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सड़क दुर्घटना: लापरवाही और रफ्तार का घातक मेल

राजेन्द्र राठौड़, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधानसभा

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जयपुर

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Opinion Desk

Nov 09, 2025

देश की सड़कों अब सिर्फ आवाजाही का माध्यम नहीं रहीं, बल्कि वे देश की विश्वास गति का प्रतीक भी बन चुकी हैं। लेकिन इसी गति ने जीवन की रफ्तार भी छीन ली है। हर दिन सैकड़ों लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं। वर्ष 2024 में भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार ने 43 लाख वाहनों की रिकॉर्ड बिक्री थी यानी हर दिन 12 हजार से अधिक नई गाड़ियाँ सड़कों पर उतर रही हैं। दोपहिया वाहनों की गिनती तो करोड़ों में है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयर्नमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में वाहनों की संख्या वर्ष 2023 में 22.6 करोड़ थी, जिसे वर्ष 2050 तक 50 करोड़ के पार पहुंचने की संभावना है। लेकिन सड़कों की क्षमता और लोगों की यातायात समझ इस रफ्तार के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रही।
इसी का परिणाम है कि देश में विश्व के कुल वाहनों का केवल 1 प्रतिशत है लेकिन सड़क हादसों से होने वाली विश्व की 11 प्रतिशत मौतें हमारे देश में ही होती हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय की ‘सड़क हादसे 2023’ रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 में देश में साल भर में 4.8 लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1.72 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। हर दिन औसतन 474 लोग सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं।
राजस्थान जैसे राज्यों में स्थिति और चिंताजनक है। जयपुर के हरमाडा में बेकाबू डंपर ने 14 जिंदगियों को कुचल दिया। इससे पहले फलौदी में भीषण सड़क हादसे में 15 यात्रियों की मौत हो गई। जोधपुर में निजी बस में आग लगने से 26 यात्रियों की दर्दनाक मौत की खबर ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। राजस्थान उच्च न्यायालय ने सड़क हादसों पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र व राज्य सरकार से त्वरित कदम उठाते हुए हाइवे पर खुली दुकानों को बंद करने, अतिक्रमण हटाने, अवैध रोड कट बंद करने और हाइवे पेट्रोलिंग शुरू करने के लिए आदेश दिए हैं।
भयावह सड़क हादसों के पीछे सबसे बड़ा कारण मानवीय भूल है। तेज रफ्तार, बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के गाड़ी चलाना, शराब पीकर ड्राइविंग करना और ट्रैफिक नियमों को नजरअंदाज करना। सड़कें सुधर रही हैं, वाहन अत्याधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इंसानी व्यवहार में सुधार की गति बेहद धीमी है। आज तो हालात यह हो गए हैं कि पैदल यात्रियों के लिए भी चलने के लिए सड़कें सुरक्षित नहीं हैं और बेतरतीब वाहनों की रेलमपेल से पैदल यात्रियों के समक्ष काफी परेशानी खड़ी हो रही है। फुटपाथों पर दुकानदारों, वाहनों और अतिक्रमणों के कारण लोगों को सड़क पर चलना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। यदि प्रशासन, नीति-निर्माता और नागरिक मिलकर प्राथमिकता दें, तो पैदल चलना सुरक्षित और सम्मानजनक बनाया जा सकता है। यातायात के सार्वभौमिक नियम के अनुसार, पैदल यात्रियों को सामने से आने वाले वाहनों की दिशा में चलना चाहिए ताकि वे ट्रैफिक को देखकर सुरक्षित रह सकें। सड़क के बायीं ओर चलने से पीछे से आने वाले वाहनों से दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है।
इसी संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और एनएचएआई से पूछा है कि क्या भारत में भी अमेरिका की तरह पैदल यात्रियों को सड़क के दायीं ओर चलने का नियम लागू किया जा सकता है? सड़क सुरक्षा केवल सरकारी नीतियों से नहीं, बल्कि जनजागरूकता और व्यक्तिगत जिम्मेदारी से संभव है। केंद्र सरकार ने सड़क सुरक्षा के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए हैं। सड़कों की इंजीनियरिंग को बेहतर बनाया जा रहा है, राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह-जगह फ्लाईओवर का निर्माण किया गया है और दुर्घटना संभावित ब्लैक स्पॉट्स को सुधारने का अभियान जारी है। इन प्रयासों से भले ही कुछ हद तक राहत मिली हो, लेकिन इनका प्रभाव तब तक सीमित रहेगा जब तक सड़क उपयोगकर्ता स्वयं सावधानी नहीं बरतेंगे।
सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक सड़क हादसों में होने वाली मौतों की संख्या को आधा किया जा सके। इसके लिए न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार बल्कि व्यापक सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। लाइसेंस भी केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। बसों में फायर सेफ्टी उपकरण और आपातकालीन द्वार की नियमित जांच होनी चाहिए। ड्राइविंग टेस्ट को कठिन रूप से और नए मानकों पर आधारित बनाना होगा। स्कूल-कोलेज में सड़क सुरक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। सड़कें विश्वास का प्रतीक तब बनेंगी जब उन पर चलने वाला हर व्यक्ति कानून का सम्मान करेगा। तेज रफ्तार लुभाती जरूर है पर एक क्षण की लापरवाही पूरी जिंदगी बदल सकती है।