
हलाल सर्टिफिकेट सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। (PC: Pexels)
आप जो शैम्पू इस्तेमाल करते आए हैं या जिस फेसवॉश से अभी आपने अपना मुंह धोया है या जो शर्ट आपने पहनी है, क्या वो हलाल सर्टिफाइड है। आप अगर ये सोच रहे हैं कि इन सब चीजों का हलाल से क्या लेना देना, हलाल सिर्फ मांसाहार के लिए इस्तेमाल होता है, तो आपकी ये जानकारी अधूरी है। क्योंकि हलाल सर्टिफिकेशन केवल मांस से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि आपके इर्द-गिर्द तमाम चीजें इसके दायरे में आती है। ये अपने आप में एक अलग ही 'समानांतर अर्थव्यवस्था' है। मजे की बात ये है कि देश में ये सर्टिफिकेट सरकारें नहीं देती हैं, फिर भी देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां हलाल सर्टिफिकेट लेने को मजबूर हैं, आखिर ऐसा क्यों है?
देखिए देश में 'हलाल' बनाम 'झटका' का विवाद पुराना है, इसे लेकर हमेशा से ही राजनीति होती रही है। बीते कुछ सालों में इस विवाद ने तूल पकड़ा है। अभी कुछ हफ्तों पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया कि हलाल सर्टिफिकेशन से टेरर फंडिंग होती है। उन्होंने कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन से आए 25,000 करोड़ रुपये का दुरुपयोग आतंकी फंडिंग, लव जिहाद और धर्मांतरण में होता है। इसी वजह से मुख्यमंत्री योगी ने साल 2023 में हलाल सर्टिफिकेशन पर रोक लगा दी, लेकिन सिर्फ उन्हीं सामानों पर जो कि घरेलू इस्तेमाल के लिए हैं, एक्सपोर्ट होने वाले सामानों पर अब भी हलाल सर्टिफिकेशन लेना पड़ता है। ये मजबूरी भी समझेंगे।
राजनीतिक बयानबाजियों और विवादों से थोड़ा अलग ये समझते हैं कि हलाल होता है क्या और मुस्लिम धर्म में इसको इतनी तवज्जो क्यों दी जाती है। साथ ही क्यों देश की कंपनियों के लिए इसको लेना एक जरूरत बनती जा रही है। हलाल एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है 'जायज' या 'वैध'। यानी कोई उत्पाद इस्लामिक नियमों या शरिया कानून के मुताबिक है या नहीं। जैसे किसी जानवर के मामले में, उसको एक खास तरीके से जिबह या काटा जाता है तो वो उसका मीट हलाल माना जाता है।
लेकिन हलाल सर्टिफिकेशन सिर्फ मांसाहार तक सीमित नहीं है। बल्कि अब ये दूसरे प्रोडक्ट के लिए जरूरी बना दिया गया है, खासतौर पर उन उत्पादों के लिए जिन्हें एक्सपोर्ट किया जाता है, इसमें ज्यादातर मुस्लिम देश शामिल हैं। जिसमें ये देखा जाता है कि इन प्रोडक्ट्स को शरिया कानून के मुताबिक तैयार किया गया हो। उत्पादों को बनाने के लिए एल्कोहल, चर्बी या दूसरी प्रतिबंधित चीजों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो।
देश की कई बड़ी FMCG, फार्मा कंपनियां इन मुस्लिम देशों में अपना सामान एक्सपोर्ट करती हैं। ये मुस्लिम देश हलाल सर्टिफिकेशन के बिना सामानों को अपने देशों में आने नहीं देते। इसलिए भारतीय कंपनियां बाध्य होती हैं कि वो हलाल सर्टिफिकेशन लें और अपना सामान एक्सपोर्ट करें। यहां तक कि अस्पताल तक हलाल सर्टिफिकेट लेते हैं, ताकि वो मुस्लिम देशों से आए मरीजों को आकर्षित कर सकें। हालांकि, इसकी लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन आपको कुछ चीजों की लिस्ट नीचे दी गई हैं, जिससे आपको ये अंदाजा लग सके कि आज हलाल सर्टिफिकेशन तकरीबन हर चीज पर लेना पड़ता है।
| कैटेगरी | हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पाद / सेवाएं |
|---|---|
| फूड | मीट, दूध के उत्पाद, बेकरी, नमकीन, तेल, चीनी, स्नैक्स |
| कॉस्मेटिक्स | साबुन, तेल, शैम्पू, क्रीम, फेसवॉश, परफ्यूम |
| फार्मा | दवाएं, कैप्सूल (बिना जिलेटिन), सप्लीमेंट्स |
| पैकेजिंग मैटेरियल्स | विभिन्न पैकिंग सामग्री |
| होटल | होटल सेवाएं |
| हॉस्पिटल | अस्पताल सेवाएं |
| कपड़े | परिधान और वस्त्र उत्पाद |
| सीमेंट | निर्माण सामग्री |
| अपार्टमेंट | रियल एस्टेट और हाउसिंग प्रोजेक्ट्स |
| लॉजिस्टिक्स | परिवहन और सप्लाई चेन सेवाएं |
उन प्रोडक्ट्स को हलाल सर्टिफिकेट नहीं मिलता है, जो शरिया कानून के मुताबिक हराम माने गए हैं। जिसमें सुअर का मांस, कुत्ते का मांस, मरे हुए जानवर, इथेनॉल और शराब शामिल हैं।
| कैटेगरी | इस्लाम में हराम प्रोडक्ट्स |
|---|---|
| मांस से जुड़े प्रोडक्ट्स | सुअर का मांस और उससे बने प्रोडक्ट्स |
| जानवरों से जुड़े प्रोडक्ट्स | मरे हुए जानवर का मांस, कुत्ते का मांस |
| कीट-पतंगे | टिड्डे को छोड़कर सभी कीड़े |
| जलजीव (Aquatic Animals) | मछली को छोड़कर नदी के अन्य जानवर |
| अन्य पदार्थ | इथेनॉल और शराब |
देश में हलाल सर्टिफिकेट कोई राज्य सरकार या केंद्र सरकार नहीं जारी करती है। जैसे देश में सामानों के मानक के लिए ISI है और फूड के लिए FSSAI का सर्टिफिकेशन अनिवार्य है, लेकिन ये दोनों ही सरकारी संस्थाएं हलाल सर्टिफिकेट जारी नहीं करतीं हैं। बल्कि कुछ निजी संस्थाएं हैं, जो हलाल सर्टिफिकेट जारी करती हैं।
देखिए, भारत में हलाल सर्टिफिकेशन तो वैसे भी अनिवार्य नहीं है, सिर्फ मुस्लिम उपभोक्ताओं के लिए ये होता है। सबसे बड़ी मजबूरी होती है एक्सपोर्ट की। क्योंकि कई मुस्लिम देश जैसे मिडिल ईस्ट और मलेशिया बिना हलाल सर्टिफिकेट के भारतीय सामानों को स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेना एक बाध्यता बन जाती है। इसलिए इसमें सरकारें भी दखल नहीं देती हैं। क्योंकि ये सीधे तौर पर कंपनियों के बिजनेस और इकोनॉमी से जुड़ा मामला बन जाता है।
दरअसल, हलाल सर्टिफिकेट उन कंपनियों के लिए एक मजबूरी बन जाता है, जिन्हें अपना सामान मुस्लिम देशों में एक्सपोर्ट करना होता है। क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करेंगी, तो एक बड़ा बाजार खो देंगी। क्योंकि यूरोप में 5 करोड़ से ज्यादा और पूरी दुनिया में एक अनुमान के मुताबिक 160 करोड़ हलाल उपभोक्ता हैं। हलाल सर्टिफिकेट हासिल करके वो इन उपभोक्ताओं तक अपना सामान पहुंचा सकते हैं। पैकेजिंग पर ट्रेडमार्क हलाल लोगो के जरिए, कंपनियां मिडिल ईस्ट और और अन्य मुस्लिम देशों में अपनी विशेष पहचान बना सकती हैं। जिससे उनके बिजनेस में ग्रोथ देखने को मिल सकती है।
मीट, पोल्ट्री और सीफूड हलाल फूड मार्केट का आधार हैं। हलाल मीट उत्पादों के बाजार में हलाल स्टैंडर्ड के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कड़े सर्टिफिकेशन की जरूरत होती है और इसमें फ्रेश और प्रोसेस्ड फूड दोनों ही शामिल होते हैं। मांस के अलावा, हलाल फलों और सब्जियों का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि उपभोक्ता हलाल के दायरे में आने वाले ताजे और पौष्टिक उत्पादों की मांग कर रहे हैं। क्योंकि कंज्यूमर ऐसे फल और सब्जियां चाहते हैं, जो गैर-हलाल एडिटिव्स और प्रोसेसिंग तरीकों से मुक्त हों।
यहां तक कि दूध, पनीर, दही और मक्खन सहित डेयरी उत्पाद हलाल फूड मार्केट का एक बड़ा हिस्सा है। चावल, गेहूं, ओट्स और कई आटे से बने अनाज, मुस्लिम समुदायों सहित दुनिया के कई हिस्सों में खाये जाते हैं। ये प्रोडक्ट्स भी हलाल फूड मार्केट की एक बड़ी जरूरत हैं। इस बाजार में सादे अनाज और प्रोसेस्ड अनाज प्रोडक्ट, जैसे हलाल-सर्टिफाइड ब्रेकफास्ट अनाज और पास्ता, दोनों शामिल हैं।
नवंबर 2024 की केन रिसर्च (Ken Research) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही हलाल फूड का बाजार तेजी से बढ़ा है, जो कि अब 19 बिलियन डॉलर (1,900 करोड़ डॉलर) तक पहुंच गया है। हैदराबाद, लखनऊ और मुंबई हलाल फूड के लिए सबसे बड़े बाजार हैं। रिपोर्ट बताती है कि मुस्लिम ही नहीं, बल्कि नॉन मुस्लिम के बीच में भी हलाल फूड का क्रेज बढ़ा है। इसलिए हलाल सर्टिफिकेट लेने वाली फूड प्रोसेसिंग कंपनियों की संख्या में तेज इजाफा देखने को मिला है। साल 2023 में 5,000 से ज्यादा कंपनियों ने हलाल सर्टिफिकेट हासिल किया।
रिसर्च एंड मार्केट्स की एक दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्लोबल हलाल फूड मार्केट साल 2024 में 2.71 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया है, जो कि साल 2033 में बढ़कर 5.91 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। यानी 2025-2033 के दौरान ये 8.92% की CAGR से बढ़ेगा। इसमें भी एशिया पैसिफिक का बाजार सबसे बड़ा है, जिसका हिस्सा 48.5% है। रिपोर्ट कहती है कि हलाल फूड मार्केट का बाजार मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ बढ़ रहा है। अनुमान है कि 2050 तक वैश्विक मुस्लिम आबादी लगभग 50% बढ़कर 2.76 अरब हो जाएगी, जो इस बात का अंदाजा लगाने के लिए काफी है कि हलाल फूड मार्केट की ग्रोथ क्या होगी।
हलाल सर्टिफिकेशन देने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जैसी संस्थाएं मोटी फीस चार्ज करती हैं। 3 साल के रजिस्ट्रेशन के लिए कंपनियों को 60,000 रुपये देने होते हैं, इसके बाद प्रति उत्पाद 1,500 रुपये की फीस देनी होती है। 1 साल के लिए फीस 25,000 रुपये है और प्रति प्रोडक्ट 500 रुपये देने होते हैं, GST अलग से लगता है। 3 साल के बाद अगर रीन्युएल कराना है, तो आपको 50,000 रुपये देने होंगे और 1 साल वाले प्लान को रीन्यू करना है तो 20,000 रुपये देने होंगे। हलाल की लोगो प्रिंटिंग के लिए ये संस्थाएं कंपनियों से हर साल 20,000 रुपये चार्ज करती हैं। इसके अलावा, कंसाइनमेंट सर्टिफिकेशन चार्ज और ऑडिटर खर्चे भी होते हैं।
यानी छोटी कंपनियों को हर साल 1 से 1.5 लाख रुपये तो सिर्फ फीस पर खर्च करना पड़ता है। बड़ी कंपनियों के लिए ये खर्चा 10-15 लाख रुपये तक पहुंच जाता है, क्योंकि उनके उत्पादों की संख्या ज्यादा होती है। ये संस्थाएं सालाना कितना कमाती हैं, इसको लेकर अब भी विवाद है, लेकिन कुल इंडस्ट्री 3,000-25,000 करोड़ रुपये के बीच सालाना कमाई करती है।
हलाल सर्टिफिकेट विवादों में हमेशा से ही रहा है। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में हलाल-सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स पर पहले ही बैन लगा दिया है। हालांकि, इस प्रतिबंध को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में है। केंद्र सरकार का कहना है कि इस सर्टिफिकेशन का इस्तेमाल सीमेंट और लोहे की छड़ें जैसी नॉन फूड आइटम्स के लिए भी किया जा रहा है, जिससे इनकी कीमतें बढ़ रही हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हलाल सर्टिफिकेशन प्रक्रिया हर भारतीय उपभोक्ता के खाद्य उत्पादों या अपने दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले दूसरे उत्पादों के संबंध में जानकारी हासिल करने के अधिकार का हिस्सा है, इसे केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं रखा जा सकता और न ही केवल एक्सपोर्ट के उद्देश्यों के लिए। सुप्रीम कोर्ट का इस केस में फैसला आना अभी बाकी है।
Published on:
13 Nov 2025 06:00 am
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