
महात्मा गांधी
Mahatma Gandhi Birthday : आज गांधी जयंती है। दुनियाभर में चल रहे युद्ध और अशांति के बीच अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी आज ज्यादा प्रासंगिक हो चले हैं।
यही वजह है कि गांधीजी की जयंती 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून 2007 को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य शिक्षा और जन जागरूकता के माध्यम से अहिंसा के संदेश का प्रसार करना है। आइए यहां हम उनके बारे में कुछ कम सुनी कहानियां बताते हैं।
गांधी जी अपना काम खुद करते थे और अपने अनुयायियों से भी ऐसा करने पर जोर देते थे। वह कस्तूरबा से भी अपना काम खुद करने को कहते थे। वह अपने अनुयायियों से भी ऐसा करने पर जोर देते थे। वह ऐसा इसलिए करते थे कि आपकी दूसरों पर जितनी आत्मनिर्भरता कम होगी, आप उतने ही आत्मविश्वास से भर जाएंगे। यही आत्मविश्वास गांधी को अपने युग के नेताओं से अलग और बड़ा बनाती है।
गांधी जी भाषण देते थे। योग और प्रार्थना सिखाते थे। पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र बताते थे कि गांधीजी खूब लिखते थे। दाहिने हाथ से लिखते और जब दाहिना थक जाता तो वे बाएं हाथ से लिखने लग जाते। उन्होंने बहुत लिखा है। उनके समय में कई नेता लिखते थे। जवाहरलाल नेहरू, भीम राव अंबेडकर, नारायण देसाई, भगत सिंह आदि कई नाम हैं, जिन्होंने राजनीतिक सभाओं में जो कहा, उन भावनाओं को कलमबद्ध किया। राजनीतिक और सामाजिक मुददों पर खूब कलम चलाई। इन नेताओं ने जो कहा, जो लिखा उसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश की। इस काम को गांधी ने प्राथमिकता में रखकर देश की आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया।
गांधीजी यंग इंडिया और नवजीवन का संपादन करते थे। हिंदी अखबार की सदस्यता एक लाख से ज्यादा लोगों ने ले रखी थी। दोनों अखबारों का संपादन खुद गांधीजी करते थे। गांधीजी हिंदी और अंग्रेजी के अलावा गुजराती में भी अखबार निकाला करते थे। वे हर रोज कार्यकर्ताओं से मिलते थे। वे उनकी समस्या सुनते थे और उन्हें हल देते थे। सेवाग्राम में गांधीजी ने लंबा वक्त बिताया। वहां वे शौच करते हुए भी लोगों की समस्या सुनते और समाधान देते क्योंकि उन्हें पता था कि उनका वक्त बहुत ज्यादा कीमती है। गांधीजी ने अपने जीवन में कई किताबें लिखे। वे अखबार निकालने के अलावा कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी लेख लिखते थे। वे हर पत्र का जवाब देते थे। उन्होंने 35 हज़ार से ज़्यादा पत्र लिखे थे। वह पत्रों को जवाब हिंदी में दिया करते थे।
महात्मा गांधी को अक्सर मशीन विरोधी और आधुनिकता का विरोधी ठहराया जाता है. लेकिन गीत चतुर्वेदी की लिखी चार्ली चैप्लिन की जीवनी में चार्ली की गांधी से मुलाकात का एक प्रसंग का यहां जिक्र करना जरूरी होगा। महान अभिनेता चार्ली चैप्लिन ने गांधी से जब यह कहा- 'यक़ीनन भारत की आज़ादी की इच्छा और उसके संघर्ष का मैं हिमायती हूँ. लेकिन आप मशीनों का विरोध करते हैं, इस पर मैं थोड़ा भ्रमित हूं। मेरा मानना है कि यदि मशीनों का रचनात्मक इस्तेमाल किया जाए तो आदमी गुलामी से बच सकता है। उसके काम के घंटे कम हो सकते हैं और वह जीवन का ज्यादा मज़ा ले सकता है।' इसके जवाब में महात्मा गांधी ने मुस्कराते हुए कहा, 'मैं आपकी बात समझता हूं लेकिन जैसा आप कह रहे हैं, उस स्थिति तक पहुंचने के लिए भारत को पहले अंग्रेजी शासन से मुक्त होना होगा। आप पिछला समय देखें, तो पता चलेगा की मशीनों के कारण ही हम इंग्लैंड पर आश्रित हो गए थे और इस अवस्था को तभी ख़त्म किया जा सकता है, जब हम उनकी मशीनों द्वारा बनाये गए हर माल का बहिष्कार करें। इसलिए हमने भारत में हर व्यक्ति का राष्ट्रीय कर्तव्य बनाया है कि वह अपना कपास खुद कातकर अपने कपड़े खुद बनाए। यह इंग्लैंड जैसे शक्तिशाली देश पर हल्ला बोल है।
गांधीजी ने चार्ली से आगे कहा- भारत का वातावरण इंग्लैंड से काफी अलग है, उसकी इच्छाएं और आदतें भी। ठंडा मौसम होने के कारण वहां कठिन उद्योग भी चल सकते हैं। आपको खाना खाने के लिए बर्तनों के अलावा छुरी-कांटा बनाने के लिए भी फैक्ट्री लगनी पड़ती है, चूंकि हम हाथ से खाते हैं, हमें इसकी ज़रुरत नहीं।'
महात्मा गांधी के इस जवाब से चार्ली चैप्लिन भीतर तक हिल गए. भारत में सिर्फ आज़ादी की लड़ाई नहीं हो रही है, एक पूरी विचारधारा पनप रही है. यह कितनी बड़ी दूरदृष्टि है कि जिसकी मशीन होगी, स्वामित्व भी उसी का होगा, यानी श्रम करने वाले दोयम ही रहेंगे.
स्वतंत्रता के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले प्रमुख नेताओं में से एक बिहार के डॉ.सैयद महमूद थे। एक बार वह सेवाग्राम स्थित गांधीजी के आश्रम में उनसे मिलने गए। उस समय डॉ.महमूद बीमार थे। गांधीजी ने जब उनको बीमार देखा तो तबीयत सही होने तक आश्रम में रहने को कहा, लेकिन डॉ. महमूद ने इनकार कर दिया। गांधीजी ने जब जोर दिया तो उन्होंने अपनी मजबूरी बताई। दरअसल डॉक्टरों ने उनको बीमारी के ठीक होने तक 'चिकन सूप' लेने को कहा था, लेकिन आश्रम में मांसाहारी खाने की अनुमति नहीं थी। इस समस्या पर गांधीजी के जवाब से डॉ.महमूद हैरान हो गए। गांधीजी ने कहा कि उनको आश्रम छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। गांधीजी ने कहा, 'क्या आश्रम के रहने वाले लोग इस बात को नहीं समझेंगे? मैं सुनिश्चित करूंगा कि आपको अच्छी तरह बना चिकन सूप मिले।' इसके बाद डॉ.महमूद आश्रम में अपने तंदरूस्त होने तक रुक गए। गांधीजी यह फैसला अपनी उदारता और आत्मबल के चलते ही ले सके। उनका मानना था कि उनके इस फैसले से उनकी शाकाहारी भोजन या उनके वैष्णव होने की भावना को कोई कमजोर नहीं कर देगा।
वर्ष 1946 में गांधीजी नई दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग के पास स्थित वाल्मीकि कॉलोनी में आए थे। वहां वह 1 अप्रैल, 1946 से 10 जून, 1947 तक, ठीक 214 दिन रहे थे। वाल्मीकि कॉलोनी में रहने के कुछ दिनों के अंदर उनको पता चला कि वहां अधिकतर लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। गांधीजी को बहुत हैरानी हुई। उन्होंने उन लोगों से कहा कि आप अपने बच्चों को भेजो, मैं पढ़ाऊंगा। गांधीजी ने जब पढ़ाना शुरू किया तो गोल मार्केट, पहाड़गंज, इरविन रोड और आसपास के इलाकों के बच्चे भी आने लगे। बच्चों की संख्या बढ़ती रही। गांधी जी ने करीब 30 छात्रों से शुरुआत की जो शीघ्र ही बढ़कर 75 तक पहुंच गई। अब भी वाल्मीकि मंदिर के अंदर बापू का एक कमरा बना है। उस कमरे में लकड़ी की एक मेज है जिसका वह इस्तेमाल करते थे। वहां गांधीजी का छोटा सा चरखा और मसनद भी रखा हुआ है, जिसपर वह घंटों टिककर बैठकर लोगों की समस्याएं सुनते और उनका हल देते।
महात्मा गांधी बहुत ही सीधे सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। धन के लिए कभी भी लालच नहीं करते थे। वकालत के पेशे में सिर्फ वही मुकदमे लेते थे जो सच्चे होते थे। बुरे और बेईमान लोगों का मुकदमा नहीं लेते थे। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने जब वकालत शुरू की तो पहला मुकदमा हार गए। इसके बाद उन्होंने बहुत मेहनत की और उनकी वकालत की गाड़ी चल पड़ी। वे वकालत की प्रैक्टिस के बल पर सालाना 15 हजार डॉलर कमा लेते थे। इसके बावजूद उन्होंने अपनी वकालत की प्रैक्टिस को छोड़कर देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए आंदोलनरत हो गए। दरअसल, गांधी को एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को गुलाम बनाकर रखे, एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से छुआछूत का भाव रखे यह असमानता की स्थिति उन्हें तंग करती थी। वे समाज में पंक्ति के सबसे पीछे खड़े मनुष्य के बारे में चिंता करते थे। एक बार वे ट्रेन में सफर कर रहे थे तभी उनका एक जूता नीचे गिर गया। उन्होंने अपना दूसरा जूता भी नीचे फेंक दिया। उनकी बगल के यात्री ने जब उनसे कारण पूछा तो वे बोले एक जूता मेरे अब किसी काम नहीं आएगा। दोनों जूते किसी को मिल जाएंगे तो वो उसके काम तो आ जाएगा। महात्मा गांधी ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के अन्य 4 महाद्वीपों और 12 देशों में नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन किया था।
महात्मा गांधी ने अपने जीवनचर्या से खुद को आखिरी इंसान से ताल्लुक जोड़ने का प्रयास अंतिम दम तक जारी रखा। उन्होंने सबसे पहले कपड़े का त्याग किया। वे ट्रेन के तीसरे दर्जे में सफर करते रहे। गांधी जी ने ताउम्र हवाई यात्रा नहीं की। वे हर रोज कम से कम 18-20 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही करते थे। इंग्लैंड में वकालत की स्टडी के दौरान गांधी जी को रोजाना 8 से 10 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था। गांधीजी की त्याग की भावना ने ही उन्हें हिम्मती बनाया। अन्यथा वे स्कूली जीवन में बहुत डरपोक और दब्बू किस्म के इंसान थे। गांधी की इन खूबियों ने ना सिर्फ हिंदुस्तानियों को प्रभावित किया बल्कि उसे दुनिया भर में महसूस किया जाता रहा है। गांधी जी के प्रभाव के बारे में अर्नाल्ड टायनबीन ने लिखा- 'हमने जिस पीढ़ी में जन्म लिया है, वह न केवल पश्चिम में हिटलर और रूस में स्टालिन की पीढ़ी है, वरन वह भारत में गांधी जी की पीढ़ी भी है और यह भविष्यवाणी बड़े विश्वास के साथ की जा सकती है कि मानव इतिहास पर गांधी जी का प्रभाव स्टालिन या हिटलर से कहीं ज्यादा और स्थायी होगा।
महात्मा गांधी को 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। 1948 में पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी हत्या नाथूराम गोडसे ने कर दी। नोबेल कमेटी ने गांधी जी के सम्मान में यह पुरस्कार उस साल किसी और व्यक्ति को नहीं दिया। महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद उनकी शव यात्रा में 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। 15 लाख लोग शव यात्रा के रास्ते में खड़े हुए थे। उनकी शव यात्रा भारत के इतिहास में सबसे बड़ी शव यात्रा थी। लोग खंभों, पेड़ और घर की छतों पर चढ़कर अपने प्रिय बापू का अंतिम दर्शन करना चाहते थे।
Updated on:
03 Oct 2025 10:26 am
Published on:
02 Oct 2025 11:28 am
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