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संपादकीय: देश की रक्षा के लिए संकल्प लेने का दिन

आज पूरा देश रेजांग लॉ में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को याद करेगा।

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जयपुर

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ANUJ SHARMA

Nov 18, 2025

आज पूरा देश रेजांग लॉ में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को याद करेगा। 18 नवंबर, 1962 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारत के पराक्रम, बलिदान और अदम्य साहस का जीवंत प्रतीक है जब रेजांग लॉ की बर्फीली चोटियों पर भारतीय सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट के 120 वीर जवानों ने चीन के 1300 सैनिकों को ढेर कर दिया। उन्होंने न केवल अपनी धरती की रक्षा की, बल्कि युद्ध कौशल और जज्बे का ऐसा प्रमाण दिया, जिसे इतिहास सदियों तक गर्व से दोहराएगा। यह वही लड़ाई है जिसमें हमारे जवान अंतिम सांस तक लड़ते रहे लेकिन अपनी सैन्य चौकी नहीं छोड़ी।


रेजांग लॉ दिवस हर नागरिक को यह याद दिलाता है कि हमारी आजादी कितने बलिदानों, कितनी हिम्मत और कितनी कीमत पर सुरक्षित है। आज भी वही जज्बा भारतीय सेना के हर उस जवान में दिखाई देता है, जो हिमालय की जमा देने वाली चोटियों पर चौकसी में लगा है या राजस्थान के तपते रेगिस्तानों में सीमा की सुरक्षा कर रहा है। उनके लिए देश पहले है, बाकी सब बाद में। लेकिन विडंबना यह है कि जब हमारे सैनिक सीमा पर देश की रक्षा में प्राणों की बाजी लगा रहे हैं, तब देश के भीतर ऐसे तत्त्व सक्रिय हैं जो राष्ट्र की सुरक्षा को भीतर से खोखला करने में लगे हुए हैं। ये लोग मामूली पैसों के लालच में या कट्टरपंथी विचारधाराओं से प्रभावित होकर ऐसे नेटवर्क का हिस्सा बन रहे हैं, जो आतंक को बढ़ावा देते हैं। संवेदनशील सूचनाएं लीक करते हैं और आत्मघाती हमलावर तक बन जाते हैं। हाल में उजागर हुए सफेदपोश टेरर मॉड्यूल ने यह साबित कर दिया है कि खतरा सिर्फ सीमा पर नहीं है, वह हमारे बीच भी मौजूद है। ऐसे लोग दिखने में आम नागरिक होते हैं, लेकिन उनकी गतिविधियां देश की जड़ों को कमजोर करती हैं।

यह भीतर का खतरा कहीं ज्यादा खतरनाक इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग हमारे बीच छिपे हुए हैं। इनके कपड़े जरूर सफेद हैं, लेकिन इरादे काले और सोच विध्वंसकारी है। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है। कानून को न केवल उनकी गतिविधियों पर नकेल कसनी होगी, बल्कि नेटवर्क की जड़ों तक पहुंचकर उन्हें खत्म करना होगा। देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालों के लिए सख्ती की नीति ही उपयुक्त है। इसके साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि सुरक्षा केवल सैनिकों के हाथों में नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और राष्ट्र भावना में भी निहित है। अगर अगली पीढ़ी देशभक्ति, राष्ट्र गौरव, संवैधानिक कर्तव्यों और सुरक्षा के महत्त्व को समझेगी, तभी देश सुरक्षित रह सकेगा।


बच्चों को सिखाना होगा कि देशभक्ति केवल युद्धभूमि में दिखाई देने वाला साहस नहीं, बल्कि रोजमर्रा की ईमानदारी, जिम्मेदारी और राष्ट्रहित में लिया गया सही निर्णय भी है। आज वीरों को नमन कर संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भारत की एकता और संप्रभुता को हर हाल में सुरक्षित रखेंगे।