Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अपने भीतर देवों को जगाने का दिन है देव उठनी एकादशी

देवउठनी एकादशी : आसुरी शक्तियों के चंगुल से बाहर निकल कर देवों की शरण में चले जाने के संकल्प का दिन

3 min read
Google source verification
apara ekadashi may 2025 date

apara ekadashi may 2025 date: अपरा एकादशी मई 2025 महत्व (Photo Source: Pinterest)

गेस्ट राइटर डॉ मुरलीधर चांदनीवाला

रतलाम। देव उठनी एकादशी को हम लोग यह समझ कर मनाते हैं कि इस दिन देव जाग उठते हैं। यह हमारी गरीब सोच है कि अभी तक देव सोये पड़े रहे, और अब जाग उठेंगे। देवों को निमिष भर के लिये झपकी भी लग जाये, तो पूरे ब्रह्माण्ड में खलबली मच जाये। देव कभी नहीं सोते। जो सो जाये, वह देव ही कैसे? क्या यह सम्भव है कि देव निद्रा में लीन हो जायें, और संसार-चक्र चलता रहे। संसार को चलाने के लिये देवों को लगातार श्रम करना पड़ता है। उनमें आपसी समन्वय होता है, संगठन होता है। देवों के बीच कभी कोई स्पर्धा नहीं होती, वैमनस्यनहीं होता। वे एक-दूसरे के सहायक होते हैं। वे हमेशा जागते रहते हैं, और सोये हुओं को जगाते रहते हैं।

देव उठनी एकादशी का दिन अपने भीतर देवत्व को जगाने का दिन है। मनीषियों ने हमें बताया है कि हमारे भीतर देव भी हैं, असुर भी हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम देवों के साथ चलना चाहते हैं, या असुरों के। असुर हमें अंधकार में धकेलते हुए छल-प्रपंच, मिथ्या आडम्बर, लोभ, झूठ, हिंसक विचार, दुराचार, दुराग्रह, चारित्रिक दुर्बलता, वैमनस्य, घृणा और महापातकों के लिये सक्रिय कर हमारी चेतना पर काबिज रहने का प्रयास करते हैं। इसके विपरीत देव हमें प्रकाश में ले चलते हैं, प्रेम ओर सत्य के लिये प्रेरित करते हैं, सदाचार की पहल करते हैं, हमारी जिजीविषा को जगाये रखते हैं, हममें त्याग और उदारता का बीज बोते हैं, हमें धैर्यपूर्वक काम करते रहने का परामर्श भी देते हैं।

मनुष्य में धैर्य कहां?

लेकिन मनुष्य में धैर्य कहां? वह फटाफट बाजी अपने पक्ष में करने के लिये असुरों की सहायता लेते-लेते पूरी तरह उनके जाल में फंस जाता है। वह बाहर तो यही दिखाता है, वह सत्य के साथ खड़ा है, लेकिन असुर उसे झूठ के झूले में झुलाते हुए ऐसे चमत्कार दिखाने लगते हैं कि मनुष्य देवों से मुंह फेरने लगता है। उसे यह आभास होता है कि देव सो गये हैं, और अब वह सब मनमानी कर सकता है। इसे ही देवों का शयन कहते हैं। देवों की सहायता को कोई दबाकर रख दे, तो जीवन में बहुत सारे उपद्रव होने लगते हैं। मनुष्य को अंधकार और अंधविश्वास घेर लेते हैं।

भागवत प्रेम का विषय है

देव उठनी एकादशी का दिन आसुरी शक्तियों के चंगुल से बाहर निकल कर देवों की शरण में चले जाने के संकल्प का दिन है। अपने भीतर देवों को जगाने का यह दिन हमारा भाग्य बदल सकता है। प्रेम और शान्ति चाहिए, तो देव ही दे सकते हैं। जीने का उत्साह बना रहे, और यह जीवन सृजन का उत्सव बने, तो अपनी चेतना के तार देवों से पल-प्रतिपल जोड़कर रखना होगा। यह साधना का विषय है, निर्मल चित्त का विषय है, भागवत प्रेम का विषय है। देव-उठनी एकादशी को सामान्य पूजा-पाठ और उपवास के साथ-साथ निश्छल मन से देव-जागरण के अनुष्ठान का दिन बनाकर हम अपने में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इस दिन की सार्थकता भी तभी है, अन्यथा यह भारतीय पंचांग की तिथि भर है।

विष्णु सोते नहीं, तपस्या करते

इन सबके बावजूद यह पौराणिक सच है, कि इस दिन शेषशायी विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। योगनिद्रा भारतीय योगशास्त्र और अध्यात्म का एक गम्भीर विषय है। योगनिद्रा आराम की ऐसी नींद नहीं है, जिसे घोड़े बेचकर सो जाना कहा जाता है। वह महा-सृजन की प्रकाश-यात्रा है। योगनिद्रा में विष्णु सोते नहीं, अविराम जागते हुए तपस्या करते हैं। चातुर्मास में उनकी जो अखंड तपस्या है, उसी का आनंदमय प्रतिफल लेकर वे आज के दिन प्रकट होते हैं। सरल शब्दों में समझा जाये, तो देव उठनी एकादशी का दिन शेषशायी विष्णु का सिद्धि दिवस है।

चातुर्मास की औपचारिक बिदाई

देव उठनी एकादशी के दिन चातुर्मास की औपचारिक बिदाई होती है। केवल मनुष्य ही नहीं, समूची प्रकृति खिल उठती है। प्रकृति को महसूस होने लगता है कि कोई उसे अमृत प्रकाश से सींच रहा है। पोर-पोर में उत्साह जाग जाता है। मनुष्य शुभ कार्यों की ओर सहज ही प्रवृत्त हो जाता है। एक मंगल वेला हमारे पास दौड़ी हुई चली आती है। हमारे मन के आंगन में उत्सव का दीप प्रज्वलित हो जाता है। वास्तव में तो यह प्रकृति के उन पुण्यों का उदय है, जिसमें मनुष्य शामिल होना चाहता है। किसी अभिशाप से मुक्त होने जैसी अनुभूति देने वाला देव उठनी एकादशी का यह दिन हम सभी के लिये मंगलमय हो।

संबंधित खबरें