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एक बार फिर टाइगर स्टेट बनने तैयार एमपी, All India Tiger Estimation 2026, जानें पूरी प्रक्रिया

MP news: एक बार फिर टटोली जा रही है एमपी समेत देशभर के जंगलों की नब्ज, क्या हाल है मध्यप्रदेश समेत देश की वाइल्ड लाइफ का, शुरू होने जा रही All India Tiger Estimation की प्रक्रिया 2026 में खोलेगी जंगलों की सेहत का राज, किसके सिर सजेगा टाइगर स्टेट का सेहरा... जानें क्या है ये टाइगर एस्टिमेशन की प्रक्रिया, अधिकारी-कर्मचारी कैसे करते हैं काम...

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MP news All India tiger Estimation 2026

MP news All India tiger Estimation 2026: (फोटो: X)

MP News All India Tiger Estimation 2026: भारत में बाघों की असली तस्वीर जानने की सबसे बड़ी कवायद एक बार फिर शुरू होने जा रही है। देशभर में अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2026 (All India Tiger Estimation 2026) की प्रक्रिया शुरू होने को है। इसमें टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश की भूमिका बेहद अहम रही है, क्योंकि एक बार 1991 में और उसके बाद 2019 और 2022 में ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन में मध्यप्रदेश लगातार दो साल टाइगर स्टेट का तमगा हासिल करने में कामयाब रहा है। इस बार फिर वन विभाग की बड़ी तैयारी है, उम्मीद की जा रही है कि एमपी एक बार फिर टाइगर स्टेट बन सकता है।

15 नवंबर से प्रदेशभर के फॉरेस्ट एरिया में बाघ एस्टिमेशन का काम शुरू हो जाएगा। कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे, इसके अलावा एविडेंस में मल, पगमार्क, खरोंच के निशान, शिकार के अवशेष जैसे साक्ष्य भी शामिल किए जाते हैं। चार चरणों में पूरी होने वाली एस्टिमेशन की ये प्रक्रिया फरवरी 2026 तक पूरी होगी। इसके बाद डेटा कलेक्ट करके फाइनल रिपोर्ट अप्रेल 2026 तक तैयार हो जाएगी। जो जुलाई 2026 तक जारी होगी।

टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश की स्थिति कैसी?

पिछले बाघ अनुमान 2022 (Tiger Estimation 2022) में मध्य प्रदेश में 785 बाघ दर्ज किए गए थे। जो देश के अन्य राज्यों से भी ज्यादा हैं। यानी हर पांच में से एक बाघ एमपी के जंगलों में मौजूद है। इसी के चलते राज्य को लगातार दूसरी बार 2019 और 2022 में टाइगर स्टेट का दर्जा मिला। इस बार फिर सबकी नजर इसी पर है कि क्या एमपी अपनी टॉप पॉजीशन बनाए रखेगा या किसी अन्य राज्य से मुकाबला होगा?

दूसरी बार पेपरलेस यानी M-STRIPES ऐप से किया जा रहा है एस्टिमेशन

पिछले ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन में एमपी समेत देशभर के जंगलों में M-STRIPES ऐप के माध्यम से पेपरलेस कार्य किया गया था। इस बार भी वही प्रक्रिया फॉलो की जाएगी। जिम्मेदारों का कहना है कि इस बार ऐप को और अपडेट किया गया है। यूजरफ्रेंडली ऐप से कई परेशानियां हल हुई हैं और मुश्किलें आसान।

जानें क्या है टाइगर एस्टिमेशन

अब तक हम जिसे बाघों की गणना कहते आए हैं, असल में आधुनिक भारत में ये टाइगर काउंटिंग नहीं बल्कि, टाइगर एस्टिमेशन है। टाइगर एस्टिमेशन की प्रक्रिया अब पारंपरिक गिनती से कहीं आगे बढ़ चुकी है। यह सिर्फ कैमरे में दिखे बाघों की संख्या नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश समेत देश के पूरे वन क्षेत्र में मौजूद संभावित आबादी का वैज्ञानिक मूल्यांकन है। इसे ऐसे समझें-

एमपी में 9 टाइगर रिजर्व और कॉरिडोर, टेरिटरीज पर नजर

राज्य के 9 टाइगर रिजर्व कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, संजय, पन्ना, ओरछा, माधव, भीमगढ़, नौरादेही सभी में गहन निगरानी चलेगी। हर रिजर्व के कोर और बफर जोन में 24 घंटे कैमरे एक्टिव होंगे। पिछली बार की तरह इस बार भी AI बेस्ड कैमरा ट्रैप और जीपीएस डेटा लिंक तकनीक वाले ऐप M-STRIPES से मॉनिटरिंग पहले से कहीं ज्यादा सटीक होगी। वन विभाग के मुताबिक जंगलों से निकल सड़कों पर नजर आ रहे बाघ जहां चुनौती साबित हो सकते हैं, वहीं ये उम्मीद भी दे रहे हैं, कि बाघों की संख्या बढ़ने की संभावना है, एमपी फिर से टाइगर स्टेट बन सकता है।

संरक्षण की चुनौती- बढ़ती संख्या, घटता आवास

एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाघों की संख्या बढ़ना जितना सुखद है, उतना ही आवास घटने का खतरा भी बढ़ा है। बाघ कॉरिडोर और गांवों की सीमा तक आने लगे हैं। पीसीसीएफ एल. कृष्णमूर्ति कहते हैं कि, 'इससे निपटने के लिए वन विभाग इस बार सह अस्तित्व मॉडल पर जोर दे रहा है। ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। स्थानीय समुदायों को निगरानी, रिपोर्टिंग और इको टूरिज्म से जोड़ा जा रहा है।'

अखिल भारतीय टाइगर एस्टिमेशन (AITE) में एमपी की प्राथमिकता क्या?

-बाघों की सटिक पहचान और वितरण का नक्शा तैयार करना।

-रिजर्व से बाहर बाघों की उपस्थिति को वैज्ञानिक रूप से दर्ज करना।

-कोरिडोर नेटवर्क को मजबूत करना ताकि, बाघ सुरक्षित क्षेत्रों में आवागमन कर सकें।

-वन विभाग के मुताबिक ये अनुमान प्रक्रिया सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समझने की कोशिश है कि बाघ कहां हैं। कहां जा रहे हैं और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हमें अब आगे और क्या बदलाव करने की आवश्यकता है। क्या हम सही सही मायनों में जंगलों की सुरक्षा कर पा रहे हैं?

इस तकनीक से क्या फायदा हुआ

-कागज की गिनती और मानवीय गलती खत्म हुई, अब सब डिजिटल रिकॉर्ड होता है।

-हर टीम की गश्त मॉनिटर की जा सकती है, कौन कहां गया, कितना एरिया कवर हुआ, कितना बाकी है?

-डेटा की पारदर्शिता और सटीकता बढ़ी है।

-बाघों के संरक्षण और सुरक्षा की योजना बनाना आसान हुआ है। क्योंकि अब ठोस वैज्ञानिक डाटा उपलब्ध है।

मध्य प्रदेश जो टाइगर स्टेट है, ने इस सिस्टम को सबसे जल्दी अपनाया। राज्य के 9 टाइगर रिजर्व और दो अन्य अभयारण्य के रेंजर्स, कर्मचारियों और अधिकारियों को M-STRiPES पर विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। अब हर बाघ गिनती और पेट्रोलिंग इसी एप के जरिए की जा रही है। ये नया प्रयोग पिछले टाइगर एस्टिमेशन के लिए शुरू किया गया था।

कैसे काम करता है M-STRIPES सिस्टम

अब बाघ गिनने का तरीका पूरी तरह से डिजिटल हो गया है। फील्ड में जब वनकर्मी या अधिकारी जाते हैं, तो उनके मोबाइल में M-STRIPES ऐप ऑन रहता है। ये एप जीपीएस की मदद से उनका पूरा रास्ता रिकॉर्ड करता है। यानी कौन सी टीम कहां गई, कितना इलाका कवर किया सब कुछ ट्रैक होता है।

जंगल में अगर कहीं बाघ के पगमार्क, मल, शिकार के अवशेष मिलते हैं तो कर्मचारी तुरंत उसी जगह का फोटो लेकर ऐप में अपलोड कर देते हैं, फोटो के साथ उस जगह का लोकेशन और समय अपने आप एप में सेव हो जाता है।

दिन के अंत में पूरा डेटा ऑनलाइन सर्वर पर चला जाता है, जहां विशेषज्ञ उसे जांचते हैं, कहां ज्यादा मूवमेंट मिली, किस इलाके में बाघों की मौजूदगी मजबूत है और कहां निगरानी बढ़ाने की जरूरत है।

इस तरह अब कागज, फॉर्म या मैनुअल गिनती की जगह पूरा सिस्टम मोबाइल और जीपीएस पर चलेगा। जिससे न केवल आंकड़े सटिक होंगे, बल्कि मानवीय गलती की गुंजाइश भी लगभग खत्म हो जाएगी।

APCCF एल. कृष्णमूर्ति से patrika.com की सीधी बात

Q. ऑल ऑवर इंडिया में टाइगर काउंटिंग एस्टिमेशन शुरू होने जा रहा है, एमपी से कौन-कौन से हिस्से और रेंज कवर किए जा रहे हैं?
A. ऐसा नहीं होता, ये पूरा मध्यप्रदेश के फॉरेस्ट एरिया में किया जाएगा। कुल 83 यूनिट्स हैं, जहां टाइगर रिजर्व हैं, टेरिटोरियल डिविजन, कॉर्पोरेशन एरिया सभी को कवर किया गया है।

Q. टाइगर काउंटिंग में इस बार भी ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा?
A. ये टाइगर काउंटिंग नहीं टाइगर एस्टिमेशन है, लास्ट टाइम भी एप के माध्यम से ही टाइगर एस्टिमेशन किया गया था। 2022 में पहली बार M-STRIPES एप के माध्यम से ही एस्टिमेशन किया गया था।

Q. 2022 से पहले क्या था टाइगर एस्टिमेशन को प्रोसेस, क्या नेटवर्क इश्यूज रहते होंगे?
A. इससे पहले भी टाइगर काउंटिंग एम स्ट्राइप फॉर्म भर कर की जाती थी। इस फॉर्म के डाटा को कम्प्यूटर में अपलोड किया जाता था। फिर उस डाटा को देहरादून भेजा जाता था। लेकिन अब पेपर लेस वर्क ने इस प्रक्रिया को आसान बनाया है। M-STRIPE एप को थोड़ा और अपडेट किया गया है, यूजर फ्रेंडली बनाया गया है। इसके माध्यम से इस बार टाइगर एस्टिमेट और बेहतर और आसान हो जाएगा। इस एप की खासियत ये है कि ये ऑफलाइन भी काम करता है। इसके लिए किसी तरह के नेटवर्क की आवश्यकता नहीं होती।

Q. लास्ट टाइगर एस्टिमेशन 785 था, जो देशभर में सबसे ज्यादा है। इस बार क्या संकेत मिलते हैं, क्या टाइगर्स की संख्या बढ़ सकती है या फिर कम होने की आशंका?

A. इस बारे में फिलहाल कुछ भी नहीं कह सकते, ये तो टाइगर एस्टिमेशन होने के बाद ही पता लग सकेगा।

APCCF एल. कृष्णमूर्ति से patrika.com की सीधी बातचीत सुनने यहां करें क्लिक

Q. एमपी पिछले तीन साल से सबसे ज्यादा बाघों वाले प्रदेश के साथ नंबर वन पर है और टाइगर स्टेट का दर्जा पा रहा है, क्या इसे बरकरार रखने के लिए कोई पॉलिसी या विशेष योजना पर काम किया जा रहा है?

A. हमारे राज्य में प्रत्येक टाइगर रिजर्व को मैनेज करने के लिए एक वाइल्डलाइफ विंग है, पार्क्स के लिए टाइगर कंजर्वेशन प्लान है, ये प्लान 10 साल के लिए होता है, उस प्लान के लिए मैनेजमेंट होता है। टाइगर रिजर्व एरिया के बाहर जो टेरिटोरियल एरिया है उसके लिए वर्किंग प्लान तैयार किए जाते हैं, वर्किंग प्लान के लिए एक वाइल्ड लाइफ चैप्टर होता है। उसमें वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट की पूरी प्रक्रिया, पूरी प्लानिंग दी जाती है। प्रदेशभर के फॉरेस्ट एरिया एक प्लान के तहत मैनेज किया जाता है। इसमें वाइल्डलाइफ एरिया और टाइगर टेरिटोरियल एरिया भी शामिल हैं। सीएम मोहन यादव ने टाइगर कॉरिडोर बनाने योजना का हाल ही में ऐलान किया था। स्पष्ट है कि सरकार भी कई योजनाएं बना रही है।

Q. एक बाघ को दोबारा गिनने जैसी मिस्टेक्स को कैसे रोका जा सकता है?

A. ये एस्टिमेशन इनडायरेक्ट एविडेंस और डायरेक्ट एविडेंस के माध्यम से किया जाता है। डायरेक्ट एविडेंस जैसे ट्रैप कैमरा से लिए गए फोटोज इसमें शामिल हैं। किसी भी टाइगर के शरीर पर नजर आने वाली धारियां इंसानों की फींगर प्रिंट की तरह अलग-अलग होती हैं, ये धारियां ही उनकी अपनी विशिष्ट पहचान बनाती हैं, जो एक टाइगर को दूसरे से अलग साबित करती हैं। इसे स्ट्राइप पैटर्न कहते हैं। हर टाइगर का स्ट्राइप पैटर्न अलग-अलग होता है, इसलिए कोई भी टाइगर किसी से मैच नहीं हो सकता। इसे एक अलग सॉफ्टवेयर के माध्यम से एनालिसिस किया जाता है। National Tiger Conservation Authority Delhi (NTCA) and Wildlife institute of india Dehradun (WII) एक इंडिवि्ज्यूअल नाम पर यूनिक आईडी देते हैं। फाइनल रेंज भी देते हैं, तो इस तहर की गलती की आशंका न के बराबर रह जाती है। हां लेकिन ये निश्चित है कि एक टाइगर दूसरी बार भी हमारे सामने आ सकता है। लेकिन उसे पहचानना आसान है।

Q. टाइगर एस्टिमेशन के लिए कितने लोगों को ट्रेनिंग दी गई है, कैसे?

A. अभी हमने मास्टर ट्रेनर तैयार किए हैं। 11 स्थानों पर 200 मास्टर ट्रेनर तैयार किए हैं। जबकि इससे पहले हमने डारेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर, फील्ड डायरेक्टर, डीएफओ, सीसीएफ, रेंजर्स हर लेवल के अधिकारियों को ट्रेंड किया है।

Q. एमपी में कितने लोगों की टीम इस एस्टिमेशन में शामिल होगी?

A. अकेले एमपी में इस टाइगर एस्टिमेशन में 18-20 हजार वनकर्मी और अधिकारी शामिल होंगे।

Q. ये एस्टिमेट कब तक पूरा होने की उम्मीद है?

A. 15 नवंबर 2025 से एस्टिमेशन का काम शुरू किया जा रहा है। कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। एस्टिमेशन का ये काम अप्रैल 2026 तक पूरा होने की संभावना है। फिर जो भी डेटा आएगा, वो सारा डेटा wildlife institute of india dehradun को भेजा जाएगा। हमारा यही काम है, हमें डेटा कलेक्ट करके उसे सबमिट करना है। टाइगर एस्टिमेशन 2026 में देश के सभी टाइगर रेंज का डाटा होगा। सभी राज्यों से भेजे गए डेटा का एनालिसिस करके ही टाइगर का रियल एस्टिमेशन सामने आता है। ये हर चार साल में की जाने वाली प्रक्रिया है। इसे टाइगर काउंटिंग नहीं कहा जाता।

अक्टूबर में शुरू हुई थी ट्रेनिंग, 15 नवंबर से कैमरा ट्रैपिंग का काम होगा शुरू

एमपी में ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन 2026 के तहत जबलपुर SFRI टेक्नीकल पार्टनर के रूप में जुड़ा है। इसके तहत वैज्ञानिक डॉ. अनिरुद्ध मजूमदार प्रदेशभर में ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं। अपनी टीम के साथ वे मास्टर ट्रेनर तैयार कर रहे हैं। 15-16 अक्टूबर को पीसीसीएफ लेवल के अधिकारियों को ट्रेनिंग दी गई थी। 24-25 अक्टूबर को डीएफओ लेवल के अधिकारियों, डिविजन लेवल का ट्रेनिंग प्रोग्राम हुआ, अभी रेंज और बीट लेवल में ट्रेनिंग चल रही है। 15 नवंबर से कैमरा ट्रैप लगाने का काम शुरू किया जाएगा। अलग-अलग चार चरणों में पूरा होने वाला ये एस्टिमेट 1 दिसंबर से एमपी में शुरू हो जाएगा। ये पहले चरण का होगा, फरवरी तक सभी चरण पूरे कर लिए जाएंगे। अप्रेल तक फाइनल एस्टिमेशन रिपोर्ट Wildlife Institute of India Dehradun को भेजी जाएगी।

वैज्ञानिक डॉ. अनिरुद्ध मजूमदार के साथ patrika.com की सीधी बात सुनें

एमपी के टाइगर रिजर्व, 6 पुराने 3 नये

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1991 में पहली बार एमपी कहलाया था टाइगर स्टेट Interesting Facts

1991 में पहली बार मिला एमपी को टाइगर स्टेट का दर्जा, तब तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री कमलनाथ ने फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (IIFM) में एक कार्यक्रम में प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिया था। उस समय वन विभाग के अफसरों ने बताया था कि एमपी में 900 से ज्यादा बाघ हैं।

2010 में छिन गया था टाइगर स्टेट का तमगा

टाइगर स्टेट एमपी का तमगा साल 2010 में छिन गया था। 2006 के एस्टिमेशन के मुकाबले बाघों की संख्या 300 से घटकर 257 रह गई थी। 300 बाघों के साथ तब कर्नाटक टाइगर स्टेट बना था।

कर्नाटक ने 2014 में बाघों के एस्टिमेशन में 406 बाघों की गिनती करवा कर अपना टाइगर स्टेट का दर्जा लगातार दूसरी बार भी बनाए रखा।

जबकि 2006 में कर्नाटक में 290 बाघ थे और उनकी संख्या लगातार बढ़ती रही। 2014 के एस्टिमेशन में मध्यप्रदेश में 308 बाघ पाए गए थे।

2019 में दूसरी बार मिला टाइगर स्टेट का दर्जा

2019 के बाघ एस्टिमेशन में मध्य प्रदेश एक बार फिर टाइगर स्टेट बना तब जुलाई में जारी आंकड़ों के मुताबिक एमपी में 526 बाघों को चिह्नित किया गया था। जबकि कर्नाटक तब 524 बाघों की संख्या के साथ दूसरे पायदान पर खिसक गया था। वहीं उत्तराखंड 442 बाघों के साथ देशभर में तीसरे नंबर पर रहा था।

2022 में लगातार दूसरी बार, एमपी तीसरी बार बना था टाइगर स्टेट

2022 में लगातार दूसरी बार मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला था। तब एमपी में 785 बाघ पाए गए थे। बाघों के एस्टिमेशन में पूरे भारत में बाघों की न्यूनतम आबादी 3,167 घोषित की गई थी, जबकि अधिकतम 3,925 वहीं औसत 3,682 बाघ होने का अनुमान लगाया गया। दूसरे पायदान पर कर्नाटक जहां 563 बाघ थे। तीसरे पर उत्तराखंड जहां 560 और महाराष्ट्र 444 बाघों के साथ चौथे स्थान पर था। जबकि पश्चिमी घाट जैसे कुछ क्षेत्रों में बाघों की संख्या कम हुई थी, तब पड़ी थी लक्षित निगरानी और संरक्षण के प्रयासों की जरूरत।

एमपी के नये टाइगर रिजर्व पर भी नजर, यहां पहली बार यहां होगा एस्टिमेशन

इस टाइगर एस्टिमेशन प्रोग्राम में एमपी का रातापानी टाइगर रिजर्व, रानी दुर्गावती नौरादेही टाइगर रिजर्व, माधव टाइगर रिजर्व पहली बार शामिल होंगे। इससे प्रदेश नए संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की उपस्थिति और गतिविधियों का आकलन किया जा सकेगा। टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि, एमपी के अभ्यारण्य, संरक्षित वन क्षेत्र, नेशनल पार्क, सामान्य वन क्षेत्र, अन्य वाइल्ड एनिमल की प्रजातियों की गणना प्रक्रिया भी इससे जुड़ी हुई है।

यहां सुनें डॉ. अनुपम सहाय (IFS) के साथ patrika.com की सीधी बातचीत

अब ये सवाल महत्वपूर्ण

-1-क्या एमपी 785 बाघों की संख्या से आगे बढ़ेगा?
-2-क्या टाइगर रिजर्व के बाहर बाघों की संख्या बढ़ी है?
-3-क्या नई तकनीक से अनुमान से ज्यादा सटीकता आई है?

इन सवालों के जवाब ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन 2026 की फाइनल रिपोर्ट आने पर ही मिलेंगे। फिलहाल तय है कि भारत के जंगलों की नब्ज फिर से परखी जा रही है, उसका दिल अब भी सबसे तेज टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में ही धड़क रहा है। अधिकारी-कर्मचारी जोश में हैं और पूरे उत्साह से अपने दायित्व निभाने की शपथ ले रहे हैं। 'टाइगर स्टेट' की उम्मीदों का आसमां उनकी आंखों में साफ झलक रहा है।