Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सम्पादकीय : सभ्यता के मूल उद्देश्य से दूर ले जाते युद्ध के मैदान

इजरायल-फिलिस्तीन का यह संघर्ष दो पक्षों के बीच का विवाद भर नहीं रहा, बल्कि वैश्विक राजनीति, सामरिक गठबंधनों और महाशक्तियों के हितों की ऐसी प्रयोगशाला बन चुका है, जहां इंसानियत बार-बार हार रही है।

2 min read
Google source verification

इजरायल ने गाजा शहर पर कब्जा करने के सैन्य अभियान का पहला चरण शुरू कर दिया है और दुनिया चुप है। इजरायली सैनिकों के योजनाबद्ध जमीनी हमलों के बीच बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी गाजा से पलायन को मजबूर हैं। इजरायल-फिलिस्तीन का यह संघर्ष दो पक्षों के बीच का विवाद भर नहीं रहा, बल्कि वैश्विक राजनीति, सामरिक गठबंधनों और महाशक्तियों के हितों की ऐसी प्रयोगशाला बन चुका है, जहां इंसानियत बार-बार हार रही है। जब हजारों निर्दोष लोग मारे जा रहे हों, लाखों विस्थापित हो रहे हों और पीढिय़ों की उम्मीदें बमों की गूंज में दब रही हों तो यह कहना गलत न होगा कि सभ्यता को दिशा देने वाले मानदंड कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। दुनिया में शक्ति-संतुलन का गणित ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ वाली कहावत को चरितार्थ करता दिख रहा है। ताकतवर के साथ खड़े होने वाला और युद्ध में आहुति देने वाला स्वयं को ‘शांति के नोबेल’ का हकदार समझने लगा है।
इजरायल-फिलिस्तीन के लंबे संघर्ष में यह सवाल नहीं रह गया है कि किसकी गलती ज्यादा या किसका दावा सही है। सवाल यह है कि दुनिया की सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक शक्ति कहलाने वाला अमरीका किस तरह से एकतरफा समर्थन या विरोध कर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में खतरनाक उदाहरण पेश कर रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और स्वयं को ‘युद्ध का हीरो’ घोषित कर दिया है। अमरीका का इजरायल के साथ खड़े होना कोई नई बात नहीं है। दशकों से दोनों देशों के रिश्ते इस तरह गढ़े गए हैं कि अमरीका न केवल इजरायल की सुरक्षा की गारंटी देता है, बल्कि उसके सैन्य अभियानों के लिए राजनीतिक और आर्थिक छत्रछाया भी उपलब्ध कराता है। ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ की कहावत यहां पर सटीक बैठती है। ताकतवर देश अपने हितों और राजनीतिक रणनीतियों के आधार पर न्याय और अन्याय की परिभाषा गढ़ रहे हैं। यह स्थिति सभ्यता की शांति और प्रगति की ओर बढऩे वाली धारा को भी रोकती है।
युद्ध और प्रतिशोध किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं। इतिहास गवाह है कि हर युद्ध ने अधिक हिंसा, अधिक नफरत व विनाश को जन्म दिया है। जरूरत है कि दुनिया के देश मिलकर ऐसे तंत्र खड़े करें, जहां न्याय केवल ताकतवरों का विशेषाधिकार न हो। फिलिस्तीन व इजरायल दोनों की वैध चिंताओं को स्वीकार करते हुए संवाद और समझौते की राह खोजनी होगी। यह तभी संभव है जब महाशक्तियां अपने हितों से ऊपर उठ शांति की राह अपनाएं। अमरीका व इजरायल वाकई लोकतांत्रिक आदर्शों पर विश्वास करते हैं तो उन्हें दिखाना होगा कि न्याय केवल अपने सहयोगियों के लिए नहीं, बल्कि दुश्मनों के लिए भी समान रूप से जरूरी है। सभ्यता के विकास का मूल उद्देश्य इंसान को हिंसा से दूर ले जाना था। आज दुनिया में चल रहे युद्ध आईना दिखा रहे हैं कि हम इसमें विफल हो रहे हैं।