
डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा,प्रोफेसर, एमबीएम विवि, जोधपुर- हाल ही दिल्ली के लाल किले के निकट कार बम विस्फोट का होना देश के लिए चिंता का विषय है। इस आतंकी हमले ने न केवल आंतरिक सुरक्षा, अपितु भारत को अपनी विदेश नीति और सामरिक स्थिति पर पुन: विचार करने के लिए विवश किया है। प्रारंभिक जांच से यह स्पष्ट हो रहा है कि यह घटना केवल 'स्लीपर सेल' जैसे आंतरिक स्तर पर काम करने वाले तत्वों की देन नहीं थी, अपितु इसके अंतरराष्ट्रीय संबंध भी समक्ष आ रहे हैं। निसंदेह तुर्की व पाकिस्तान की संभावित भूमिका ने इस हमले को एक व्यापक सुरक्षा चुनौती का रूप दे दिया है।
सुरक्षा विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि तुर्की और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक एवं खुफिया सहयोग पिछले वर्षों में और अधिक सदृढ हुआ है, जिससे आतंकवादी संगठनों को संरक्षण या समर्थन मिलने की आशंका और भी बढ़ जाती है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह गठजोड़ सभी के समक्ष आ भी चुका है। यद्यपि तुर्की ने इन आरोपों का पूर्णतया: खंडन किया है परंतु घटनाओं और साक्ष्यों की शृंखला यह संकेत देती है कि मामलों को सतही तौर पर वर्तमान परिप्रेक्ष में स्वीकार करना उचित नहीं होगा।
वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तान का दृष्टिकोण इस प्रकरण में अपेक्षाकृत और भी अधिक हास्यास्पद किंतु चिंताजनक प्रतीत होता है। पाकिस्तान के कई राजनीतिक और मीडिया चैनल इस विस्फोट को एक साधारण-सी घटना सिद्ध कर भारत की घरेलू राजनीति का हिस्सा बताने का विफल प्रयास कर रहे हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह परोक्ष रूप से उन आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ाता है, जो थोड़े-थोड़े अंतराल में भारत में अस्थिरता फैलाने का प्रयास करते हैं। इन परिस्थितियों में भारत के समक्ष दोहरी चुनौती है। एक ओर उसे आतंकवाद की इस नई अंतरराष्ट्रीय संरचना का सामना करना है और दूसरी ओर उसे एक उत्तरदायी राष्ट्र के रूप में कूटनीतिक स्तर पर सटीक व कड़े कदम उठाने हैं। भारत को तुर्की और पाकिस्तान दोनों के प्रति संतुलित, लेकिन दृढ़ कूटनीतिक रुख अपनाना होगा।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को यह स्पष्ट रूप से रखना चाहिए कि आतंकी गतिविधियों के लिए किसी भी प्रकार की नरमी या दोहरे मानदंड स्वीकार्य नहीं हैं। इसके साथ ही, भारत को पश्चिमी देशों और मध्य पूर्व के उन सहयोगियों के साथ खुफिया साझेदारी को और मजबूत करना चाहिए, जो आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध मिलकर कार्य करते हैं।साथ ही सुरक्षा के स्तर पर भारत को अपने आंतरिक ढांचे को और अधिक सदृढ करने की महती आवश्यकता है। खुफिया एजेंसियों को तकनीकी उपकरणों, साइबर ट्रैकिंग, फॉरेंसिक विश्लेषण और निगरानी के आधुनिक संसाधनों से समय-समय पर सशक्त करना होगा। साथ ही, कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रसार को रोकने के लिए सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर भी व्यापक और दीर्घकालीन कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है। स्थानीय समुदायों के साथ विश्वास-निर्माण, युवाओं को शिक्षित और जागरूक करने के प्रयास, रोजगार के संसाधनों तथा ऑनलाइन कट्टरपंथ को रोकने के लिए कड़े नियम-कानून इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
प्राय: यह देखा गया है कि लंबे समय तक जांच व न्याय व्यवस्था के चलते इस प्रकार के आतंकवादी घटनाओं में लिप्त अपराधी साक्ष्यों के अभाव में कड़ी सजा से छूट जाते हैं। भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस घटना से जुड़े सभी आरोपियों और उनके नेटवर्कों के विरुद्ध निष्पक्ष लेकिन कठोर न्यायिक कार्रवाई तीव्र गति से हो। यह उच्च शिक्षण संस्थानों में कट्टरवाद अपने पैर न पसार सके, इसके लिए प्रयास करने होंगे। संस्थानों को मिलने वाली विदेशी वित्तीय सहायता पर भी पैनी निगाह रखनी होगी कि कहीं यह सहायता राष्ट्र विरोधी शक्तियों को अपने उद्देश्यों को साधने में सहायक तो नहीं हो रही है।
दिल्ली विस्फोट को मात्र एक सुरक्षा चूक नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह आतंकवादी घटना इस ओर संकेत करती है कि आतंकवादी संगठन अब और अधिक अंतरराष्ट्रीय हो रहे हैं और भारत को इस परिदृश्य में अपनी रणनीति को अंतरराष्ट्रीय राजनीति, खुफिया सहयोग व आंतरिक सुरक्षा के मध्य संतुलन बनाकर तदनुसार अनकूलित करना होगा।
Published on:
17 Nov 2025 12:44 pm
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