सोशल मीडियाः ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से लॉग आउट कर रहे कंटेंट क्रिएटर्स
नई दिल्ली. कभी 'इन्फ्लुएंसर' कहलाना गर्व की बात थी, लेकिन अब डिजिटल ग्लैमर का यह सपना फीका पड़ने लगा है। लाखों फॉलोअर्स और वायरल वीडियो के बावजूद, अब बड़ी संख्या में कंटेंट क्रिएटर्स इस पेशे से पीछे हट रहे हैं। भारत में 80 लाख से ज्यादा डिजिटल क्रिएटर्स हैं, लेकिन इनमें से केवल 10% ही हर महीने 50,000 रुपए तक की कमाई कर पा रहे हैं। बाकी के लिए यह पेशा अब आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं रहा। 2024 से अब तक 2 लाख से ज्यादा क्रिएटर्स डिजिटल स्पेस से बाहर हो चुके हैं। यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर 1,000 व्यूज पर कभी-कभी 1 डॉलर जितनी कम विज्ञापन दर और ब्रांड डील्स की अनिश्चितता ने कई लोगों को मजबूर कर दिया है कि वे फिर से स्थायी नौकरियों की ओर लौट जाएं। कंटेंट क्रिएटर इकॉनॉमी में ग्लैमर जरूर है, पर स्थायित्व नहीं, और इसी चुनौती का सामना अब ज्यादातर इंफ्लुएंसर कर रहे हैं।
बढ़ती थकान और टूटती हिम्मत
कंटेंट क्रिएटर्स लगातार हाई-क्वालिटी कंटेंट बनाने, ट्रेंड्स को फॉलो करने और फॉलोअर्स से जुड़े रहने के दबाव में मानसिक थकान का सामना कर रहे हैं। लगातार ऑनलाइन रहने और निजी जीवन को साझा करने का भावनात्मक बोझ भी उनके स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।
एल्गोरिद्म और पहचान का संकट
सोशल मीडिया के बदलते एल्गोरिद्म के कारण कंटेंट कब चलेगा और कब नहीं, यह अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है। साथ ही, हर ट्रेंड के पीछे भागने की होड़ में कई क्रिएटर्स अपनी असली पहचान और मौलिकता खो रहे हैं।
क्यों टूट रहा क्रिएटर्स का सपना
1. आर्थिक अस्थिरता:
- घटता विज्ञापन रेवेन्यू
- छोटे क्रिएटर्स को ब्रांड डील्स नहीं मिलना
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा
2. मेंटल हेल्थ पर असर:
- कंटेंट बनाने का लगातार दबाव
- लाइक्स और कमेंट्स की चिंता
- थकान और अनिद्रा
3. एल्गोरिद्म की अनिश्चितता:
- कब कौन-सा कंटेंट चलेगा, तय नहीं
- लगातार पोस्ट करने की मजबूरी
4. प्रामाणिकता की कमी:
- ट्रेंड्स के पीछे भागने से अपनी शैली का नुकसान
5. सीमाएं तय न कर पाना:
-निजी और पेशेवर जीवन में अंतर मिट जाना
-एक साथ कई भूमिकाओं का बोझ
Published on:
06 Aug 2025 12:10 am