
वकीलों से बदसलूकी पर कोर्ट सख्त! थाने में अधिवक्ताओं से मारपीट, कोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों पर FIR के दिए आदेश(photo-patrika)
ग्वालियर। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा है कि कारण आदेश की आत्मा होती है और बिना कारण दिया गया निर्णय न्यायिक नहीं कहा जा सकता। इस आदेश को प्रशासनिक या अर्द्धन्यायिक आदेश न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने दतिया जिले के सेंवढ़ा तहसील के ग्राम पेपरी की जमीन से जुड़े विवाद में उपखंड अधिकारी (एसडीओ), अतिरिक्त कलेक्टर दतिया और अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर के आदेशों को रद्द कर दिया है। साथ ही एसडीओ को निर्देश दिया गया है कि वह मामले की दोबारा सुनवाई कर 90 दिनों के भीतर नया आदेश पारित करे। आदेश में कारण लिखे जाएं।
भूमि आवंटन को लेकर हुआ विवाद
मामला श्रीलाल बनाम अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर एवं अन्य से संबंधित है। वर्ष 1999 में नायब तहसीलदार ने ग्राम पेपरी की सरकारी भूमि खसरा नंबर 202 और 205 का आवंटन एक व्यक्ति को कर दिया था। श्रीलाल ने दावा किया कि वह लंबे समय से उक्त भूमि पर कब्जे में हैं और उन्हें इस आदेश की जानकारी वर्ष 2006 में ही मिली। इसके बाद उन्होंने देरी माफी का आवेदन देकर अपील दायर की।
एसडीओ ने बिलंब माफी के लिए कोई कारण नहीं बताए
28 जुलाई 2006 को उपखंड अधिकारी सेंवढ़ा ने विलंब माफी का आवेदन स्वीकार करते हुए अपील को मंजूरी दी। इस निर्णय को चुनौती देते हुए विरोधी पक्ष ने कहा कि श्रीलाल अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग से नहीं हैं और यह भूमि उसी वर्ग के भूमिहीनों के लिए आरक्षित थी। इसके बाद अतिरिक्त कलेक्टर दतिया ने 15 फरवरी 2007 को एसडीओ का आदेश रद्द कर दिया और अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर ने 9 जुलाई 2007 को उसी निर्णय को बरकरार रखा। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में श्रीलाल ने याचिका दायर की। कोर्ट ने कहा कि एसडीओ का आदेश “कारणरहित” था। न तो अपील स्वीकार करने के कारण बताए गए थे और न ही देरी माफ करने के लिए कोई ठोस आधार लिखा गया था।
Published on:
09 Nov 2025 01:42 am
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