11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

1964 में हुआ था छत्तीसगढ़ के इस गांव का अधिग्रहण..! कोयले की कीमत पर छिन गया था गांव, जानें 60 साल पहले की कहानी..

Chhattisgarh Coal Mine: कोरबा जिले में स्थित भिलाईखुर्द गांव का नाम आज भी उन लोगों की जुबान पर है, जिनकी जमीनें 1964-65 में एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की मानिकपुर खुली खदान के लिए अधिग्रहित की गई थीं।

4 min read
Google source verification
1964 में हुआ था छत्तीसगढ़ के इस गांव का अधिग्रहण..! कोयले की कीमत पर छिन गया था गांव, जानें 60 साल पहले की कहानी..(photo-patrika)

1964 में हुआ था छत्तीसगढ़ के इस गांव का अधिग्रहण..! कोयले की कीमत पर छिन गया था गांव, जानें 60 साल पहले की कहानी..(photo-patrika)

Chhattisgarh Coal Mine: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित भिलाईखुर्द गांव का नाम आज भी उन लोगों की जुबान पर है, जिनकी जमीनें 1964-65 में एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की मानिकपुर खुली खदान के लिए अधिग्रहित की गई थीं। कोरबा एरिया के मानिकपुर खुली खदान के लिए वर्ष 1964-65 में भिलाईखुर्द सहित आसपास के गांव की जमीन का खदान किया गया था।

शुरूआत में खदान से कोयला उत्पादन की क्षमता एक मिलियन टन थी। उस दौर में औद्योगिक विकास के नाम पर कई गांवों की उपजाऊ जमीनें सरकारी अधिग्रहण की भेंट चढ़ गईं। भिलाईखुर्द उन्हीं में से एक था। ग्रामीणों ने उम्मीद की थी कि विकास के साथ उन्हें भी नए अवसर मिलेंगे, पर 60 साल बाद भी वे मुआवजे और पुनर्वास की निष्पक्ष नीति की राह देख रहे हैं।

Chhattisgarh Coal Mine: कोयले से चमका क्षेत्र, पर ग्रामीणों के हिस्से आई मुश्किलें

शुरूआत में खदान से कोयला उत्पादन की क्षमता एक मिलियन टन थी। समय के साथ-साथ खदान से कोयला उत्खनन बढ़कर अब 5.25 मिलियन टन सालाना हो गया है। पहले अधिग्रहित क्षेत्र के एक छोर पर कोयला उत्खनन हो रहा था। लेकिन खदान विस्तार होने के साथ अब इसका दायरा भी बढ़ गया है।

मानिकपुर खदान से निकला कोयला छत्तीसगढ़ राज्य बिजली कंपनी के संयंत्रों के साथ-साथ कई निजी उद्योगों में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बना। खदान के चलते आसपास के इलाकों में सड़कें, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे का विकास हुआ, पर जिन किसानों की जमीन गई थी, उनके जीवन में स्थायित्व नहीं लौट सका। मुआवजा कम, रोजगार सीमित और पुनर्वास अधूरा- यही कहानी दशकों से दोहराई जा रही है।

जारी है वार्ता का दौर, नहीं बन पा रही सहमति

अगर आगे भी यही स्थिति रही तो प्रबंधन को कोयला उत्पादन की चुनौतियों से जूझना पड़ेगा। हालांकि मानिकपुर प्रबंधन का ग्रामीणों के साथ वार्ता का दौर जारी है। अब तक तीन बार एसईसीएल मानिकपुर प्रबंधन की ग्रामीणों के साथ प्रशासन की मौजूदगी में बैठक और वार्ता हो चुकी है। बताया जा रहा है कि मुआवजा राशि को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। प्रबंधन पूर्व में किए गए अधिग्रहण के नियमानुसार मुआवाजा देने के लिए तैयार है।

भिलाईखुर्द के बुजुर्ग बताते हैं कि अधिग्रहण के समय उन्हें “भविष्य के विकास” का भरोसा दिलाया गया था। परंतु कई परिवार आज भी किराए के मकानों या अस्थायी बस्तियों में रह रहे हैं। खदान की धूल और विस्फोटों की आवाज़ें उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। गांव की बुजुर्ग महिला रामकली बाई कहती हैं- हमने खेत दिए, लेकिन बदले में ना घर मिला, ना रोज़गार। बच्चे अब शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।

Coal Mine: प्रबंधन और ग्रामीणों के बीच जारी है खींचतान

एसईसीएल प्रबंधन का कहना है कि वे पूर्व के अधिग्रहण नियमों के अनुसार मुआवजा देने के लिए तैयार हैं। अब तक ग्रामीणों से कई दौर की वार्ताएँ हो चुकी हैं, पर मुआवजा दर को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। ग्रामीणों की मांग है कि उन्हें वर्तमान बाजार दर के हिसाब से मुआवजा दिया जाए और हर परिवार को स्थायी रोजगार या आर्थिक सहायता मिले। वहीं, प्रबंधन को डर है कि विवाद सुलझा नहीं तो कोयला उत्पादन बाधित हो सकता है, जिससे पूरे क्षेत्र की बिजली आपूर्ति प्रभावित होगी।

हर दिन 15 हजार टन कोयला उत्खनन, पर अंधेरे में ग्रामीण

मानिकपुर माइंस से रोजाना लगभग 15 हजार टन कोयला निकाला जा रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में 8.87 मिलियन टन उत्पादन लक्ष्य तय किया गया है। हालांकि लक्ष्य के मुकाबले उत्पादन अभी धीमा है- अब तक केवल 2.64 मिलियन टन कोयला निकला है।

एसईसीएल के कोरबा एरिया को चालू वित्तीय वर्ष में 8.87 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है। मानिकपुर इस क्षेत्र की सबसे बड़ी ओपनकास्ट कोल माइंस है, जिसमें वर्तमान में 5.25 मिलियन टन कोयला उत्पादन के लक्ष्य के साथ काम किया जा रहा है। वर्तमान में इस खदान से हर दिन 15 हजार टन से अधिक कोयला उत्खनन हो रहा है।

अब 60 साल बाद फिर उठी मुआवजे की मांग

लक्ष्य के मुकाबले अब तक 2.64 मिलियन टन कोयला उत्पादन हुआ है जबकि अब तक यह आंकड़ा तीन मिलियन टन पहुंच जाना चाहिए था। अगर खदान विस्तार के रास्ते की अड़चन दूर नहीं हुई तो आगे खदान में कोयला उत्पादन पर असर पड़ेगा, जिसकी चिंता प्रबंधन को सता रही है।

एसईसीएल के अधिकारियों का कहना है कि अगर जमीन अधिग्रहण का रास्ता साफ नहीं हुआ तो उत्पादन पर असर पड़ेगा। पर ग्रामीण सवाल पूछते हैं- “जब हर दिन हमारे खेतों के नीचे से हजारों टन कोयला निकल रहा है, तो हमारा हक अब तक अधर में क्यों?”

‘विकास बनाम विस्थापन’ की बहस फिर हुई तेज

भिलाईखुर्द की कहानी केवल एक गांव की नहीं, बल्कि उस दौर की है जब उद्योगों के विस्तार के लिए ग्रामीण भारत ने अपनी जमीनें कुर्बान कीं। आज जब खदान विस्तार की नई योजना पर काम चल रहा है, तो यह विवाद फिर उभर आया है। ग्रामीणों का कहना है, हम विकास के विरोधी नहीं, लेकिन हमें न्याय चाहिए। छत्तीसगढ़ के औद्योगिक विकास के बीच यह कहानी याद दिलाती है कि विकास तभी सार्थक है जब वह सबको साथ लेकर चले- न कि किसी की जमीन, घर और पहचान की कीमत पर…

वर्तमान में इसकी सालाना कोयला उत्पादन क्षमता 5-25 मिलियन टन

मानिकपुर एसईसीएल कोरबा एरिया की बड़ी ओपनकास्ट कोल माइंस है। वर्तमान में इसकी सालाना कोयला उत्पादन क्षमता 5-25 मिलियन टन है। लेकिन बढ़ती कोयला जरूरतों को देखते हुए खदान से आने वाले दिनों में 6 से 7 मिलियन टन कोयला उत्पादन की योजना है। इसे सीआईएल बोर्ड से पहले ही मंजूरी के बाद कोयला मंत्रालय भेजा गया है।

आगामी दिनों में खदान विस्तार के साथ ही उत्पादन गतिविधियों में और तेजी की संभावना है,लेकिन यह तभी संभव होगा जब खदान विस्तार के लिए अधिग्रहित क्षेत्र में काम आसानी से हो। यहीं कारण है कि प्रभावित क्षेत्र के लोगों को हटाने के लिए कोशिश में प्रबंधन जुटा हुआ है।