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जब संपन्नों का त्याग बना गरीबों का अधिकार, उठी सामाजिक न्याय की मिसाल, 80,332 ने छोड़ी खाद्य सुरक्षा

राजस्थान में इन दिनों एक ऐसा सामाजिक आंदोलन आकार ले रहा है जो सरकारी नीति के साथ-साथ नागरिक चेतना की परिपक्वता का भी प्रतीक बन गया है।

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Food Security News

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राजसमंद. राजस्थान में इन दिनों एक ऐसा सामाजिक आंदोलन आकार ले रहा है जो सरकारी नीति के साथ-साथ नागरिक चेतना की परिपक्वता का भी प्रतीक बन गया है। ‘गिव अप अभियान’, जो खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है, अब प्रदेश में सामाजिक न्याय और स्वैच्छिक त्याग का पर्याय बन चुका है। यह अभियान न केवल सरकारी व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ा रहा है, बल्कि यह समाज में ‘नैतिकउत्तरदायित्व’ और ‘संवेदनशीलता’ की भावना को भी मजबूत कर रहा है। जहां संपन्न वर्ग खुद आगे आकर कह रहा है कि जो हक मेरा नहीं, वह किसी गरीब को मिले।

अभियान की पृष्ठभूमि: सेवा, संवेदना और सामाजिक समानता का संगम

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने यह अभियान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत शुरू किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य थावास्तविक जरूरतमंदों तक अन्न का अधिकार पहुंचाना। राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा के अनुसार, यह पहल मात्र एक सरकारी योजना नहीं है, बल्कि एक नैतिक जनआंदोलन है, जिसमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी आवश्यक है। गोदारा कहते हैं, गिव अप अभियान ने यह साबित किया है कि राजस्थान के नागरिकों में सेवा और संवेदना का भाव जिंदा है। जब सक्षम व्यक्ति अपनी पात्रता छोड़ता है, तो वह किसी गरीब के थाली में अन्न का दाना जोड़ देता है।

राज्यव्यापी उपलब्धि: 37.62 लाख अपात्रों ने स्वेच्छा से छोड़ी खाद्य सुरक्षा

प्रदेश में अब तक 37 लाख 62 हजार ऐसे लोगों ने स्वेच्छा से खाद्य सुरक्षा का लाभ त्याग दिया है जो आर्थिक रूप से सक्षम माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, 27 लाख से अधिक लोगों ने ई-केवाईसी प्रक्रिया पूरी नहीं की, जिससे उनका नाम स्वतः सूची से हट गया। इस प्रकार कुल मिलाकर 65 लाख 25 हजार नए पात्र और वंचित परिवारों को खाद्य सुरक्षा योजना के तहत जोड़ा गया जो किसी भी राज्य के लिए सामाजिक पुनर्वितरण का सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है।

राजसमंद का उदाहरण: 80,332 संपन्न परिवारों ने दिखाया अनुकरणीय साहस

राजसमंद जिले ने इस अभियान में पूरे प्रदेश में एक मिसाल कायम की है। जिला रसद अधिकारी विजय सिंह ने बताया कि अब तक जिले में 80,332 संपन्न परिवारों ने स्वेच्छा से खाद्य सुरक्षा का अधिकार त्याग दिया है। इन रिक्त स्थानों के कारण 94,400 नए पात्र परिवारों को सूची में शामिल किया गया, जिससे जिले में सामाजिक न्याय की नई परिभाषा लिखी गई। यह आंकड़ा दिखाता है कि स्थानीय स्तर पर भी लोगों ने इसे केवल एक सरकारी पहल नहीं, बल्कि मानवीय दायित्व के रूप में स्वीकार किया।

31 अक्टूबर तक बढ़ी अभियान की अवधि

अभूतपूर्व सफलता को देखते हुए राज्य सरकार ने इस अभियान की अवधि 31 अक्टूबर 2025 तक बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस अवधि में प्रत्येक जिले में प्रचार, समीक्षा और सत्यापन कार्य को और सघन रूप से संचालित किया जाएगा। गोदारा ने बताया कि यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक हर गरीब को उसका हक और हर अपात्र व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं हो जाता।

अपात्रों से वसूली में सख्ती, पारदर्शिता पर जोर

राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि जो लोग अब भी अपात्र होने के बावजूद लाभ ले रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। इनसे 30.57 रुपए प्रति किलो गेहूं की दर से वसूली की जाएगी। इसके लिए विभागीय टीमों द्वारा डोर-टू-डोर सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है। पंचायत समितियों, नगरपालिकाओं और कलेक्ट्रेट में अपात्रों की सूची सार्वजनिक रूप से चस्पा की जा रही है ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया हुई आसान

पहली बार विभाग ने नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और सरल बनाया है। अब कोई भी पात्र व्यक्ति ई-मित्र केंद्र या विभागीय पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन कर सकता है। इसके लिए शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में विशेष जांच दलों का गठन किया गया है। साथ ही, जिला कलेक्टरों को भी खाद्य सुरक्षा सूची में नाम जोड़ने का अधिकार दिया गया है, जिससे किसी भी पात्र व्यक्ति को सुविधा से वंचित न रहना पड़े।

कौन हैं अपात्र- दिशा-निर्देश स्पष्ट

विभाग ने अपात्र परिवारों की परिभाषा स्पष्ट कर दी है। निम्नलिखित श्रेणियों के परिवार खाद्य सुरक्षा योजना के लिए अपात्र माने जाएंगे:

  • जिनके परिवार का कोई सदस्य सरकारी, अर्द्धसरकारी या स्वायत्तशासी संस्था में नियमित कर्मचारी या अधिकारी है।
  • जो व्यक्ति 1 लाख से अधिक वार्षिक पेंशन प्राप्त करता है।
  • जो आयकरदाता है।
  • जिनके पास चारपहिया वाहन (ट्रैक्टर या एक वाणिज्यिक वाहन को छोड़कर) है।

इन मापदंडों के माध्यम से सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि खाद्य सुरक्षा केवल जरूरतमंदों के लिए है, न कि सुविधा संपन्न वर्ग के लिए।

निरीक्षण और निगरानी व्यवस्था: जवाबदेही की नई रेखा

राज्य स्तर पर इस अभियान की निगरानी के लिए उपायुक्तों और संभागीय अधिकारियों को विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्वयं मंत्री सुमित गोदारा अब तक 32 जिलों का दौरा कर चुके हैं और उन्होंने जिला अधिकारियों से सीधी समीक्षा बैठकें की हैं। हर जिले में साप्ताहिक एवं पाक्षिक समीक्षा रिपोर्ट मुख्यालय भेजी जा रही है ताकि किसी भी अनियमितता पर तत्काल कार्रवाई हो सके।