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700 साल पुराने मंदिर में सीएम करेंगे विशेष पूजा, जन्माष्टमी के दिन होगा खास आयोजन

MP News- जन्माष्टमी पर मुख्यमंत्री मोहन यादव 700 साल पुराने प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर में विशेष पूजा करेंगे, जहां श्रीकृष्ण, राधा और रुक्मणि की प्रतिमाएं एक ही पत्थर पर उकेरी गई हैं।

cm mohan yadav radha krishna temple janmashtami mp news
cm mohan yadav radha krishna temple janmashtami (फोटो- Patrika.com)

MP News- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) पर इस बार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav) रायसेन जिले की गैरतगंज तहसील के ग्राम महलपुर पाठा स्थित प्राचीन श्रीराधा-कृष्ण मंदिर में पूजा करने आएंगे। संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित श्रीकृष्ण पर्व-हलधर महोत्सव एवं लीला पुरुषोत्तम का प्रकटोत्सव कार्यक्रम में शामिल होंगे। यह मंदिर लगभग सात सौ साल पुराना बताया जा रहा है। इस प्राचीन मंदिर से कई किवदंतियां जुड़ी है।

बताया जाता है कि आला-ऊदल भी यहां पूजन करने आते थे। मकर संक्रांति पर यहां हर साल मेला लगता है। अभी तक जिले के लोगों के लिए यह स्थान श्री राधा-कृष्ण मंदिर के साथ ढक्कन मेला के लिए ज्यादा जाना जाता है। अब मुख्यमंत्री यहां विराजे श्रीकृष्ण, राधा रानी और रुकमणि की पूजा करने आएंगे तो मंदिर की प्रसिद्धि और बढ़ेगी।

एक पत्थर पर उकरी है तीनों प्रतिमाएं

मंदिर के पुजारी पंडित प्रकाश शुक्ला ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण, राधा और रुकमणि की प्रतिमाएं एक ही पत्थर पर उकेरी गई हैं, जो बेहद खूबसूरत है। पं. शुक्ला ने बताया कि बुजुर्गों के अनुसार मंदिर लगभग सात सौ साल पुराना है। पहले यह प्रतिमाएं छोटी से मढ़िया में रखी थीं, 1960 में यहां मंदिर का निर्माण किया गया।

जुड़ी है कई कहानियां

क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि यह राधा-कृष्ण मंदिर (Radha Krishna Temple) के बगल में बनी प्राचीन बावड़ी का अपना इतिहास है. कहा जाता है कि इस बावड़ी पर पत्थर का एक ढक्कन रखा होता था। हर दिन यहां आने वाले श्रद्धालुओं को चांदी के बर्तनों में भोजन कराया जाता था और समी बर्तन बावड़ी में रखकर ऊपर ढक्कन रखा जाता था। सैकड़ों साल पहले किसी व्यक्ति ने ढक्कन हटाकर बर्तन चुराने का प्रयास किया तब उक्त ढक्कन उसके उपर गिर गा, जिससे उसकी मौत हो गई और ढक्कर के दो टुकड़े हो गए, जो आज भी बावड़ी के पास पड़े हैं।

किले के अवशेष

मंदिर से कुछ दूरी पर एक विशाल किला के अवशेष हैं। कुछ दीवारें, कुछ मीनारें आज भी मौजूद हैं। इसे सहल कहा जाता था। इसी के नाम पर गांव का नाम महलपुर पाठा पड़ा। लोगों ने दबे हुए धन की लालच में किला परिसर में हर तरफ खुदाई कर इसे और खंडहर बना दिया।