
बाल दिवस : अधिकार कहां... न सही सुरक्षा और शिक्षा, न ही मूलभूत सुविधाएं
बाल दिवस को बच्चों की खुशियों, उनके अधिकारों और भविष्य को समर्पित बताया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बच्चे आज सबसे ज्यादा उपेक्षा और असुरक्षा के शिकार हैं। पूर्व संध्या पर पत्रिका ने जायजा लिया तो पाया कि स्कूलों में शुद्ध पेयजल, पोषण, स्वास्थ्य और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी बच्चों के लिए अधूरी हैं। ऊपर से शोषण, दुर्व्यवहार और हिंसा की घटनाएं आम होती जा रही हैं। संविधान में बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है, पर जमीनी स्तर पर इन प्रावधानों का पालन कहीं नजर नहीं आता और न ही नीतियां बनाते समय बच्चों की आवाज को शामिल किया जाता है।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को तम्बाकू और नशे से दूर करने के लिए कई नियम बनाए गए हैं। स्कूल के बाहर 100 मीटर के दायरे में यलो लाइन लगानी है ताकि इस क्षेत्र में कोई तम्बाकू युक्त पदार्थ की बिक्री न हो लेकिन राजधानी में एक स्कूल के बाहर ऐसी कोई लाइन नजर नहीं आती। तम्बाकू और गुटखा बेचती दुकान जरूर नजर आ जाएगी। शासन ने यलो लाइन के बाद रेड लाइन भी लाई लेकिन ये यह योजना भी फेल होती नजर आ रही है। प्रशासन ने तो नियम बना दिए, पर वे केवल फाइलों में धूल खा रहे हैं, ग्राउंड में कुछ नहीं किया गया है।
बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए संविधान में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लाया गया। इसमें काम भी अच्छा हो रहा है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों के खेल में बच्चे फंसे हुए हैं। जानकारी के अनुसार इस साल हजारों प्राइवेट स्कूलों ने छत्तीसगढ़ बोर्ड की किताबें नहीं ली है। यानी इससे समझा जा सकता है कि बच्चों को जबरन प्राइवेट पब्लिशर की किताबों से पढ़ाई करनी पड़ रही है। प्राइवेट स्कूल में आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों ने जब टीसी मांगा तो उनसे पूरी एडमिशन फीस लेने के बाद ही उनको पूरे डॉक्यमेंट दिए गए। गरीब बच्चे प्राइवेट स्कूल में अच्छी पढ़ाई के लिए भर्ती तो ले लेते हैं लेकिन उन्हें खर्चा भी काफी उठाना पड़ जाता है।
शिक्षा व्यवस्था में शुद्ध पेयजल, स्वच्छता जैसे सुविधाओं को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन राज्य में स्कूलों की हालत दयनीय है। जर्जर होते स्कूल, साथ ही टॉयलेट और अन्य सुविधाओं के लिए बच्चों को कैंपस के बाहर जाना पड़ता है। शिक्षा मंत्रालय की यूडीआईएसई प्लस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के लगभग 6500 स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट और लगभग 10 हजार स्कूलों में बॉयज टॉयलेट नहीं हैं। वही शिक्षा विभाग के अनुसार 800 स्कूलों में पानी भी उपलब्ध नहीं है। स्कूलों में यह सुविधा नहीं है तो शिक्षा व्यवस्था और बच्चों के विकास पर कैसे काम किया जा सकेगा।
राज्य में प्राइवेट स्कूलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। राजधानी की ही बात की जाए तो हर गली-मोहल्ले में स्कूल दिखाई देते हैं। बच्चों के ओवरऑल डवलपमेंट के लिए खेल कूद के लिए प्लेग्राउंड को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन कई स्कूलों में बच्चों के खेलने के लिए कोई सुविधा नहीं होती। कई स्कूल 12वीं तक संचालित हो रहे हैं, लेकिन उनके पास कोई प्लेग्राउंड नहीं है। प्लेग्राउंड होते भी हैं तो ऐसी जगह में जहां बच्चे हर रोज जाकर नहीं खेल सकते। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 12 हजार से ज्यादा स्कूलों में प्लेग्राउंड की सुुविधा ही नहीं है। जो बच्चों के अधिकारी का सरासर हनन ही माना जा सकता है।
Updated on:
13 Nov 2025 11:35 pm
Published on:
13 Nov 2025 11:34 pm
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