सिवनी. नया शिक्षण सत्र शुरु हो गया है। हर तरफ प्राइवेट स्कूलों के बैनर-होर्डिंग्स के अलावा ऑनलाइन भी बेहद प्रचार हो रहा है। अभिभावक भी प्राइवेट स्कूलों में अपने बेटे-बेटी का एडमीशन लेने के लिए मोटी रकम खर्च करने और मासिक शुल्क देने में भी पीछे नहीं हैं। जब बात कॉपी-किताब, यूनिफार्म या दूसरी सुविधाओं की आती है, तब भी अच्छी खासी रकम हर महीने पालक खर्च करने के लिए राजी हैं। बच्चों की प्राथमिक स्तर की शिक्षा पर ही जब माता-पिता भारी-भरकम राशि खर्च कर रहे हैं, तब शिक्षा के महत्व को समझा जा सकता है। वहीं यह सवाल भी उठता है कि क्यों अभिभावक खर्चीले स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, जबकि सरकार ने हर गांव और मजरे-टोले तक प्राथमिक शाला खोलकर शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य रुप से उपलब्ध कराया है।
बड़ी बात तो ये है कि सरकारी स्कूलों में खुद सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के बच्चे भी नहीं पढ़ रहे हैं। सरकारी स्कूलों में जो शिक्षक-शिक्षिका बहुत ही सेवाभाव से पढ़ा रहे हैं, वे भी अपने बच्चों का प्रवेश महंगे प्राइवेट स्कूलों में कराए हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में वर्षों से कार्य कर रहे लोग कहते हैं कि जब तक सरकार शिक्षकों को बीएलओ, ऑनलाइन एंट्री, वर्चुअल मीटिंग, बैठक जैसे कार्यों से मुक्त नहीं करेगी, सरकारी स्कूलों में शिक्षा और व्यवस्था में बहुत बदलाव नहीं आ पाएगा। संसाधन तो बढ़ाए जा सकते हैं, लेकिन शिक्षा प्रदान करने के उत्साह में जो कमी आ रही है, उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
इनका कहना है -
शिक्षा का महत्व समय के साथ बढ़ रहा है। हम चाहते हैं कि हमारी संतान हमसे भी आगे बढ़े, इसके लिए हमने बहुत सोचा तब एक महंगे प्राइवेट स्कूल में एडमीशन लिया। सरकारी स्कूल तो घर के पास है, लेकिन वहां शिक्षा और व्यवस्था में बहुत सुधार की जरूरत है।
सुरेन्द्र बोरीकर, अभिभावक
सरकारी स्कूल के शिक्षकों पर कई सारे काम शासन-प्रशासन ने दे रखे हैं, जिससे वो पढ़ाने से ज्यादा तो लिखा-पढ़ी में लगे रहते हैं। ऐसे में बच्चों के भविष्य की चिंता हर माता-पिता को होती है। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार होना चाहिए, तभी वहां संख्या बढ़ेगी।
आनंद सिंह, अभिभावक
सरकारी स्कूलों के शिक्षक खुद अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। यदि सरकारी स्कूलों में शिक्षा और व्यवस्था अच्छी हो गई है, तो शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों के बच्चों को भी वहीं पढ़वाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हर कोई अपने बच्चे का भविष्य देखता है।
डॉ. कौशल सिंग, अभिभावक
हमने देखे हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक देरी से आते हैं और जल्दी चले जाते हैं। कोई देखने नहीं आता तो बैठे रहते हैं। बच्चे हल्ला करते हैं, पढ़ाई में कोई ध्यान नहीं है। अधिकारी भी निरीक्षण की खानापूर्ति करते हैं। जबकि प्राइवेट स्कूलों में एक-एक बात का ध्यान रखा जाता है। सरकारी स्कूलों की तरफ अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए।
सतीश बघेल, अभिभावक
Published on:
22 Apr 2025 06:55 pm