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संपादकीय : शिक्षा से होगा प्रॉक्सी भागीदारी का समाधान

देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में पंचायती राज संस्थाओं में एक तिहाई आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप आज पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी लगभग 46 फीसदी तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन असल में […]

देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में पंचायती राज संस्थाओं में एक तिहाई आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप आज पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी लगभग 46 फीसदी तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन असल में जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है। आरक्षण के तहत मिली कुर्सी पर महिलाएं बैठती हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में उनकी जगह उनके पति, ससुर या अन्य पुरुष रिश्तेदार सत्ता का असली इस्तेमाल करते नजर आते हैं। इस स्थिति को प्रॉक्सी भागीदारी कहा जाता है, जो महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को कमजोर करती है। यह स्थिति मुख्य रूप से महिलाओं की अशिक्षा और समाज में पुरुष प्रधान सोच के कारण उत्पन्न होती है। महिलाओं के चुनाव जीतने के बावजूद उनकी भूमिका सीमित होती है, और उनके अधिकारों का इस्तेमाल अन्य लोग करते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कई बार पंचायत चुनावों में शिक्षा की अनिवार्यता पर विचार किया गया, लेकिन राजनीतिक लाभ और इच्छाशक्ति की कमी के कारण यह प्रस्ताव लागू नहीं हो सका। राजस्थान में वर्ष 2015 में पंचायत चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता को विधेयक के जरिए लागू किया गया था, लेकिन वर्ष 2019 में इसे हटा भी दिया गया।

हाल ही पंचायत राज मंत्रालय ने इस मामले में कदम उठाने की दिशा में एक पहल शुरू की है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर एक सलाहकार समिति का गठन किया गया, जिसने प्रॉक्सी भागीदारी को समाप्त करने के लिए अपने सुझाव दिए हैं। इस समिति ने राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश सहित देश के 14 राज्यों में कार्यशाला कर सुझाव लिए। इनमें प्रमुख रूप से पंचायत प्रतिनिधियों के लिए स्कूली शिक्षा की अनिवार्यता, गोपनीय शिकायतों की व्यवस्था, पुरुष हस्तक्षेप पर रोक और आदेशों का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान शामिल हैं। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे लागू करने के लिए एक ठोस और प्रभावी निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है। यदि इस पहल को सही तरीके से लागू किया जाता है, तो यह न केवल महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें समाज में सशक्त बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित होगा।