
रेल आधारित मिसाइल प्रणाली को सेना में शामिल करने की तैयारी कर भारत ने सामरिक क्षमता के मामले में एक बार फिर दुनिया को चौंका दिया है। रोड मोबाइल अग्नि-प्राइम को पहले ही सेना में शामिल किया जा चुका है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रणनीतिक बल कमांड (एसएफसी) ने संयुक्त रूप से रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर से अग्नि-प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया, जो देश की सामरिक क्षमता का नया रूप है। यह पहली बार है जब भारत ने ट्रेन की पटरी से मध्यम दूरी की 2000 किलोमीटर रेंज वाली यह उन्नत मिसाइल दागी। दुनिया देख रही है कि रेल पर सवार यह ‘अग्नि’ दुश्मन को कंपाने वाली साबित होगी।
यह गर्व का विषय ही है कि दुनिया में रेल-आधारित मिसाइल लॉन्च सिस्टम विकसित करने वाले देशों में रूस, अमरीका, चीन के बाद अब भारत भी शामिल हो गया है। हालांकि उत्तर कोरिया ने भी यह क्षमता हासिल करने का दावा किया है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। रेल-मोबाइल लॉन्चर निश्चित ही दुश्मन का मुकाबला करने में ज्यादा प्रभावी साबित होंगे। खास तौर से पाकिस्तान से सीमा साझा करने वाले प्रदेशों का मजबूत रेल नेटवर्क भारत के लिए इस सिस्टम का प्रभावी रूप से इस्तेमाल करने में मददगार साबित होगा। सामरिक क्षमता में यह वृद्धि न केवल न्यूक्लियर ट्रायड (जल-थल-नभ) की अवधारणा को मजबूत करता है, बल्कि पारंपरिक युद्ध में भी दुश्मनों में डर बैठाने वाला होगा। इसमें दो राय नहीं कि यह परीक्षण भारत को अन्य विकसित देशों के समकक्ष खड़ा कर रहा है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारे प्रयास लगातार जारी हैं। सही मायने में रक्षा में आत्मनिर्भरता ही सुरक्षित रखने का मूल मंत्र है। रक्षा क्षेत्र में भारत की अन्य उपलब्धियां भी इसका प्रमाण हैं, जिनमें अग्नि-5 (5000 किमी रेंज), ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल (रूस के साथ संयुक्त रूप से ) तथा पृथ्वी एयर डिफेंस सिस्टम के बाद राफेल जेट्स के साथ एकीकृत एस-400 शामिल हैं। पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि हमारी सेनाएं भी स्वदेशी हथियारों की लगातार मांग कर रही हैं। रक्षा क्षेत्र में दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भरता कम करने की लंबे समय से जरूरत महसूस की जाती रही है।
यह संतोष का विषय है कि देश को सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास लगातार बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद रेल नेटवर्क की सुरक्षा, साइबर थ्रेट्स जैसी चुनौतियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। अस्थिरता और युद्ध की आशंकाओं से घिरे वैश्विक परिदृश्य में अब वक्त आ गया है जब भारत, रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उत्पादन के नए मानक स्थापित करे। यह तभी संभव है जब हम तकनीकी दृष्टि से स्वावलंबी बनें। विदेशी तकनीकों पर अधिक निर्भरता किसी भी देश के लिए ठीक नहीं है।
Published on:
26 Sept 2025 08:11 pm
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