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यूपी के इस गांव में 300 साल से नहीं मनाया गया रक्षाबंधन, राखी देखकर दूर भागते हैं गांव के लोग, जानें वजह

Raksha Bandhan News: उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले के बेनीपुर चक गांव में पिछले 300 सालों से रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता। एक ऐतिहासिक घटना में पूर्वज ने राखी के बदले अपनी पूरी जमींदारी बहन को दे दी थी।

सम्भल

Mohd Danish

Aug 08, 2025

Raksha Bandhan No Rakhi Tradition in UP Village for 300 years
यूपी के इस गांव में 300 साल से नहीं मनाया गया रक्षाबंधन | AI Generated Image

Raksha Bandhan No Rakhi Tradition in UP Village: त्योहारों के मौसम में जहां देशभर में रक्षाबंधन की रौनक दिखाई देती है, वहीं उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले का बेनीपुर चक गांव इस खुशी से हमेशा दूर रहता है। यहां पिछले 300 सालों से बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बांधतीं। विवाहिताएं भी मायके जाकर त्योहार नहीं मनातीं। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी गांववाले इसे सख्ती से निभाते हैं।

राखी देखकर दूर भागते हैं लोग

बेनीपुर चक, सम्भल से आदमपुर मार्ग पर लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। बदलते वक्त और आधुनिकता के बावजूद यहां रक्षाबंधन न मनाने की 300 साल पुरानी परंपरा कायम है। गांव के बुजुर्ग सौरान सिंह और विजेंद्र सिंह बताते हैं कि एक राखी के कारण उनके पूर्वज को पूरी जमींदारी गंवानी पड़ी थी, जिसके बाद से यह त्योहार गांव में हमेशा के लिए बंद हो गया।

एक राखी के बदले छीन ली गई थी जमींदारी

गांव के जबर सिंह के अनुसार, उनके पूर्वज मूल रूप से अलीगढ़ की तहसील अतरौली के गांव सेमरा में रहते थे। उस समय वहां यादव और ठाकुर समाज की आबादी थी। ठाकुर परिवारों में बेटा न होने के कारण उनकी बेटियां यादव परिवार के बेटों को भाई मानकर राखी बांधती थीं।

एक बार ठाकुर परिवार की एक बेटी ने अपने मुंह बोले भाई से राखी बांधकर पूरे गांव की जमींदारी मांग ली। भाई ने वचन निभाते हुए उसे जमींदारी सौंप दी और अपना गांव छोड़ दिया। इसके बाद उनका परिवार सम्भल के बेनीपुर चक गांव में आकर बस गया।

महादान की याद में न मनाने की परंपरा

गांव के बुजुर्ग राजवीर कहते हैं, "हमारे पूर्वज ने राखी के बदले ठाकुर समाज की बेटी को सारी जायदाद दे दी थी। यह महादान था। अब उसके बाद छोटा-मोटा दान करना हमें अपनी तौहीन लगता है, इसलिए हम त्योहार ही नहीं मनाते।"

युवा पीढ़ी भी निभा रही है रिवाज

बेनीपुर चक की 18 वर्षीय नितिशा बताती हैं, "त्योहार अच्छा लगता है, लेकिन जब हमारे पूर्वज नहीं मनाते थे, तो हम क्यों मनाएं? हम परंपरा को तोड़ना नहीं चाहते।"

45 वर्षीय धारा, जो 25 साल पहले शादी कर गांव आईं, कहती हैं, "जब कभी गांव में रक्षाबंधन मनाया ही नहीं गया, तो हम भी नहीं मनाते।"

18 वर्षीय सुलेन्द्र यादव बताते हैं, "हमारे घर में चार बहनें हैं। त्योहार न मनाने का अफसोस तो होता है, लेकिन परंपरा के खिलाफ नहीं जा सकते।"

परंपरा बन गई पहचान

बेनीपुर चक में रक्षाबंधन न मनाना अब सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि गांव की पहचान बन गया है। यहां के लोग मानते हैं कि यह त्याग और वचन निभाने की मिसाल है, जिसे टूटने नहीं देना चाहिए।