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सम्पादकीय : अवसाद में आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक

बड़ी चिंता यह भी कि समय पर नियंत्रण नहीं करने की वजह से बीमारी गंभीर अवसाद का रूप ले लेती है औैर पीडि़त व्यक्ति आत्महत्या करने जैसा घातक कदम उठा लेता है।

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जयपुर

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arun Kumar

Sep 05, 2025

शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी निरंतर देखभाल और जागरुकता की जरूरत होती है। लेकिन चिंता की बात यह है कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं और इनमें भी चिंता और अवसाद अब आम बात होने लगी है। बड़ी चिंता यह भी कि समय पर नियंत्रण नहीं करने की वजह से बीमारी गंभीर अवसाद का रूप ले लेती है औैर पीडि़त व्यक्ति आत्महत्या करने जैसा घातक कदम उठा लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह तथ्य चिंताजनक है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2021 में 7.27 लाख लोगों ने आत्महत्या की जो वैश्विक मृत्यु दर का 1.1 प्रतिशत है। इनमें भी 15 से 29 आयु वर्ग के युवाओं की मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण आत्महत्या है। भारत में यह स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां युवाओं और महिलाओं में आत्महत्या की दुष्प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है।
भारत में युवाओं में आत्महत्या की दुष्प्रवृत्ति के पीछे यों तो कई सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारक हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या की दर में 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। शैक्षणिक दबाव, बेरोजगारी, प्रेम व विवाह संबंधों में विफलता, सामाजिक अपेक्षाओं का बोझ और नशे की लत इनमें प्रमुख कारण हैं। इन कारणों के अलावा घरेलू हिंसा, जाति-आधारित उत्पीडऩ, और आर्थिक तंगी भी युवाओं को इस घातक कदम की ओर धकेलती हैं। देखा जाए तो ये तमाम कारक कहीं न कहीं व्यक्ति को अवसाद में धकेलने का काम करते हैं। बड़ी चिंता यह भी है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हमारे यहां प्रति एक लाख लोगों पर सिर्फ 0.3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं, और मानसिक स्वास्थ्य पर कुल स्वास्थ्य बजट का मात्र 1 से 2 प्रतिशत खर्च होता है। ग्रामीण और छोटे शहरों में यह सुविधा और भी सीमित है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च बमुश्किल तीन से चार रुपए तक है जबकि विकसित देशों में यह खर्च प्रति व्यक्ति 65 डॉलर तक है। सामाजिक कारकों जैसे घरेलू हिंसा, पितृसत्तात्मक दबाव, और लैंगिक भेदभाव के कारण महिलाएं मानसिक तनाव का अधिक शिकार होती हैं। इसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है, क्योंकि महिलाएं परिवार की भावनात्मक और सामाजिक धुरी होती हैं।
भारत में बढ़ती आत्महत्याओं और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ हेल्पलाइन सेवाओं का विस्तार, और मनोचिकित्सकों की संख्या भी बढ़ाना जरूरी है। आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, और घरेलू हिंसा जैसे संरचनात्मक कारणों को संबोधित करना होगा। सरकार, समाज, और परिवारों को मिलकर संकट का समाधान निकालना होगा।