नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की ओर से की जा रही सख्ती ने नक्सलियों के पैर उखाडऩे शुरू कर दिए हैं। इसे सख्ती का ही नतीजा कहा जाएगा कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने सरकार से वार्ता की पेशकश की है। वार्ता ही किसी समस्या का समाधान कहा जा सकता है। इसलिए वार्ता में कोई बुराई होनी भी नहीं चाहिए। लेकिन सेंट्रल कमेटी ने पत्र जारी कर वार्ता के लिए जो शर्तें रखी हैं उनको तो दबाव बनाने का प्रयास ही कहा जाएगा। इस दबाव की झलक इस बात से भी मिलती है कि नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी शांति वार्ता के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए जनता से समर्थन मांग रही है।
नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की ओर से पिछले दिनों से ‘ऑपरेशन कगार’ चलाया जा रहा है। नक्सली चाहते हैं कि वार्ता से पहले सरकार इस अभियान को रोके, जिसमें 400 से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं। एक तरह से वे चाहते हैं कि आदिवासी क्षेत्रों से सुरक्षा बलों की वापसी की जाए। सब जानते हैं कि सुरक्षा बलों की मौजूदगी से आदिवासी क्षेत्र के लोगों में सुरक्षा का भाव बढ़ा है। स्थानीय सहयोग नहीं मिलने से नक्सली कमजोर होते जा रहे हैं और इनका संगठन भी बिखरता जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि सरकार सशर्त वार्ता के किसी भी प्रस्ताव से सहमत नहीं है। नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार ने पहले ही कई पुनर्वास कार्यक्रम चला रखे हैं। हिंसा का रास्ता छोडक़र ही शांति की बात की जा सकती है। एक तरफ नक्सली सुरक्षा बलों व आम नागरिकों पर हमला कर हिंसक वारदातों को अंजाम देते रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वे वार्ता की पेशकश कर रहे हैं। आदिवासियों के खिलाफ हिंसा का आरोप लगाने वाले नक्सली इस बात को भूल जाते हैं कि हिंसा का माहौल उनकी गैरकानूनी गतिविधियों से ही बढ़ रहा है। देशभर के नक्सल प्रभावित ३८ जिलों में यदि नक्सलियों की गतिविधियों पर अंकुश लगा है तो उसकी वजह सुरक्षा बलों का सक्रिय रहना ही है। छत्तीसगढ़ में तो नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार लोन वर्राटू (घर वापस आइए) अभियान तक चला रही है, जिसके सार्थक नतीजे निकले हैं।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास को गति देने के साथ-साथ अन्य नक्सलियों को भी मुख्यधारा में लाने के प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है। हथियार थामे नक्सलियों को भी यह समझना होगा कि हिंसक राह छोड़े बिना वार्ता की उम्मीद नहीं की जा सकती। शांतिपूर्ण समाधान के लिए सरकार व नक्सली संगठन दोनों को अपने-अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे। इतना ही नहीं समय-समय वार्ताओं के दौरान होने वाले समझौतों की समय पर पालना भी सुनिश्चित करनी होगी। उम्मीद है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित दौरे से बातचीत की प्रक्रिया को नई दिशा मिलेगी।
Published on:
03 Apr 2025 09:15 pm