
अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा ने पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाने का खतरा पैदा कर दिया है। अरावली पर्वत शृंखलाएं दिल्ली से लेकर गुजरात और हरियाणा-राजस्थान तक फैली हुई हैं। बरसों से अवैध निर्माण व खनन गतिविधियों ने इन शृंखलाओं का पहले ही खूब क्षरण हो चुका है। दो साल पहले आई वन संरक्षण रिपोर्ट के मुताबिक अरावली का तीस प्रतिशत वन क्षेत्र पिछले कुछ दशकों में ही लुप्त हो चुका है। हर साल इन्हीं कारणों से यहां हरियाली भी घटती जा रही है। यह भी एक तथ्य है कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण और बढ़ते तापमान की बड़ी वजह प्रकृति से किया जा रहा खिलवाड़ ही है।
केंद्र सरकार के पैनल ने अरावली पर्वत शृंखला की जो नई परिभाषा सुप्रीम कोर्ट में पेश की उसे स्वीकार करने से दिल्ली-एनसीआर को रेगिस्तान बनने का नया खतरा पैदा होने की आंशका बन गई है। इस सिफारिश में कहा गया है कि १०० मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाडिय़ों को ही अरावली माना जाएगा। जाहिर है वन क्षेत्र होने के कारण जिन हिस्सों में निर्माण गतिविधियां व खनन पर रोक लगी हुई थी वहां अब न केवल निर्माण बल्कि खनन का रास्ता भी साफ हो जाएगा।
नई परिभाषा राजस्थान की अरावली पर्वतमाला के लिए भी संकट का कारण बन जाएगी। अरावली पर्वतमाला के कई गांवों में तो अवैध खनन के कारण पहाड़ खोखले हो गए हैं और कई जगहों पर तो ये लुप्त ही हो गए। इतना ही नहीं, कहीं वन भूमि पर आबादी पसर गई है तो कहीं सरकारों ने ही नियम-कायदों में गलियां निकालकर उद्योग-धंधों तक की अनुमति दे दी है। नतीजतन भूजल स्तर में गिरावट और जैव विविधता का नाश जैसे खतरे पैदा हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की मंशा निश्चित ही अवैध खनन और निर्माण पर निगरानी की रही है, लेकिन नीतियां तय करते वक्त पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी नहीं हो इसका संबंधित पक्षों को ध्यान रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला भी सबके सामने है जब उसने हरियाणा में वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर बने मकानों को हटाने के निर्देश दिए थे। तब भी कोर्ट ने कहा था कि जंगल की जमीन से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। देशभर में वन भूमि ही नहीं नदी-नालों तक पर अतिक्रमण के जितने भी उदाहरण सामने आते हैं उनमें निगरानी एजेंसियों की ढिलाई की बात ही सामने आती है।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर सबंधित पक्षों को संवेदनशील रवैया अपनाना ही होगा। कहा यही जा रहा है कि नए पैमाने से कई पहाडिय़ां सुरक्षा कवच से बाहर हो जाएंगी। १०० मीटर से छोटी पहाडिय़ों को संरक्षण नहीं मिला तो रेगिस्तान से उडऩे वाली धूल को दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकेगा। प्राकृतिक आपदा ने कभी दुनिया की सबसे सुव्यवस्थित और उन्नत कही जाने वाली सिंधु घाटी सभ्यता तक को तबाह कर दिया था। आपदाएं न आए इसके लिए अरावली की परिभाषा पर पुनर्विचार करना होगा।
Updated on:
02 Dec 2025 03:14 pm
Published on:
02 Dec 2025 12:23 pm
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