
पिछले पांच वर्षों में सोने की कीमतें बढ़कर दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। यह करीब 1.20 लाख प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। बाजारों में हाजिर सोना लगभग चार हजार डॉलर प्रति औंस के ऑल टाइम हाई स्तर पर पहुंच गया। वायदा कारोबार में भी इसकी कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची हैं। इस चमकदार पीली धातु की कीमतों में यह अभूतपूर्व बढ़ोतरी दुनिया को हैरान कर रही है।
सोना इस समय निवेशकों का चहेता बना हुआ है और खुदरा ग्राहकों ही नहीं, समर्थ देशों के सेंट्रल बैंक तक इसके दीवाने हो रहे हैं। उनकी बड़ी खरीदारी से बाजार में लगातार तेजी आ रही है। सोने के साथ अर्थशास्त्र की मांग तथा आपूर्ति का नियम हमेशा लागू रहा है। इसकी मांग के मुकाबले में इसकी आपूर्ति बहुत ही कम रहती है क्योंकि दुनिया के गिने-चुने देशों में यह पाया जाता है और इसका खनन होता है। इस समय इसका खनन बहुत कम हो रहा है और इसके भंडार घटते जा रहे हैं। इसकी मांग सारी दुनिया में है। भारत उन देशों में पहले स्थान पर है, जहां सोने की खरीदारी सबसे ज्यादा होती है। यहां राजा हो या रंक, हर किसी की पसंद सोना है। इसलिए ही भारत हर साल औसतन 700 टन सोना खरीदता है जो उसके व्यापार संतुलन को गड़बड़ा देता है। यहां सोने की इतनी ज्यादा खपत का कारण हमारी सामाजिक व्यवस्था भी रही है, जिसमें हम बेटियों के विवाह में सोना-चांदी अपनी हैसियत के अनुसार देते हैं। लेकिन अभी सोना इन ऊंचाइयों पर कई कारणों से पहुंचा हुआ है।
सोने की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि यह संकट का साथी है। महामारी या युद्ध काल में इसका महत्त्व बढ़ जाता है और इसकी मांग भी। कोविड महामारी के समय सारी दुनिया में सोने की मांग और कीमतें भी बढ़ गई थीं। अनिश्चित भविष्य को देखकर लोगों ने बड़े पैमाने पर सोना खरीदा ताकि और बुरा वक्त आने पर इसे बेचकर काम चलाया जा सके।
युद्ध काल में जब सब कुछ अनिश्चित हो जाता है तो सोने की अहमियत बढ़ जाती है। हर बड़े युद्ध में सोने की कीमतें बढ़ने लगती हैं क्योंकि सोना तरल मुद्रा का काम करता है और इसकी सीमाएं नहीं हैं। यह किसी भी देश में और कहीं भी बिक सकता है। इसे ही अंग्रेजी में हेजिंग कहते हैं। आज दुनिया में कई जगह पर युद्ध हो रहे हैं, जिनमें गाजा और यूक्रेन-रूस युद्ध भी है, जिससे सारी दुनिया में तनाव है और कच्चे तेल, गैस, गेहूं वगैरह की सप्लाई बाधित हो गई और कई अर्थव्यवस्थाओं पर संकट आ गया है।
रूस दुनिया में सोने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और वहां से सोना कई देशों में भेजा जाता है। इस समय युद्ध और उस पर लगे प्रतिबंधों के कारण वह विश्व में सप्लाई नहीं कर पा रहा है। मिडिल ईस्ट सोने का सबसे बड़ा बिक्री और खरीदारी का केंद्र है लेकिन वह भी अभी इजरायल-हमास युद्ध के कारण बाधित है। इस समय राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की राजनीति के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी है। वहां मुद्रास्फीति का खतरा मंडरा रहा है और उसकी मुद्रा डॉलर नीचे जाने लगी है। इस वजह से सोने पर दबाव बढ़ गया है।
दरअसल डॉलर की कीमतें गिरने के कारण यूरोप-अमेरिका में निवेशक सोना खरीदने लगे हैं। यह हमेशा होता आया है कि डॉलर की कीमतें गिरते ही निवेशक सोना खरीदते हैं और उसकी कीमतें बढ़ने पर सोना बेचते हैं। अमेरिकी निवेशक अपने देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंतित हैं और वे संकट से निपटने के लिए बचाव चाहते हैं और उसका सबसे बड़ा जरिया सोना है, जिसकी वे खरीदारी कर रहे हैं। मुद्रास्फीति वहां एक बड़ा संकट है। ट्रंप ने हर देश से आयात पर टैरिफ लगाया है, जिससे वहां दवाओं सहित हर चीज महंगी हो गई है। इसके अलावा ऐसा समझा जा रहा है कि अमेरिकी सेंट्रल बैंक जिसे फेड रिजर्व कहते हैं, ब्याज दरों में और कटौती करेगा। इस संभावना से भी सोने की खरीदारी बढ़ी है। इस कारण से भी वहां निवेशक सोने की ओर खिंचे जा रहे हैं ताकि वे आर्थिक रूप से अपना बचाव कर सकें।
दुनियाभर के देश सोना खरीदकर अपने रिजर्व में रखते हैं और इनमें भारत भी शामिल है। पिछले कुछ समय से करीब-करीब सभी समर्थ देशों के सेंट्रल बैंक सोना खरीद रहे हैं। इनमें भारत तो है ही चीन भी है, जो इस समय खुद सोने का सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है। जब से चीन सोने की खरीदारी में उतरा तब से सोने की कीमतें बढ़ने लगीं। भारतीय, जहां सोने के गहनों में निवेश करते हैं, वहीं चीनी लोग अपने पास रखने के लिए। चीन के सेंट्रल बैंक के पास 2280 टन सोना है और वह और भी खरीदारी कर रहा है। वहां की जनता सोने में निवेश करने के लिए बड़े पैमाने पर खरीदारी करती है, जिसके कारण वह कई बार दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक देश बन जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से सोने में खरीदारी का एक कारण इसके इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में बिक्री है। ऐसी स्थिति में सोना रखने की निवेशक को चिंता नहीं होती है और वह निश्चिंत होकर जितना चाहे सोना खरीद सकता है, जो फिजिकल फॉर्म में न होने के कारण भंडारण की समस्या से दूर रहता है। लोग एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ के जरिए घर बैठे सोना खरीदते और बेचते हैं। इससे भी सोने की बिक्री बढ़ी है।
अक्सर यह सवाल पूछा जा रहा है कि सोने की कीमतें कब गिरेंगी। इसका सीधा जवाब यह है कि यह सब अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। भारत में दीपावली जैसे त्योहार और शादियों का मौसम आने से इसमें चमक बरकरार रहेगी। इसलिए इस साल फिलहाल इसकी कीमतें बहुत गिरने की संभावना नहीं रहेगी।
Published on:
09 Oct 2025 04:05 pm
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