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sikar: मजदूर की दिव्यांग बेटी ने 18 गोल्ड जीते, एक कार्ड ने छीन लिया एशियन गेम्स का टिकट

सीकर में झुग्गी-झोपड़ी से निकलकर कंटीले खेतों और तपती सड़कों पर नंगे पैर दौड़ने वाली रजनी बावरिया अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स की दहलीज पर खड़ी है। 17 साल की इस दिव्यांग खिलाड़ी ने 18 नेशनल गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया कि जुनून के आगे गरीबी और दिव्यांगता बौनी पड़ जाती है।

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दिव्यांग खिलाड़ी रजनी, प​त्रिका फोटो

World Disability Day: सीकर। झुग्गी-झोपड़ी से निकलकर कंटीले खेतों और तपती सड़कों पर नंगे पैर दौड़ने वाली रजनी बावरिया अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स की दहलीज पर खड़ी है। 17 साल की इस दिव्यांग खिलाड़ी ने 18 नेशनल गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया कि जुनून के आगे गरीबी और दिव्यांगता बौनी पड़ जाती है। विडंबना है कि जिस सिस्टम को उसे सहारा देना चाहिए था, वही उसके सपनों की राह में रोड़ा बन रहा है। पैरा एशियन यूथ गेम्स के लिए चयनित होने के बावजूद पीसीआइ स्पोर्ट डेटा मैनेजमेंट सिस्टम (एसडीएमएस) कार्ड की गफलत ने रजनी का सपना अधर में लटका दिया है।

ये है मामला

रजनी का खेल मंत्रालय ने पैरा एशियन यूथ गेम्स के लिए 1500 मीटर दौड़ के लिए चयन तो कर लिया, लेकिन 7 दिसंबर से शुरू होने वाले गेम्स के एसडीएमएस कार्ड को लेकर पैरा ओलंपिक कमेटी ऑफ इंडिया (पीसीआइ) ने गफलत पैदा कर दी। गेम्स में चयन के बाद भी उसके खेलने का रास्ता साफ नहीं हुआ है। रजनी के कोच महेश नेहरा व मां जनप्रतिनिधियों से लेकर पीसीआइ से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई है। ये हालात तब है जब पीसीआइ के अध्यक्ष चूरू जिले के ही पैरा ओलंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झाझडिया है।

रजनी के कोच और अंतरराष्ट्रीय पैरा ओलंपिक खिलाड़ी महेश नेहरा ने बताया कि पैरा ओलंपिक खिलाड़ी को पीसीआइ स्पोर्ट डेटा मैनेजमेंट सिस्टम (एसडीएमएस) एथलीट एंड लाइसेंस जारी करती है। उससे ही पैरा खिलाड़ी अधिकारिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकते हैं। रजनी के पास भी ये कार्ड है। जिसके आधार पर उसने पिछले साल में बैंगलुरु में 6वां ओपन इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा भी लिया था। पर अब एशियन गेम्स में चयन होने के बाद पीसीआइ एसडीएमएस कार्ड को सही नहीं बता रहा। पीसीआइ के सचिव व अध्यक्ष सहित विभिन्न पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से बार-बार ई-मेल व फोन पर संपर्क करने पर भी उचित मार्गदर्शन नहीं मिल रहा। लिहाजा एशियन गेम्स में देश के लिए मेडल लाने का रजनी का सपना अधर में अटक गया है।

कंटीले खेतों में अभ्यास, कोच ने दिया विशेष प्रशिक्षण

माली हालत के चलते रजनी के पास शुरू में जूते और चप्पल तक नहीं थी। ऐसे में कंटीले खेतों, तपती सड़क व पहाड़ों पर भी वह नंगे पैर ही दौड़ लगाती थी। कोच ने चैंपियनशिप से पहले जयपुर ले जाकर अपने खर्च पर विशेष प्रशिक्षण दिया। तब से विभिन्न प्रतियोगिताओं में मेडल जीत रही है।

पूरा परिवार करता मजदूरी

रजनी का पूरा परिवार मजदूरी करता है। वह दूसरों के खेतों में काम करता है। जिसमें रजनी भी उनका सहयोग करती है। इसी बीच वह पढ़ाई के साथ खेल के लिए भी समय निकालती है।