी भी अनुपयोगी बन जाता।
लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। ताज़ा जानकारी के अनुसार बड़ी संख्या लोग अब मिट्टी की प्रतिमाएं चुन रहे हैं। यह बदलाव रातों-रात नहीं हुआ, बल्कि जन.जागरूकता, समाज की समझ और कलाकारों की मेहनत का नतीजा है।
बदलाव की बयार
पर्यावरण संगठनों और मीडिया ने लगातार अभियान चला ईको.फ्रें डली गणेश अपनाओ।धीरे-धीरे श्रद्धालुओं को समझ आया कि मिट्टी की प्रतिमा पानी में घुलकर फि र से धरती में समा जाती है,जबकि पीओपी की मूर्तियां वर्षों तक प्रदूषण फैलाती रहती हैं। इस समझ ने एक पूरी पीढ़ी की सोच बदल दी।
कलाकारों की कहानी
शहर के आजाद वार्ड निवासी मूर्तिकार रवि प्रजापति बताते हैं पहले पीओपी से मूर्ति बनाना आसान और सस्ता था। लेकिन जब जागरूकता आई तो ऑर्डर भी बदलने लगे। शुरू में हमें डर था कि मिट्टी की मूर्तियों से घाटा होगा, पर अब हर साल मांग बढ़ रही है। इस साल हमने 1000 से ज़्यादा प्रतिमाएँ बनाई हैं,सब मिट्टी से। इसी तरह शिल्पकार सीताराम विश्वकर्मा धमना कहते हैं कि शुरुआत में लोग मिट्टी की मूर्ति महंगी बता कर मना कर देते थे। लेकिन हमने हार नहीं मानी। आज ग्राहक गर्व से कहते हैं कि उन्हें बस इको.फ्रेंडली गणेश चाहिए। हमारे लिए यही सबसे बड़ी जीत है।
सामूहिक प्रयास का नतीजा
आज शहरों से लेकर गांवों तक, स्कूलों से लेकर कॉलोनियों तक, जगह-जगह मिट्टी के गणेश बनाए और खरीदे जा रहे हैं। नगरपालिका सीएमओ नीलम चौहान के अनुसार पिछले पांच सालों में पीओपी प्रतिमाओं के विसर्जन में 60 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
मिट्टी के गणेश क्यों खास-
पर्यावरण के अनुकूल-पानी में घुलकर मिट्टी बन जाते हैं।
सांकेतिक महत्व-भगवान गणेश का प्रकृति में विलय।
जलीय जीवन की रक्षा-नदियों में कोई प्रदूषण नहीं।

नरसिंहपुर-पिछले आठ-दस सालों में गणेश उत्सव की तस्वीर बदल गई है। एक समय था जब 90 प्रतिशत से अधिक गणेश प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जाती थीं। इनके विसर्जन से नदिया और तालाब प्रदूषित होतेए जलीय जीवों की जान जोखिम में पड़ती और पानी भी अनुपयोगी बन जाता।
लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। ताज़ा जानकारी के अनुसार बड़ी संख्या लोग अब मिट्टी की प्रतिमाएं चुन रहे हैं। यह बदलाव रातों-रात नहीं हुआ, बल्कि जन.जागरूकता, समाज की समझ और कलाकारों की मेहनत का नतीजा है।
बदलाव की बयार
पर्यावरण संगठनों और मीडिया ने लगातार अभियान चला ईको.फ्रें डली गणेश अपनाओ।धीरे-धीरे श्रद्धालुओं को समझ आया कि मिट्टी की प्रतिमा पानी में घुलकर फि र से धरती में समा जाती है,जबकि पीओपी की मूर्तियां वर्षों तक प्रदूषण फैलाती रहती हैं। इस समझ ने एक पूरी पीढ़ी की सोच बदल दी।
कलाकारों की कहानी
शहर के आजाद वार्ड निवासी मूर्तिकार रवि प्रजापति बताते हैं पहले पीओपी से मूर्ति बनाना आसान और सस्ता था। लेकिन जब जागरूकता आई तो ऑर्डर भी बदलने लगे। शुरू में हमें डर था कि मिट्टी की मूर्तियों से घाटा होगा, पर अब हर साल मांग बढ़ रही है। इस साल हमने 1000 से ज़्यादा प्रतिमाएँ बनाई हैं,सब मिट्टी से। इसी तरह शिल्पकार सीताराम विश्वकर्मा धमना कहते हैं कि शुरुआत में लोग मिट्टी की मूर्ति महंगी बता कर मना कर देते थे। लेकिन हमने हार नहीं मानी। आज ग्राहक गर्व से कहते हैं कि उन्हें बस इको.फ्रेंडली गणेश चाहिए। हमारे लिए यही सबसे बड़ी जीत है।
सामूहिक प्रयास का नतीजा
आज शहरों से लेकर गांवों तक, स्कूलों से लेकर कॉलोनियों तक, जगह-जगह मिट्टी के गणेश बनाए और खरीदे जा रहे हैं। नगरपालिका सीएमओ नीलम चौहान के अनुसार पिछले पांच सालों में पीओपी प्रतिमाओं के विसर्जन में 60 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
मिट्टी के गणेश क्यों खास-
पर्यावरण के अनुकूल-पानी में घुलकर मिट्टी बन जाते हैं।
सांकेतिक महत्व-भगवान गणेश का प्रकृति में विलय।
जलीय जीवन की रक्षा-नदियों में कोई प्रदूषण नहीं।