आशीष पाठक की रिपोर्ट
Independence Day 2025 : वैसे तो भारत देश 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता के दिन की यादगार के रूप में हर साल इसी दिन आजादी के जश्न के रूप में स्वतंत्रता दिवस मनाता है। लेकिन, मध्य प्रदेश के अंतर्गत आने वाले रतलाम जिले के पिपलौदा की कहानी इससे थोड़ी अलग है। पिपलौदा राज्य 1947 में नहीं, बल्कि 1 साल बाद भारत में विलय हुआ था। वो भी तब जब आंदोलन के दौरान दिनभर गोलियां चली थीं, जिसमें कई घायल हुए और कई लोगों की मौत हुई थी। तब ताबड़तोड़ रात में पिपलौदा राज्य को भारत में विलय किया गया।
उस समय की घटना के साक्षी और आंदोलन में शामिल रहे रतलाम के अलकापुरी में रहने वाले 96 वर्ष के बलभद्र सिंह राव, जिन्होंने उस आंदोलन को लेकर पत्रिका.कॉम से एक-एक घटना के संबंध में विस्तार से चर्चा की।
राव ने बताया जिले के पिपलौदा तहसील का भारत राज्य में विधिवत विलय 1947 के बाद हुआ। आजादी के पहले भारत 562 छोटी बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। जब देश आजाद हुआ, तब सरदार पटेल एकीकरण अथक प्रयासों से अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय की सेहमति दे दी। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर ने तब तत्काल स्वीकृति नहीं दी, जिसके चलते इन रियासतों से भारत सरकार का खासा संघर्ष चला। उस समय के मध्य भारत की रतलाम जिले की छोटी रियासत पिपलौदा में अंग्रेजों का माइनारिटी एडमिनिस्ट्रेशन चलवाया था, क्योंकि 1936 में राजा मंगलसिंह पिपलौदा के निधन के समय उनके वारिस रघुनाथ सिंह अवयस्क थे।
यहां अंग्रेजों ने एक अधीक्षक नियुक्त किया जो इंदौर के पॉलिटिकल एजेंट के अधीन प्रशासक थे। कुलेसिंह, फूलसिंह, नाथूलाल पांडे, आरडी तिवारी ने प्रशासक का दायित्व निभाया। ये 1936 से 1947 तक चला। इसके पूर्व 1924 से पिपलौदा, जावरा के अधीन राज्य था जो 1936 तक रहा। जब देश आजाद हुआ तो ये अधिकार राजमाता केशवकुमारी को मिल गए। तत्कालीन रियासत ने विलय में देरी की तो एक समानांतर सरकार का गठन हुआ जिसने राजमाता (सत्ता)और जनता में संघर्ष शुरू हुआ, जो पिपलौदा जन आंदोलन के नाम से विख्यात हुआ। इतिहास में जन आंदोलन सेनानियों ने संघर्ष किया। लाठियां, विद्रोह और भिड़ंत में गोलियां चली।
वयोवृद्ध राव ने पत्रिका को बताया आजादी के लिए पिपलौदा राज्य कांग्रेस की स्थापना 1946 में की गई। राजघराने के प्रवीण सिंह अध्यक्ष, झाबुआ सरकार के दीवान थे नाथूसिंह राव (मेरे पिता) उपाध्यक्ष बनाए गए। डॉ. दरयावसिंह राव (चाचा जी), ब्रिज किशोर व्यास, तेजमल नांदेचा, सृजनमल आजाद, रतनलाल नगर, भगवतीलाल उपाध्याय, बलभद्रसिंह राव, भेरू सिंह, रंजीत सिंह राठौर आदि ने सक्रिय कार्यकर्ताओं की बागडोर संभाली। कांग्रेस के इन युवाओं ने तब राज्य में उत्तरदाई शासन की मांग उठाई और राजतंत्र की जगह लोकतांत्रिक सरकार का मुद्दा उठाया।
शासन बनाने की मांग का समर्थन देशी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष सैय्यद हामिद अली ने किया। कन्हैयालाल खादीवाला, सीताराम जाजू, गोपीकृष्ण विजयवर्गीय, डॉ. देवी सिंह राठौर ने निरंतर जोश भरा। सरदार पटेल ने खुद कांग्रेस प्रतिनिधियों को दिल्ली बुलाया। इसमें हम 3 लोग कुंवर प्रवीण सिंह, डॉ. देवीसिंह और स्वयं मैं सरदार पटेल से मिला। पटेल ने रियासत विभाग देख रहे वी.पी मेनन से मिलवाया। मेनन ने अहिंसक आंदोलन से विलीनीकरण का रास्ता बताया और समानांतर सरकार को मान्यता दी। इसके बाद बृजकिशोर व्यास और मैंने ने हस्त लिखित परचे निकाले और एक पुस्तक भी निकाली, इसका नाम "पिपलौदा समाचार" रखा। इसे मैं संपादित करता और भूमिगत रह कर जन-जन में पहुंचाता रहा।
राव ने पत्रिका को बताया इससे जनता में जोश भर गया। 20 मई 1948 को पिपलौदा के थानेदार प्रताप सिंह को राजमाता के महल में बंदी बना लिया। जनता में आक्रोश भर गया उन्होंने राजदरबार के दीवान सुगनचंद को झंडा चौक में बंदी बना लिया। इसके बाद राजमहल के केसर विलास से 82 बार गोलियां चली। पुलिस ने कर्फ्यू लगा दिया और थाने की बैरिक से पाइंट 50, थ्री नाट थ्री की बंदूकें वितरित कर दी। सूरजपोल के पास युवा सेनानियों ने घाटी से मोर्चाबंदी की। अफ़रा-तफरी मच गई। सत्ताराज ने इन सेनानियों को हिंसक अराजकता वादी बता कर सीआरपीएफ को बुला लिया और सत्ता विलीनीकरण में इतना विलंब किया कि 1948 आ गया। सीआरपीएफ और जनता के बीच हिंसा में दो जवान मारे गए और सुजानमल आजाद घायल हो गए। गृह मंत्रालय से असिस्टेंट रीजनल कमिश्नराज बहादुर कौल पिपलौदा पहुंचे और प्रशासक के रूप में राजमाता से शासन अपने हाथ में लिया। समानांतर सरकार ने भी अपना कार्यभार सरकार को सौंप दिया।
तब और अब में क्या बड़ा बदलाव देखते है, सवाल करने पर राव ने कहा, तब कर्तव्य की बात होती थी, अब अधिकार की बात होती है। देशप्रेम बस 15 अगस्त, 26 जनवरी और पाकिस्तान के मामले में नजर आता है।
Published on:
14 Aug 2025 03:40 pm