दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाला समूह ब्रिक्स इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के निशाने पर है। ट्रंप कई मौकों पर ब्रिक्स की आलोचना कर चुके हैं। रियो-डी-जेनेरो में आयोजित ब्रिक्स नेताओं की ताजा शिखर बैठक के बाद ट्रंप के स्वर इस हद तक तल्ख हो गए हैं कि उन्होंने ब्रिक्स देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है। इससे पहले उन्होंने जनवरी में 100 प्रतिशत टैरिफ की धमकी दी थी। इतना ही नहीं उन्होंने संगठन में शामिल होने की मंशा रखने वाले देशों को भी धमकाया है कि अगर वे ब्रिक्स का हिस्सा बनते तो उन्हें भी अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।
सवाल यह है कि ब्रिक्स को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति इतने असहज क्यों हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ब्रिक्स देशों द्वारा अमेरिका की टैरिफ नीति की आलोचना किए जाने के कारण ट्रंप ब्रिक्स को टारगेट कर रहे हों। पिछले एक दशक में जिस अप्रत्याशित ढंग से ब्रिक्स के सदस्य देशों की संख्या में इजाफा हुआ है, उससे अमेरिका की चिंता भी बढ़ गई है।
अमेरिका की पूंजीवादी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में डॉलर को हमेशा हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अहम माध्यम होने के कारण दशकों से दुनिया के सेंट्रल बैंक फॉरेन रिजर्व के रूप में डॉलर को जमा रखते हैं।
डॉलर की इसी धार और साख के चलते अमेरिका किसी भी तरह के तनाव व संघर्ष के समय प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अलग-थलग कर उसे संकट में डाल देता है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी यही हुआ है। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाकर उसे स्विफ्ट बैंकिंग सिस्टम से अलग कर दिया।
परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार के संचालन में रूस की मुश्किलें बढ़ गईं। रूस की स्थिति को देखकर दुनिया के बाकी देश भी डॉलर से भय खाने लगे। अमेरिकी प्रतिबंधों से व्यथित रूस और चीन जैसे बड़े देश अमेरिका की इस तथाकथित ‘डॉलर डिप्लोमेसी’ से निपटने के विकल्प तलाशने लगे।
सच तो यह है कि अमेरिकी प्रतिबंधों से परेशान होकर ऐसा रूस और चीन ने ही नहीं किया, बल्कि दुनिया के कई दूसरे देश भी वैश्विक व्यापार में विविधता लाने के लिए डॉलर का विकल्प तलाश रहे हैं। ईरान भी ब्रिक्स मुद्रा की बात कर रहा है। चीन भी डॉलर पर निर्भरता कम करने और चीनी करेंसी के अंतरराष्ट्रीयकरण पर जोर दे रहा है। पिछले साल रूस (कजान) में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स करेंसी को लेकर व्यापक चर्चा हुई।
सम्मेलन की समाप्ति पर जारी घोषणा पत्र में सदस्य देशों द्वारा द्विपक्षीय कारोबार में स्थानीय मुद्रा को प्राथमिकता देने की बात कही गई, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। एक नया भुगतान तंत्र बनाने पर सहमति जरूर बनी है। उधर ट्रंप को अमेरिका के आर्थिक साम्राज्यवाद की चूलें हिलती हुई दिखाई देने लगी हैं।
दूसरा, हाल के वर्षों में जिस आश्चर्यजनक तरीके से ब्रिक्स देशों के आपसी व्यापार में उछाल आया है, उससे भी ट्रंप की पेशानी में बल पड़ने लगे हैं। 2017-2022 के दौरान ब्रिक्स देशों के बीच 422 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, जो पहले की तुलना में 56 प्रतिशत अधिक है। ऐसे में ट्रंप का मानना है कि ब्रिक्स की स्थापना अमेरिका को नुकसान पहुंचाने और डॉलर को विस्थापित करने के लिए की गई है।
तीसरा, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुस्ती और डॉलर के गिरने से भी ट्रंप परेशान हैं। जनवरी 2025 से अब तक डॉलर की कीमत में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। यह 1973 के बाद पहले छह महीनों के भीतर होने वाली सबसे तेज गिरावट है।
चौथा, ब्रिक्स का विस्तार भी भू-राजनीतिक निहितार्थों को साधने का सामर्थ्य रखता है। यही वजह है कि ट्रंप ब्रिक्स को टारगेट करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। जिस तरह से ट्रंप टैरिफ के नाम पर दुनिया को धमका रहे हैं और दुनिया के देश वैश्विक व्यापार में विविधता लाने के लिए विकल्प तलाश रहे हैं, उसे देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर ट्रंप की टैरिफ नीति पर भी सवाल उठने लगे हैं। ब्रिक्स देश अमेरिकी नीतियों की आलोचना कर रहे हैं। ब्रिक्स बैठक की मेजबानी करने वाले ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा ने सख्त तेवर दिखाए हैं। उन्होंने ट्रंप की धमकी को सिरे से खारिज कर उन्हें दो टूक कह दिया है कि अब दुनिया बदल चुकी है और हमें कोई सम्राट नहीं चाहिए।
सच तो यह है कि ब्रिक्स विश्व की 45 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया के सकल घरेलू उत्पादन में 25 प्रतिशत से अधिक का योगदान ब्रिक्स देशों का है। 47 प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन अकेले ब्रिक्स देश करते हैं। ऐसे में अगर ब्रिक्स देशों की ओर से वैश्विक व्यापार में डॉलर के उपयोग में कमी का संकल्प लिया जाता है तो यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा। लेकिन हाल-फिलहाल ब्रिक्स देश जिस भू-राजनीतिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं, उसे देखते हुए इस बात की संभावना कम ही है कि ब्रिक्स करेंसी जल्द ही डॉलर को चुनौती देने की स्थिति में होगी।
Updated on:
24 Jul 2025 03:03 pm
Published on:
24 Jul 2025 12:01 pm