
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान की सुरक्षा को लेकर पूर्व पत्नी जेमिमा खान ने भी चिंता जताई है। (फ़ाइल फोटो: आईएएनएस/एएनआई)
पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) लंबे समय से जेल में बंद हैं। जेल में उनकी हालत को लेकर असमंजस है। उनका परिवार कह रहा है उनके सुरक्षित होने के संकेत नहीं हैं। अगर वह सही सलामत हैं तो सरकार इसका सबूत दे।
उधर, सरकार कह रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में पूरी तरह सुरक्षित (Imran Khan update) हैं।
इमरान के बेटे कासिम ने एक दिसंबर को फिर दोहराया कि उनके पास इमरान खान की सलामती से जुड़ी कोई पुख्ता सूचना नहीं है। उन्होंने कुछ छिपाए जाने की आशंका जताई। एक समाचार एजेंसी को कासिम ने बताया कि वह नवंबर 2022 के बाद इमरान से नहीं मिले हैं।
इमरान की पूर्व पत्नी जेमिमा खान का भी कहना है, ‘वे लोग उनसे फोन पर बात तक नहीं करा रहे। कोई नहीं करा रहा।’
करीब 50 साल पहले जुल्फिकार अली भुट्टो जब जेल में थे तो उनके साथ भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा था। पाकिस्तान में कई नेता ऐसे हुए हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। जेल या निर्वासन में विदेश जाना पड़ा है। जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल में डाला गया तो वह बाहर भी नहीं आ सके। उन्हें जेल में ही फांसी दे दी गई थी।
भुट्टो को जेल में किन हालात का सामना करना पड़ा और फांसी से ऐन पहले उनके व परिवार के साथ क्या सलूक हुआ, इस बारे में खुद भुट्टो और उनकी बेटी बेनजीर ने अपनी-अपनी किताब में लिखा है।
‘डॉटर ऑफ द ईस्ट’ में बेनजीर भुट्टो ने रावलपिंडी जेल में अपने पिता से आखिरी मुलाकात का ब्योरा लिखा है। यह मुलाकात फांसी से एक दिन पहले हुई थी। उन्हें पता नहीं था कि यह उनकी आखिरी मुलाकात होगी और अगले ही दिन उन्हें फांसी दे दी जाएगी।
दो अप्रैल,1979 को अचानक सेना के अफसर उनके घर पहुंचे। उन्हें घर पर बेनजीर की मां मिलीं। उन्होंने उनसे कहा- कल आप लोग जुल्फिकार भुट्टो से मिलने के लिए तैयार रहिएगा। बेनजीर की मां घबरा गईं। बेटी को भाग कर यह बात बताई। उन्हें लग गया कि यह मुलाकात आखिरी होगी।
3 अप्रैल को सैनिक आए और बेनजीर व उनकी मां को रावलपिंडी जेल ले गए। जुल्फिकार अली अपने सेल में बिस्तर पर बैठे थे। वहां उस बिस्तर के सिवा कुछ था भी नहीं। मेज-कुर्सी, चारपाई सब हटाई जा चुकी थी।
पहले मुलाकात सेल के अंदर जाकर होती थी, लेकिन उस दिन सेल का दरवाजा नहीं खुला। सेल में रोशनी इतनी कम थी कि बेनजीर पिता को देख भी नहीं पा रही थीं। सलाखों के बीच से मुलाकात हुई।
पिता ने दोनों को एक साथ देखा तो हैरान हुए, क्योंकि दोनों के लिए मुलाकात का अलग-अलग दिन तय था। पूछा- तुम दोनों एक साथ? क्या ये हमारी आखिरी मुलाकात है? पत्नी से कुछ कहा नहीं गया, बेनजीर ने कहा- ऐसा ही लगता है।
जुल्फिकार अली भुट्टो ने पास ही खड़े जेलर से पूछा- आखिरी मुलाकात है क्या? जेलर ने कहा- हां। उसी से पता चला- कल (4 अप्रैल) पांच बजे सुबह का वक्त तय हुआ है। भुट्टो ने जेलर से कहा- मेरे लिए दाढ़ी बनाने और नहाने का इंतजाम करवाना।
जेलर ने मुलाकात के लिए सिर्फ आधे घंटे का वक्त दिया था। जुल्फिकार भुट्टो ने कहा- नियम से तो एक घंटा बनता है। जेलर बोला- आधा घंटा। ये मेरा हुक्म है।
जुल्फिकार अली अपनी किताबें आदि समेटने लगे और बेनजीर को पकड़ाने लगे। वकील उनके लिए जो सिगार ले आए थे, वह भी बेनजीर के हवाले कर दिया। बस एक रख लिया। कहा- यह आज रात के लिए रख लेता हूं। हाथ की अंगूठी खोलने लगे तो पत्नी ने रोका। इस पर कहा- अभी रहने देता हूं, पर बाद में बेनजीर को दे देना।
उन्होंने पत्नी से कहा, ‘मेरे बाकी बच्चों को भी मेरा प्यार देना। मीर, सनी, शाह को बताना मैंने अच्छा पिता बनने की पूरी कोशिश की और मैं उन्हें अलविदा कहना चाहता था। तुम दोनों ने बहुत सहा है। अब वे मुझे मार डालेंगे तो मैं तुम दोनों को भी आजाद करता हूं। तुम लोग चाहो तो पाकिस्तान से चले जाओ। चैन से रहना है, नए सिरे से जीना है तो यूरोप जा सकती हो। मेरी ओर से इजाजत है। पत्नी ने साफ मना कर दिया।
जुल्फिकार ने बेनजीर से पूछा- और पिंकी, तुम? बेनजीर ने भी साफ कहा- मैं कहीं नहीं जाऊंगी।
तभी अफसर ने कहा- समय पूरा हो गया। बेनजीर गिड़गिड़ाने लगीं- एक बार दरवाजा खोल दो। हम उन्हें अलविदा तो कह दें। पर अफसर ने एक न सुनी। मां-बेटी को जबर्दस्ती ले जाकर गाड़ी में बैठा दिया गया।
अगली सुबह फांसी के बाद जुल्फिकार अली को फौरन दफना भी दिया गया। बेनजीर और उनकी मां को इसकी भनक तक नहीं लगी। वे लाश के साथ जाने के इंतजार में बैठी थीं। तभी जेलर आया और बेनजीर को उनके पिता का सामान (कपड़े, टिफिन का डब्बा, कप आदि) सौंपने लगा।
फांसी से पहले भी जेल में जुल्फिकार अली भुट्टो को बड़ी यातनाएं सहनी पड़ी थीं। उन्होंने ‘इफ आई एम असेसिनेटेड’ नाम की अपनी किताब में बताया है कि उन्हें जेल में बड़े बुरे हाल में रखा गया था। वह बताते हैं कि 18 मार्च, 1978 से उनके 24 में से 22-23 घंटे एक छोटे-से दमघोंटू सेल में ही बीतते थे। आग उगलती गर्मी हो या बरसात, उन्हें उस छोटी सी काल-कोठरी में सड़ांध बदबू के बीच रहना होता था। वहां ठीक से रोशनी तक नहीं आती थी। उन्होंने लिखा है, ‘मेरी आंखें कमजोर हो गई थीं। मेरी सेहत लगातार गिर रही थी। मुझे कैद रहते करीब एक साल हो गया था। लेकिन मेरा मनोबल मजबूत था। मैं उस मिट्टी का बना ही नहीं था, जो आसानी से टूट जाए।’
भुट्टो ने मुकदमे की सुनवाई में भी पक्षपात और भेदभाव का आरोप लगाया। उनके मुताबिक, ‘मुझे मेरे बचाव का मौका ही नहीं दिया गया। कोट लखपत जेल में मुझे मौखिक रूप से सूचना दी गई कि कोर्ट में अपनी बात रखने की इजाजत देने से संबंधित मेरी अर्जी खारिज हो गई है। मैं कोई पेशेवर वकील नहीं था। 9 जनवरी, 1978 से किसी वकील ने मेरा बचाव नहीं किया था।’
सुनवाई के दौरान भुट्टो को जलील किया जाता था। उन्होंने लिखा, ‘मुकदमे की सुनवाई कर रहे जज चाहते थे कि मैं उनके आगे गिड़गिड़ाऊं। मैंने कहा कि एक मुसलमान केवल उस खुदा के सामने ही सजदा करता है, जिसने उसे बनाया। लेकिन, पीठ, खास कर चीफ जस्टिस मुझे बेइज्जत ही करते रहते थे। बाकी अभियुक्तों के साथ उनका बर्ताव काफी नर्म रहता था। यहां तक कि उन्हें अंग्रेजी समझने में दिक्कत आती थी तो जज उर्दू या पंजाबी में अनुवाद करके बताते थे। उनके साथ हंसी-मज़ाक तक करते थे और मुझे ताने मारते थे।’
बता दें कि जुल्फिकार अली भुट्टो को जनरल जिया उल हक ने सत्ता से बेदखल कर दिया था और उन पर राजनीतिक हत्या का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्हें 4 अप्रैल, 1979 को महज 51 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो भी आगे चल कर देश की प्रधानमंत्री बनीं। इस पद से हटने के कुछ साल बाद, 2007 में एक चुनावी रैली में उनकी हत्या कर दी गई थी।
Published on:
02 Dec 2025 05:59 am
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