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Bihar Elections 2025 : बढ़-चढ़ कर वोटिंग करती हैं महिलाएं लेकिन एमएलए सिर्फ 26, क्या है बड़ा कारण

2020 के विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों का टर्नआउट पुरुषों से कहीं ज्यादा था।

2 min read

पटना

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Ashish Deep

Sep 25, 2025

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Bihar Vidhan Sabha में महिला प्रतिनिधि 10 फीसदी के आसपास हैं। (फोटो : @Bihar VS)

बिहार विधानसभा में आधी आबादी का रिप्रेजेंटेशन काफी कम है। 243 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ 26 विधायक हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 370 महिलाएं लड़ी थीं। और ज्यादा चौकाने वाला तथ्य यह है कि राज्य की 45 विधानसभा सीट ऐसी हैं, जिन पर अब तक एक भी महिला विधायक चुनाव नहीं जीतीं। ये सीटें 8 जिलों में फैली हैं। यह स्थिति तब है जब दो दशक से नीतीश कुमार सीएम हैं और महिलाएं उनकी साइलेंट वोटर मानी जाती हैं।

2020 में बढ़-चढ़ कर महिलाओं ने की थी वोटिंग

इनमें मुजफ्फरपुर, दरभंगा जैसे बड़े जिलों में 16 सीटों पर आज तक कोई महिला विधायक नहीं जीती। जबकि 2020 के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी मतदान प्रतिशत के लिहाज से पुरुषों से कहीं ज्यादा रही। महिलाओं का मत प्रतिशत 63% और पुरुषों का 55%। इसके बावजूद उन्हें प्रदेश की राजनीति में हिस्सेदारी नहीं मिल रही।

क्या है जनसंख्या अनुपात

देश के रजिस्ट्रार जनरल की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में 1000 लड़कों पर 891 लड़कियां हैं। 2020 में यह आंकड़ा 964 था। इससे पहले 2021 में घट गया था और 908 पर आ गया था। वहीं 2022 में और गिरावट दर्ज हुई।

किस जिले में कितनी सीटें
मुजफ्फरपुर8
दरभंगा8
समस्तीपुर8
पूर्वी चंपारण6
शिवहर1
सीतामढ़ी3
पश्चिम चंपारण4
मधुबनी7

राजनीतिक दलों की टिकट नीति

जानकार बताते हैं कि इस स्थिति के पीछे सबसे बड़ा कारण राजनीतिक दलों की टिकट नीति है। स्थानीय स्तर पर महिला कार्यकर्ता और नेताओं की कमी नहीं है। कई बार वे अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ भी रखती हैं, लेकिन जब टिकट बांटना होता है तो दल जातीय समीकरण, पैसा और बाहुबल जैसी प्राथमिकताओं को तरजीह देते हैं। महिला नेताओं को ‘सुरक्षित’ सीटों पर उतारने का जोखिम भी दल नहीं उठाते। यही वजह है कि दशकों से महिलाएं चुनाव लड़ने के बावजूद जीत दर्ज नहीं कर पा रही हैं।

बिहार की सियासत में जाति हावी

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा हावी रहा है। इसी कारण दल आधी आबादी को तवज्जो नहीं दे रहे। मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा की सीटों का उदाहरण बताता है कि यहां पुरुष वर्चस्व इतना मजबूत है कि दलों ने महिलाओं को चुनाव लड़ाने में गुरेज किया। राष्ट्रीय स्तर पर महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद भी राज्य की राजनीति में जमीनी हकीकत नहीं बदली है।