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महाविद्यालयों में डगमगाई शिक्षा व्यवस्था, 2 हजार से अधिक पद खाली, उच्च शिक्षा विभाग की रिपोर्ट देख चौंक जाएंगे आप

Shortage Of Teachers In Colleges: राज्य के शासकीय महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है। कॉलेजों में शिक्षकों की कमी इतनी गंभीर है कि पढ़ाई मुख्य रूप से गेस्ट फैकल्टी या सीमित सहायक प्राध्यापकों के भरोसे चल रही है।

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कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी (फोटो सोर्स- पत्रिका)

कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Shortage Of Teachers In Colleges: राज्य के शासकीय महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है। कॉलेजों में शिक्षकों की कमी इतनी गंभीर है कि पढ़ाई मुख्य रूप से गेस्ट फैकल्टी या सीमित सहायक प्राध्यापकों के भरोसे चल रही है। उच्च शिक्षा विभाग के प्रशासकीय प्रतिवेदन 2024-25 के अनुसार, प्रदेश में सहायक प्राध्यापकों के 5335 स्वीकृत पदों में से 3033 ही कार्यरत हैं, जबकि 2300 से अधिक पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं।

335 से अधिक शासकीय महाविद्यालय, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी

राज्य में कुल 335 से अधिक शासकीय महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें 33 अग्रणी महाविद्यालय, 64 स्नातकोत्तर, 271 स्नातक, 1 संस्कृत महाविद्यालय और 8 स्वायत्तशासी कॉलेज शामिल हैं। इतनी बड़ी संख्या में संस्थान होने के बावजूद अधिकांश जगह शिक्षकों की नियुक्ति अधूरी है। यही वजह है कि कई कॉलेजों में विभागों का संचालन केवल नाममात्र के प्राध्यापकों या अस्थायी शिक्षकों से हो रहा है।

प्राचार्य स्तर पर भी संकट

उच्च शिक्षा संस्थानों में नेतृत्व स्तर पर भी स्थिति चिंताजनक है।

  • स्नातकोत्तर प्राचार्य के 64 स्वीकृत पदों में मात्र 20 कार्यरत हैं।
  • स्नातक प्राचार्य के 271 पदों में केवल 109 ही कार्यरत हैं।
  • इससे कॉलेजों का प्रशासनिक संचालन भी प्रभावित हो रहा है। कई संस्थान प्रभारी प्राचार्यों या वरिष्ठतम संकाय सदस्यों के भरोसे चल रहे हैं।

प्राध्यापक पद पूरी तरह रिक्त

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि प्राध्यापक स्तर के 779 स्वीकृत पदों पर एक भी अधिकारी कार्यरत नहीं है। यह स्थिति उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और शोध कार्यों पर प्रतिकूल असर डाल रही है।

सहायक स्टाफ की भी कमी

केवल शिक्षकों की ही नहीं, बल्कि अन्य अकादमिक पदों पर भी भारी कमी है।

  • क्रीड़ा अधिकारी: 207 स्वीकृत पदों में केवल 81 कार्यरत।
  • ग्रंथपाल: 213 पदों में मात्र 77 कार्यरत।
  • इस अभाव के चलते न खेल गतिविधियाँ नियमित हो पा रही हैं, न ही पुस्तकालयों का सुचारू संचालन।

गुणवत्ता पर असर

विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों की कमी से न केवल पढ़ाई की गुणवत्ता गिर रही है, बल्कि विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धियाँ और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में प्रदर्शन पर भी असर पड़ रहा है। प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और खेल मैदानों में गतिविधियां सीमित हो गई हैं।

भर्ती प्रक्रिया में विलंब से नाराजगी

सहायक प्राध्यापकों के रिक्त पदों की भर्ती लंबे समय से अटकी हुई है। शिक्षकों के संगठन बार-बार भर्ती प्रक्रिया को तेज करने की मांग कर रहे हैं। कई बार विज्ञापन जारी किए गए, लेकिन चयन प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।

उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए ये जरुरी

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए तत्काल व्यापक भर्ती अभियान चलाना आवश्यक है। साथ ही, कार्यरत प्राध्यापकों को स्थायी पदोन्नति और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।