
कोटक महिंद्रा बैंक
मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट से MBA कर रहे एक लड़के का दिमाग गणित में किसी कंप्यूटर से कम नहीं था, लेकिन उसका पहला प्यार क्रिकेट था। वह अपनी कॉलेज टीम का कैप्टन था, लेकिन एक मैच के दौरान उसके सिर पर गेंद लगने से वह घायल हो गया। चोट इतनी गंभीर थी कि उसे ठीक होने में एक साल लग गया और उसका क्रिकेटर बनने का सपना खत्म हो गया। लेकिन कहते हैं जो होता है, अच्छे के लिए होता है। अगर ऐसा न होता तो इस देश को कोटक महिंद्रा बैंक न मिलता। यह लड़का कोई और नहीं, बल्कि उदय कोटक थे. जिन्होंने देश के बैंकिंग इतिहास में अपना नाम हमेशा हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवा लिया है।
1985 में एक छोटे से कमरे और थोड़े से पैसों के साथ शुरू हुआ ये सफर अब भी जारी है। कोटक महिंद्रा बैंक को 40 साल हो चुके हैं। चलिए आज आपको यही कहानी सुनाते हैं जो शुरू होती है बंटवारे के वक्त से, जब उदय कोटक के पिता कराची से मुंबई आए थे। उनके पिता कॉटन का व्यापार करते थे। काम धंधा काफी बढ़िया था। कराची और शंघाई में उनके दफ्तर थे। उदय एक बहुत बड़े घर में दर्जनों रिश्तेदारों के साथ रहते थे, लेकिन खाना एक ही किचन में बनता था। इस जॉइंट फैमिली का एक जॉइंट बिज़नेस भी था. लेकिन उदय इस फैमिली बिज़नेस से अलग फाइनेंस की दुनिया में कुछ करना चाहते थे, इसलिए परिवार ने उन्हें अलग एक छोटा सा दफ्तर दिया, जहाँ से उन्होंने बिल डिस्काउंटिंग बिज़नेस शुरू किया।
उदय शुरू से ही बहुत तेज दिमाग वाले थे। बिज़नेस का कोई मौका कतई नहीं चूकते थे। ऐसा ही एक मौका टाटा की कंपनी नेल्को में उन्हें मिला। नेल्को, बैंक से 17% ब्याज पर वर्किंग कैपिटल लेती थी, जबकि बैंक डिपॉज़िटर्स को उनकी जमा पर सिर्फ 6% ब्याज देते थे। उदय ने नेल्को को कहा वह 16% पर पैसे देंगे। इसके बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों से कहा कि उनको पैसे देंगे तो वो उन्हें 12% देंगे, जबकि बैंक तो उनको 6% देता है। उन्होंने जब बताया कि यह पैसा वह टाटा की कंपनी को दे रहे हैं, तो रिश्तेदार भी मान गए। ऐसे में उदय ने 4% का ब्याज कमा लिया। देखते-देखते डिस्काउंटिंग का बिज़नेस चल पड़ा, लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।
उदय का सफर इतना आसान भी नहीं था। 1985 में भारत के बैंकिंग सिस्टम को लेकर रेगुलेशन काफी सख्त थे। एक इंटरव्यू के दौरान उदय ने बताया कि बैंकिंग 97% सरकारी स्वामित्व वाली थी। ब्याज दरें फिक्स्ड थीं। उधार लेने वालों को 17% ब्याज देना पड़ता था जबकि जमाकर्ताओं को सिर्फ 6% मिलता था। बड़ी कंपनियों को सप्लाई करने वाले छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों को इतनी ऊंची दरों पर भी पैसे जुटाने में कठिनाई होती थी। उदय ने इस गैप को पहचाना और इसे हल करने के लिए अपना पहला बिज़नेस शुरू किया।
उदय बताते हैं कि फाइनेंशियल मार्केट में स्टार्टअप के औपचारिक रूप लेने से बहुत पहले वह कोटक में रूप में एक स्टार्टअप थे और उनका बजट काफी कम हुआ करता था। पूंजी जुटाना आसान नहीं था, लेकिन बदलाव की कगार पर खड़े भारत की आशा और आकांक्षाएं थीं। इसलिए 1985 वह समय था जब भारत वास्तव में बदलाव की दहलीज़ पर था। कुछ हद तक वह भाग्यशाली थे क्योंकि वह सही समय पर सही जगह पर थे।
कुछ समय बाद उदय को महिंद्रा यूजिन स्टील में नया क्लाइंट मिला। उदय बताते हैं कि उसी दौरान उनकी मुलाकात आनंद महिंद्रा से हुई। वह हार्वर्ड से लौटे ही थे और अपनी कंपनी महिंद्रा यूजिन स्टील में काम कर रहे थे। उस दौरान उदय ने आनंद को एक स्कीम बताई कि वह उन्हें कम रेट पर फाइनेंस कर सकते हैं ताकि उनके सप्लायर्स को वित्तीय सहायता मिल सके। यह स्कीम वाकई कारगर रही। आनंद, उदय की फाइनेंशियल स्किल्स के मुरीद थे। जब उदय की शादी के रिसेप्शन में आनंद पहुंचे, तो उन्होंने वहीं पर कोटक महिंद्रा फाइनेंस लिमिटेड में पैसा लगाने का ऑफर दिया और अपना नाम कंपनी को देने पर भी राज़ी हो गए। शादी जैसे माहौल में की गई, यह बात आगे चलकर इतिहास रचने वाली थी।
उदय ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि उन्होंने कुल 30 लाख रुपये से शुरुआत की थी। उदय ने उधार लेकर 13.5 लाख रुपये लगाए थे और आनंद ने 4.5 लाख रुपये लगाए थे। बाकी पैसे दोस्तों ने दिए थे। यही उनकी शुरुआती पूंजी थी। वह कहते हैं कि कई मायनों में आनंद उनके पहले वेंचर कैपिटलिस्ट बने। इस साझेदारी ने कंपनी की स्थायी पहचान भी बनाई।
उदय ने दोनों नाम – कोटक और महिंद्रा को साइनबोर्ड पर रखा, जैसे कि दुनिया में कई ग्लोबल फाइनेंस दिग्गजों ने किया था। अब ऐसा क्यों किया गया, इसे लेकर उदय बताते हैं कि बचपन में जब वह किताबें पढ़ते थे, तो दुनिया के कुछ बड़े वित्तीय संस्थानों के बारे में पढ़ते थे और उनके नाम थे जेपी मॉर्गन, मेरिल लिंच, मॉर्गन स्टेनली। ये सभी ऐसे पारिवारिक नाम थे जिनकी शुरुआत संस्थापकों ने की थी। जिन्होंने कहा था कि कंपनी के सभी ग्राहकों और निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए अपने नाम पर कंपनी का नाम ज़रूर रखना चाहिए। इसलिए अपना नाम दांव पर लगाना इस विश्वास का हिस्सा था कि वह सभी शेयरहोल्डर्स को भरोसा और विश्वास दिलाने के लिए अपना नाम दांव पर लगा रहे हैं।
हर बार कुछ नया करना और किस मौके को कब पकड़ना है, यह उदय को बखूबी आता था। 1989 में विदेशी बैंक भारत में कार फाइनेंसिंग का कॉन्सेप्ट लेकर आए। हमेशा कुछ नया करने वाले उदय ने कार फाइनेंस का अनोखा तरीका निकाला। उन्होंने देखा कि कार मिलने में लंबा इंतज़ार होता था। इसलिए कंपनी के नाम पर कार बुक करने लगे। जो ग्राहक तुरंत कार चाहते थे, उन्हें कोटक महिंद्रा फाइनेंस से फाइनेंस करवाना पड़ता। उदय के कदम तेज़ी से सफलता की ओर बढ़ रहे थे। वह अच्छी तरह से जानते थे कि बाज़ार की ज़रूरत क्या है, कंज़्यूमर को क्या चाहिए और कहाँ पर गैप है। 1991 में उदय ने इन्वेस्टमेंट बैंकिंग बिज़नेस में कदम रखा। उसी साल कंपनी पब्लिक भी हो गई। एक रिकॉर्ड बना। IPO की कीमत 45 रुपये प्रति शेयर थी, लेकिन ट्रेडिंग शुरू होते ही यह 1,300-1,400 रुपये तक पहुंच गया।
कुछ साल बाद उदय को सबसे बड़ा मौका मिला। 2001 में RBI ने प्राइवेट कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने की इजाजत दी। उस समय ज़्यादा लोग बैंक बनने में रुचि नहीं दिखा रहे थे। 8-10 आवेदनों में से कोटक महिंद्रा फाइनेंस और यस बैंक को शुरुआती मंजूरी मिली और 2003 में कोटक महिंद्रा फाइनेंस लिमिटेड, कोटक महिंद्रा बैंक बन गया, जो किसी NBFC के लिए पहली बार था।
एक छोटी सी शुरुआत ने कोटक महिंद्रा बैंक को देश के दिग्गज प्राइवेट बैंकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया। अब उदय मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ के पद पर नहीं है. लेकिन उनकी बनाई हुई यह विरासत अब भी तरक्की की राह पर चल रही है। वह हल्के अंदाज में कहते हैं कि अगर किसी ने 1985 में उन्हें 10,000 रुपये दिए होते तो आज उसके पास 300 करोड़ रुपये होते। आज कोटक महिंद्रा बैंक की मार्केट कैप 4.14 लाख करोड़ रुपये है। क्लाइंट बेस 5.3 करोड़ है और देशभर में 2,100 से ज़्यादा ब्रांच हैं।.
Updated on:
15 Nov 2025 06:11 pm
Published on:
15 Nov 2025 04:07 pm
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
