दमोह. जिला अस्पताल में शवों के साथ प्रबंधन अमानवीय रवैया अपनाए हुए हैं। पोस्टमार्टम के नाम पर शवों को पहले परिसर में बने शव गृह में रखवा दिया जाता है। उसके बाद जब पीएम की बारी आती है तो शव को लगभग एक किमी दूर बनाए गए मर्चुरी में भेजा जाता है।
देखा जाए तो कैज्युअल्टी में मौत की पुष्टी होने के बाद शव को तीन-तीन बार यहां से वहां किया जा रहा है। खासबात यह है कि बुंदेलखंड में यह ऐसा इकलौता जिला अस्पताल हैं, जहां पर शवगृह और मुर्दाघर अलग-अलग बने हुए हैं।
इधर, प्रबंधन शासन की गाइड लाइन के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। अभी तक दोनों को एक जगह बनाए जाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।
-शव वाहन के लिए चंदा कर ले जाने के आ रहे मामले सामने
बेलाताल तालाब के पास दशकों से एक मर्चुरी संचालित है। इसे चीलघर के नाम से भी जाना जाता है। यहां केवल पीएम होता है। पीएम के बाद शवों को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। शव को डॉक्टर्स पुलिस को सौंप देते हैं। पुलिस भी शव परिजनों को सौंपकर चली जाती है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के साथ यहां पर सबसे बड़ी समस्या शव को घर तक ले जाने की होती है। लोगों से चंदा एकत्र कर शव ले जाने के ढेरों मामले सामने आ चुके हैं।
-लावारिस शवों को तीन दिन में ही दफना रहे नपाकर्मी
लावारिश मिलने वाले शवों को लेकर तो शासन की कोई गाइड लाइन ही फॉलो नहीं हो रही है। जिम्मेदारी से बचने के लिए शवों को तीन दिन के भीतर ही दफनाने का काम कराया जा रहा है। नियमों की माने तो २१ दिन तक शव को सुरक्षित रखने का प्रावधान है। इस दौरान यदि शव की शिनाख्त नहीं होती है तो पुलिस अपनी कार्रवाई कर सकती है। लेकिन यहां पर शव तीन दिन तक शव गृह में रखे जाते हैं। इसके बाद उसे पीएम के लिए मुर्चरी भेज दिया जाता है। यहां से पुलिस शव को नगर पालिका के सुपुर्द कर देती है।
-मनमर्जी करा दिया निर्माण, अब जगह की कमी का रोना
अस्पताल में एक दशक पूर्व मनमर्जी से भवन बना दिए गए हैं। खाली जगहों पर आनन-फानन में निर्माण करा देने से अब अस्पताल परिसर में जगह नहीं बची है। लेकिन इस दौरान प्रबंधन को यह ध्यान नहीं आया कि सबसे जरूरी चीज मर्चुरी के लिए जगह छोड़ दी जाए। स्थिति यह है कि शवों को रखने और पीएम के लिए एक नया भवन बनाने परिसर में जगह नहीं बची है।
Updated on:
06 Aug 2025 11:31 am
Published on:
06 Aug 2025 11:29 am