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चिंता की बात: हर तीसरे बच्चे में मायोपिया! क्या है ये खतरनाक बीमारी और कैसे करें बचाव

बच्चों में मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर तीसरा बच्चा इस समस्या से जूझ रहा है, जिसका मुख्य कारण बढ़ता स्क्रीन टाइम और कम बाहरी गतिविधियां हैं।

myopia
Photo- AI

सीकर। मोबाइल, लैपटॉप और टीवी की स्क्रीन बच्चों की आंखों पर भारी पड़ रही है। सरकारी ओर निजी अस्पतालों की नेत्र रोग ओपीडी में आने वाले हर तीसरे बच्चे को निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) की शिकायत है। चिंता की बात यह है कि यह बच्चों में होने वाले इस विकार के मरीजों की संख्या तीन में दोगुना तक बढ़ गई है। ओपीडी में रोजाना सौ में से 30 बच्चे आंखों की रोशनी कम होने व धुंधला दिखाई देने की शिकायत को लेकर पहुंच रहे हैं।

चिकित्सकों के अनुसार पहले यह समस्या 14-16 साल के किशोरों में दिखाई देती थी, लेकिन अब 5-6 साल के बच्चों में भी मायोपिया के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। इसका कारण बढ़ता स्क्रीन टाइम और धूप और बाहरी खेलकूद से दूरी माना जा रहा है।

चिकित्सकों के अनुसार स्क्रीन के अत्यधिक प्रयोग से आंख की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है, जिससे दूरी की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं। पहले यह समस्या किशोरों में होती थी लेकिन अब 5-6 साल के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं और इसके चलते वे चश्मा पहनने को मजबूर हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जिस तेजी से बच्चों में मायोपिया बढ़ रहा है। इस लिहाज से 2050 तक स्कूलों में जाने वाले 50 फीसदी बच्चे इस रोग की चपेट में होंगे। इससे चिकित्सकों में चिंता है।

रेटिना से आगे बनता है प्रतिबिंब

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कटेवा बताते हैं कि आंख की पुतली (आई बॉल) का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब रेटिना पर बनने की बजाय थोड़ा आगे बनता है। आंख धीरे-धीरे स्थाई रूप से माइनस पावर की ओर जाने लगती है। इसमें आंख का आकार बड़ा हो जाता है। बच्चों में इनडोर एक्टिविटी ज्यादा बढ़ रही है।

बच्चों का पार्क में खेलना-कूदना कम हो गया है। ऐसे में लगातार कम दूरी की ओर देखने के कारण आंख में प्रवेश करने वाला प्रकाश ठीक से फोकस नहीं कर पाता है। मायोपिया में आंख की पुतली (आई बॉल) का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब रेटिना पर बनने की बजाय थोड़ा आगे बनता है। आंख धीरे-धीरे स्थाई रूप से माइनस पावर की ओर जाने लगती है। इसमें आंख का आकार बड़ा हो जाता है।

Myopia: यह है मुख्य कारण

चिकित्सकों के अनुसार कल्याण अस्पताल की ओपीडी कुछ सालों में पांच से दस साल की उम्र वाले रोगी बढ़े हैं। बच्चे औसतन चार से छह घंटे मोबाइल या टैब पर बिता रहे हैं। मोबाइल पर ही पढ़ाई व गेमिंग के चलते बच्चे धूप में खेलना भूल गए हैं।

ऑनलाइन क्लास और ई-बुक्स के छोटे अक्षर होने से आंखों पर अधिक दबाव पड़ती है। किसी भी स्मार्ट डिवाइस से निकलने वाली ब्लू लाइट सीधे रेटिना पर असर डालती है। ऐसे में मायोपिया रोग से बचाने के लिए लगातार स्क्रीन के सामने नहीं बैठें। अधिकतम एक घंटे तक ही मोबाइल या लैपटॉप को देखें। हर 20 सैकंड से आंख झपकाएं।

रोजाना पार्क या बगीचे में एक से दो घंटे तक खेलने के लिए भेजे। साफ नजर नहीं आने पर फौरन जांच करवाएं और नियमित रूप से नजर का चश्मा लगाएं। ब्लू लाइट फिल्टर और उचित रोशनी का प्रयोग करें। नियमित रूप से चश्मा लगाने व जीवन शैली में बदलाव करके इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

Causes Of Myopia: मोबाइल से दूर रखें…

मोबाइल, लैपटॉप और टीवी को लगातार देखने से बच्चों में यह समस्या हो रही है। इसके लिए अभिभावकों को जागरूक होना होगा। उन्हें बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए। उनका लैपटॉप व टीवी का स्क्रीन टाइम भी कम करना होगा। साथ ही बच्चों को आउटडोर खेलों व गतिविधियों के लिए प्रेरित करना चाहिए, जिससे उनका स्क्रीन टाइम कम हो सके।

डॉ अरविंद महरिया, नेत्र रोग विशेषज्ञ, सीकर