Chhattisgarh organ transplant crisis: देशभर में जहां "अंगदान को जीवनदान" की सबसे बड़ी मुहिम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ में यह पहल आज भी सरकारी अनदेखी और अव्यवस्था की भेंट चढ़ी हुई है। राज्य गठन को 25 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी यहां न तो कोई मजबूत सरकारी अंगदान नीति है, न ही ट्रांसप्लांट के लिए बुनियादी ढांचा।
राज्य में 'ऑर्गन ट्रांसप्लांट' की कोई सुव्यवस्थित सरकारी सुविधा नहीं है। न 'डेड बॉडी डोनेशन' की प्रक्रिया स्पष्ट है, न ही 'ब्रेन डेड' डोनर की पहचान व अंगों के सुरक्षित उपयोग के लिए प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ। सरकारी अस्पतालों में न पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ही कोई ऑर्गन रजिस्ट्रेशन सिस्टम। निजी अस्पतालों में कुछ प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन वे आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं।
छत्तीसगढ़ के मरीजों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए वेल्लूर, हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु और गुजरात जैसे राज्यों का रुख करना पड़ता है। लेकिन वहां की लंबी वेटिंग लिस्ट, बड़ी राशि और सांस्कृतिक दूरी उन्हें मौके से दूर कर देती है। कई मरीज सिर्फ इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि उनके पास न समय होता है, न पैसा।
गौरतलब है कि राज्य में केवल नेत्रदान और देहदान की व्यवस्था है। सिम्स और अन्य मेडिकल कॉलेजों में नेत्रहीनों को आंखें लगाने का कार्य किया जा रहा है, लेकिन किडनी, लीवर, हार्ट जैसे जीवनरक्षक अंगों को न तो डोनेट करने की सुविधा है और न ही प्रत्यारोपण का कोई सरकारी तंत्र।
स्वास्थ्य विभाग ने एक बार अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रस्ताव तैयार किया था। लेकिन वह फाइलों में ही दब कर रह गया। न कोई ठोस नियम बना, न ही कोई अमल हुआ। इस लापरवाही की कीमत हर साल सैकड़ों मरीज अपनी जान देकर चुका रहे हैं।
वर्तमान में सबसे ज्यादा मांग किडनी प्रत्यारोपण की है। अपोलो बिलासपुर सहित रायपुर के श्री बालाजी, एमएमआई और रामकृष्ण केयर जैसे निजी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट होता है, लेकिन ये खर्च गरीब मरीजों की पहुंच से बाहर है। सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा आज भी सपना बनी हुई है।
वेल्लूर, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरों में ब्रेन डेड मरीजों से लीवर, हार्ट, किडनी जैसे अंगों को डोनेट कर जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन दिया जा रहा है। वहीं छत्तीसगढ़ के मरीज उन्हीं जगहों पर लंबी वेटिंग की वजह से दम तोड़ रहे हैं।
शासन स्तर पर मेडिकल कॉलेजों में अंगदान की प्रक्रिया को लेकर काम चल रहा है। नियम और दायरे तय किए जा रहे हैं। उमीद है कि जल्द इसकी स्वीकृति मिलेगी। - डॉ. यूएस पैकरा, डीएमई
अमीर या मध्यमवर्गीय लोग फिर भी निजी प्रयासों से इलाज करा लेते हैं, लेकिन गरीब और सामान्य तबके के मरीजों के लिए अंग प्रत्यारोपण एक सपना मात्र है। महंगे ट्रांसप्लांट, यात्रा, होटल में रहना, दवाइयां ये सब किसी गांव के किसान या मजदूर के बस की बात नहीं। गरीबी में इंसान पहले अस्पताल पहुंचने से डरता है, फिर वहां पहुंचकर अंग न मिलने की खबर उसे तोड़ देती है।
छत्तीसगढ़ जैसे सांस्कृतिक रूप से पारंपरिक राज्य में ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अंगदान करना अब भी लोगों के लिए असहज विषय है। धार्मिक मान्यताओं, समाज की सोच और सरकारी प्रयासों की कमी से समाज में अंगदान के प्रति झिझक बनी हुई है। जहां दक्षिण भारत में हर महीने सैकड़ों डोनर सामने आते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में अब तक गिनती के मामलों में ही सफलता मिली है।
Published on:
07 Aug 2025 02:57 pm