
-शहर में कैशलेस सुविधा वाले अस्पतालों की संख्या है काफी कम।
दमोह. निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए इंश्यारेंस पॉलिसी लेकर बैठे लोगों को एक बड़ा झटका लग सकता है। खासतौर पर बजाज अलायंज कंपनी के उपभोक्ताओं के लिए यह बुरी खबर हो सकती है। बताया जाता है कि १ सितंबर से यह कंपनी कैशलेस सुविधा बंद करने जा रही है। अनुमान के तौर पर जिले में इस कंपनी से ५०० से अधिक उपभोक्ता जुड़े हुए हैं। बता दें कि मुख्यालय में ७ से ८ निजी अस्पतालों में कैशलेस सुविधा है। हालांकि निजी अस्पतालों में कम मामलों में ही मरीजों का इलाज कैशलेस कार्ड से किया जा रहा है। अधिकांश मरीजों से शुल्क ही लिए जा रहे हैं।
इधर, पड़ताल में पता चला है कि इंश्योरेंस कंपनियां छोटे अस्पतालों के मामलों में मनमानी कर रही हैं। मोरगंज स्थित संजीवनी हॉस्पिटल के संचालक डॉ. संजीव सिंघई ने बताया कि मरीज को भर्ती करने के बाद इंश्योरेंस कंपनी को ईमेल कर मरीज की हिस्ट्री बतानी पड़ती है। कंपनियां तुरंत जवाब नहीं देती हैं। कई घंटो बाद जवाब आता है कि मरीज भर्ती करने लायक नहीं था। आवेदन रिजेक्ट कर दिए जाते हैं। ऐसे में भर्ती मरीजों के अटैंडरों से बिल भुगतान को लेकर विवाद की स्थिति बन जाती है।
-इन निजी अस्पतालों में है कैशलेस सुविधा
शहर में १६ निजी अस्पताल रजिस्टर्डट हैं। इनमें कैशलेस सुविधा ८ में है। इनमें संजीवनी हॉस्पिटल, पारस हॉस्पिटल, सिटी अस्पताल, अर्थव हॉस्पिटल, आगम हॉस्पिटल, डॉ. पसारी आदि शामिल हैं। मिशन अस्पताल में बड़े स्तर पर कैशलेस सुविधा थी, लेकिन अब यह अस्पताल बंद हो चुकी है।
-२०,००० उपभोक्ताओं ने ले रखी है इंश्योरेंस पॉलिसी
अधिवक्ता अमरदीप मिश्रा ने बताया कि शहर में दर्जनों की संख्या में इंश्योरेंस कंपनियां संचालित हो रही हैं। इनसे जुड़े उपभोक्ताओं की संख्या लगभग २०,००० के आसपास है। वहीं, बजाज अलायंज की बात करें तो लगभग ५०० लोग इस इंश्योरेंस कंपनी से जुड़े होंगे। वही,ं उन्होंने बताया कि उपभोक्ताओ फोरम में वर्तमान में इंश्योरेंस कंपनी से संबंधित १५ प्रकरण लंबित हैं।
यह आ रही परेशानी
-भर्ती करने से पहले इंश्योरेंस कंपनी से लेना पड़ता है एप्रूवल।
-मरीजों की हिस्ट्री, ब्लड रिपोर्ट, एक्सरे, सोनोग्राफी रिपोर्ट आदि की डिटेल भेजना पड़ती है।
-मेल का जवाब देर से मिलता है। अधिकांश मामलों में अप्रूवल खारिज कर दिया जाता है।
-ऐसी स्थिति में अटैंडरों व अस्पताल स्टाफ के बीच विवाद की स्थिति बन रही है।
कैशलेस सुविधा न होने से उठानी पड़ रही परेशानी
केस-१
वैशाली नगर निवासी हरिश्चंद्र मिश्रा ने ६ दिसंबर २०२२ को फैमिली ग्र्रुप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। १८ अप्रेल २०२२ को सीने में दर्द होने के चलते उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। जबलपुर के निजी अस्पताल में उन्होंने एंजियोप्लास्टी कराई। १९ अक्टूबर को बीमा कंपनी ने क्लेम रिजेक्ट कर दिया था। पीडि़त ने फोरम की शरण ली। आयोग ने इंश्योरेंस कंपनी की इस मामले में सेवा में कमी पाते हुए २५ जून २०२५ को पीडि़त पक्ष को दो लाख रुपए इलाज राशि व १३ हजार का हर्जाना देने का आदेश दिया था।
केस-२
सिंधी कैंप निवासी प्रेम कुमार आहूजा ने २७ जून २०१९ को इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। पीडि़त को हार्ट अटैक की शिकायत हुई। उन्होंने नासिक के निजी अस्पताल में अपना इलाज कराया। इस मामले में बीमा कंपनी के समक्ष पीडि़त ने इलाज शुल्क के लिए क्लेम किया, लेकिन बीमा कंपनी ने क्लेम देने से इनकार कर दिया। पीडि़त ने आयोग की शरण ली। आयोग ने कंपनी की सेवा में कमी पाई और दो लाख बारह हजार रुपए का इलाज खर्च देने का आदेश दिया है।
Published on:
31 Aug 2025 11:51 am
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