Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘लालू यादव को परिस्थितियों ने बनाया था CM…’ RJD की हार से भड़के शिवानंद तिवारी ने खोले कई पुराने राज

लालू प्रसाद यादव के पुराने साथी शिवानंद तिवारी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के बाद लालू परिवार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए भाजपा के बिहार में बढ़ते वर्चस्व, लालू यादव की राजनीति पर टिप्पणी की है।

3 min read
Google source verification

पटना

image

Anand Shekhar

Nov 17, 2025

शिवानंद तिवारी। फोटो सोशल साइट फेसबुक

बिहार विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद से राज्य की सियासत में सबसे अधिक चर्चा लालू यादव के परिवार की हो रही है। एक ओर जहां लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने परिवार और राजनीति छोड़ दी, वहीं दूसरी और राजद के पुराने और वरिष्ठ नेता लगातार लालू यादव परिवार पर हमलावर हैं। इसी कड़ी में वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व RJD उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने एक लंबी और बेहद तीखी फेसबुक पोस्ट लिखी। तिवारी ने इस पोस्ट में न सिर्फ बिहार चुनाव को ऐतिहासिक मोड़ बताया, बल्कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राजनीतिक सफ़र और निर्णयों पर खुलकर टिप्पणी भी की।

लालू को परिस्थितियों ने बनाया था मुख्यमंत्री- शिवानंद तिवारी

शिवानंद तिवारी ने 1990 के घटनाक्रम का विस्तृत वर्णन किया, जिसमें उन्होंने बताया कि लालू का मुख्यमंत्री बनना व्यक्तिगत करिश्मे का परिणाम नहीं, बल्कि दंगों, जन असंतोष, राजनीतिक समीकरण और शीर्ष नेतृत्व की मजबूरियों का मिश्रित निष्कर्ष था। भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस की स्थिति कमज़ोर हो गई, और 1990 के चुनाव में किसी दल को बहुमत न मिलने पर गैर-कांग्रेसी एकता बनी। जनता दल में नेतृत्व चयन को लेकर विवाद बढ़ा और अंततः विधायक चुनाव कराए गए जिसमें लालू आराम से जीत गए और मुख्यमंत्री बने।

तिवारी ने बताया कि भागलपुर दंगे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई थी। मुसलमानों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया, जिससे 90 के चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। जनता दल के बाद वामपंथी पार्टियों और भाजपा को मिलाकर ही गैर कांग्रेसी सरकार बन सकती थी. लालू यादव जनता दल के विधायक दल के नेता थे. स्वभाविक तौर पर उनके नेतृत्व में गठबंधन बनता। लेकिन, जनता दल के केंद्रीय नेतृत्व (वीपी सिंह) लालू को सीएम नहीं बनाना चाहता था और रामसुंदर दास जी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था।

तिवारी ने खुलासा किया कि नीतीश कुमार के सहयोग से शरद यादव ने नेता पद के लिए विधायकों के बीच चुनाव कराने का दबाव बनाया। जब चुनाव की नौबत आई, तो चंद्रशेखर जी ने रघुनाथ झा को उम्मीदवार बना दिया। वोटों के बँटवारे का फायदा मिला और लालू यादव बहुत आराम से चुनाव जीत गए। इस प्रकार लालू पहली मर्तबा कांग्रेस, वामपंथी पार्टियों और भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने।

भाजपा के सपनों का अंतिम किला बिहार - शिवानंद तिवारी

शिवानंद तिवारी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि पूरे हिंदी भाषी प्रदेशों में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य रहा है जहां भाजपा अब तक स्वयं की सरकार नहीं बना पाई। उन्होंने इसे भाजपा के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक अधूरी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में भाजपा अपनी सरकार बनाने के चौखट तक पहुंच चुकी है। हालांकि रणनीतिक रूप से पार्टी अभी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद पर बनाए रख सकती है, ताकि सत्ता परिवर्तन धीरे, सहज और स्वीकार्य ढंग से हो सके।

तेजस्वी की पहचान अभी भी स्वतंत्र नहीं

शिवानंद तिवारी ने लालू यादव के परिवार पर भी निशाना साधा, उन्होंने यहां तक ​​कह दिया कि तेजस्वी यादव का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है. शिवानंद ने लिखा, "इस चुनाव ने लालू यादव को घुटनों पर ला दिया है. मैं तेजस्वी का नहीं, लालू यादव का नाम ले रहा हूं. क्योंकि तेजस्वी का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है. वो लालू यादव का आधुनिक प्रतिरूप हैं, अहंकार से भरा।

ये चुनाव लालू की राजनीति के अंत का भी स्पष्ट संकेत है। वैसे लालू की राजनीति 2010 में ही खत्म हो गई थी। उस चुनाव में लालू यादव की पार्टी के सिर्फ़ 22 विधायक ही विधानसभा पहुंचे थे। हालात इतने बदतर हो गए थे कि लालू जी की पार्टी को मुख्य विपक्षी दल की मान्यता भी नहीं मिल पाई थी।"

मंडल आयोग ने दिलाया राष्ट्रीय कद, लेकिन मौका गंवाया

लालू के राजनीतिक चरम पर चर्चा करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि मंडल आंदोलन ने लालू को भारतीय राजनीति के शीर्ष नेताओं की सूची में पहुंचा दिया, और आडवाणी की रामरथ यात्रा रोकने का निर्णय उन्हें वैचारिक हीरो बना गया। लेकिन तिवारी के अनुसार, लालू इस ऐतिहासिक पूँजी का सामाजिक रूपांतरण में उपयोग नहीं कर सके, और परिवार व जाति-केंद्रित राजनीति में उलझ गए।

नीतीश और लालू - एक विचार, दो व्यक्तित्व

शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार पर भी टिप्पणी करते हुए उनकी कार्यशैली की अलग व्याख्या की। उन्होंने स्वीकार किया कि नीतीश जोखिम लेने वाले नेता नहीं, पर सामाजिक न्याय के विस्तार को लेकर उनके कार्यक्रमों ने बिहार के सामाजिक ढांचे को बदला, विशेष रूप से महिलाओं, अल्पसंख्यक जातियों और ग्रामीण स्तर की युवा पीढ़ी को प्रभावित किया। दूसरी ओर, उन्होंने आरोप लगाया कि लालू ने अपनी राजनीति को परिवार केंद्रित बना दिया, और नेतृत्व व अवसरों का विस्तार नहीं किया।

बिहार में एकध्रुवीय हिंदुत्व सत्ता बन सकती है

पोस्ट के अंत में उन्होंने एक बड़ा सवाल उठाया कि नीतीश कुमार ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तैयार क्यों नहीं किया? उनके अनुसार, ऐसा होने पर भविष्य में नीतीश समर्थक कार्यकर्ताओं का आधार भाजपा की वैचारिक छतरी के नीचे चला जाएगा, जो आगे चलकर बिहार को पूरी तरह हिंदुत्ववादी शासन संरचना की ओर ले जा सकता है।