सरकारी कामकाज में जवाबदेही को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। समय-समय पर अदालतों की तल्ख टिप्पणियां भी इस संबंध में आती रहती है। अदालती प्रकरणों को लेकर सरकारी सिस्टम में जवाबदेही के इरादे से ही अब विधि विभाग ने साफ कहा है कि किसी अदालती प्रकरण में ऐसी ही लेटलतीफी या लापरवाही के कारण सरकार को केस हारना पड़े अथवा कोर्ट जुर्माना तय कर दे तो संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी होगी।
अदालतों में मुकदमों के अंबार के बीच दिलचस्प बात यही है कि सरकार जिन मामलों में पार्टी है वहां सही तरीके से पैरवी न हो पाने, अदालतों को समय पर जवाब नहीं देने अथवा तलब करने पर अधिकारियों के गैरहाजिर रहने की प्रवृत्ति आए दिन देखने को मिलती है। लापरवाही के इसी आलम के बीच कई बार तो अदालतें पुलिस व प्रशासन के मुखिया यानी मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक तक को भी व्यक्तिश: उपस्थित होने को कह देती हैं। कई मामले तो ऐसे हैं, जिसमें विभागीय अनदेखी सामने आने पर कोर्ट की ओर से सजा, शास्ति और कुर्की के भी आदेश जारी हुए हैं। इससे सरकारी तंत्र की भी खासी जगहंसाई हुई है।
वर्तमान में अलग—अलग कोर्ट में इस प्रकार के सैंकड़ों मामले लंबित हैं। संंबंधित विभाग की ओर से मामलों में तय समय पर उचित कदम नहीं उठाए जाने या विभागाध्यक्ष की ओर से मॉनिटरिंग नहीं होने से ऐसे हालात उत्पन्न हुए हैं। पिछले दिनों ही हाईकोर्ट ने लंबित मामलों में पैरवी को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। हाईकोर्ट ने सरकार से संबंधित मुकदमों की बड़ी संख्या बताते हुए कहा था कि लापरवाही अधिकारियों की वजह से न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे अधिकारियों पर न केवल जुर्माना लगाया, उनकी एसीआर भी खराब की जाए।
कोर्ट की इस नाराजगी के बाद अब राज्य सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए तमाम विभागों को कोर्ट के मामलों में किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरतने के निर्देश दिए हैं। साथ ही इस प्रकार के मामलों के लिए पूर्ण रूप से विभागाध्यक्ष और उनके मातहतों की जिम्मेदारी तय कर दी है। एक परिपत्र जारी कर स्पष्ट किया गया है कि इन मामलों में सरकार हारती है तो उसके लिए प्रभारी अधिकारी या इससे संबंधित कार्मिक जिम्मेदार होंगेे और उनसे इसकी भरपाई की जाएगी।
साथ ही मामलों में तथ्यात्मक रिपोर्ट या जवाब पेश करने में देरी होने पर संबंधित के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। सरकारी विभागों में जहां विधिप्रकोष्ठ बनाने के निर्देश नई बात नहीं है। लेकिन अधिवक्ताओं की नियुक्ति के बाद जब मॉनिटरिंग नहीं होती तो ऐसी स्थिति आना स्वाभाविक है। जिम्मेदारों पर समुचित सख्ती दिखाई जानी चाहिए ताकि न्याय प्रक्रिया में भी अनावश्यक देरी नहीं हो।
- शरद शर्मा
Published on:
17 Apr 2025 02:50 pm