कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Phoro-ANI)
सभी जानते हैं कि भारत में लोकतंत्र मुख्य रूप से जाति और सांप्रदायिक वोट बैंक के आधार पर चलता है। जातिवाद और सांप्रदायिकता सामंती ताकतें हैं। भारत की प्रगति के लिए इन्हें नष्ट करना होगा। इनके विनाश के बिना हम व्यापक गरीबी, बेरोजगारी, बाल कुपोषण, स्वस्थ्य लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव जैसी भयंकर बुराइयों से कभी निजात नहीं पा सकते। भारत में जैसा लोकतंत्र व्यवहार में है वह इन सामंती ताकतों को और मजबूत करता है। तो फिर, भारत में लोकतंत्र कैसे अच्छा हो सकता है? जब लोकतंत्र अच्छा नहीं है, तो मतदाता सूची में धांधली को लेकर इतना हंगामा और शोर क्यों मचाया जा रहा है?
अगर मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी न हो और चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष हों, तो क्या इससे बिहार (और भारत के अन्य हिस्सों) के लोगों के जीवन में सुधार आएगा? क्या इससे व्यापक गरीबी, भारी बेरोजगारी, बच्चों में कुपोषण का भयावह स्तर, उचित स्वास्थ्य सेवा की कमी और खाद्य जैसी आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतें कम होंगी?
अगर मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी न हो, तो क्या बिहार (और अन्य जगहों पर) में अधिकांश लोग जाति और धर्म के आधार पर वोट नहीं देकर, उम्मीदवार की योग्यता के आधार पर वोट देंगे?
सर्वविदित है कि भारत में जब अधिकांश मतदाता वोट देने जाते हैं, तो वे उम्मीदवार की योग्यता, वह अच्छा है या बुरा, शिक्षित है या अशिक्षित, अपराधी है या नहीं, आदि पर विचार नहीं करते। वे बेरोजगारी में तेजी से वृद्धि, कीमतों में वृद्धि आदि पर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल उम्मीदवार की जाति और धर्म (या उसकी पार्टी द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली जाति/धर्म) को देखते हैं। यही कारण है कि
अगर मतदाता सूची पूरी तरह से सही तैयार की जाती है, तो अधिक से अधिक यही होगा कि बिहार में राज्य सरकार का नेतृत्व बदल जाएगा। नीतीश कुमार के बजाय तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन सकते हैं। लेकिन इससे बिहार के लोगों के जीवन में क्या बदलाव आएगा?
मुझे राम चरित मानस में महारानी कैकेयी को कहा गया मंथरा का कथन याद आता है। कैकेयी को भरत के लिए राज सिंहासन की मांग रखने के लिए बरगलाते हुए उन्होंने कहा था, 'कोई नृप होए हमें का हानि। छेरी छांड़ का होइब रानी॥'
मंथरा के कहने का आशय था, 'मुझे इससे क्या फर्क पड़ता है कि राजा कौन है (राम या भरत)? मैं तो दासी ही रहूंगी, रानी नहीं बन जाऊंगी।”
कई लोग राहुल गांधी को भारत के उद्धारक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जैसे कि वह एक नया मूसा हो, जो देश को संकट से निकालकर समृद्धि की भूमि में ले जाएंगे। लेकिन सच्चाई क्या है? हर राजनीतिक गतिविधि और राजनीतिक व्यवस्था का केवल एक ही परीक्षण है- क्या यह लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाती है? क्या यह उन्हें बेहतर जीवन देती है?
राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोली है। यह स्वागत योग्य है (हालांकि मुझे संदेह है कि यह केवल मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिए कहा गया है, न कि मुसलमानों की दुर्दशा के लिए किसी वास्तविक चिंता के कारण)। लेकिन ऐसी घिसी-पिटी बातें करने के बजाय राहुल गांधी को यह बताना चाहिए कि भीषण गरीबी, बेरोजगारी जैसे समस्याओं को कैसे खत्म करेंगे? राहुल गांधी के पास इन समस्याओं का क्या कोई समाधान है? मुझे नहीं लगता है कि उनके पास कोई समाधान है।
Updated on:
19 Sept 2025 05:40 pm
Published on:
19 Sept 2025 04:52 pm
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