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युवाओं में तेजी से बढ़ रही याददाश्त और एकाग्रता की समस्या

अमरीका में अधिक से अधिक वयस्क लोग याददाश्त, ध्यान और निर्णय लेने में गंभीर परेशानी की शिकायत कर रहे हैं। यह समस्या सबसे तेजी से 40 साल से कम उम्र के लोगों में बढ़ रही है। कम आय और कम शिक्षा वाले परिवारों में यह वृद्धि सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

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जयपुर। अमरीका में अधिक से अधिक वयस्क लोग याददाश्त, ध्यान और निर्णय लेने में गंभीर परेशानी की शिकायत कर रहे हैं। यह समस्या सबसे तेजी से 40 साल से कम उम्र के लोगों में बढ़ रही है। कम आय और कम शिक्षा वाले परिवारों में यह वृद्धि सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

यह विश्लेषण येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के नेतृत्व में किए गए शोध से सामने आया है। इस रिसर्च में 2013 से 2023 तक के 4.5 मिलियन से ज्यादा सर्वे जवाबों को शामिल किया गया।

सीनियर लेखक एडम डि हेवनन ने कहा कि याददाश्त और सोच से जुड़ी दिक्कतें अब अमेरिकी वयस्कों में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आ रही हैं। हमारा अध्ययन दिखाता है कि ये कठिनाइयां खासकर युवाओं में ज्यादा आम हो रही हैं, और सामाजिक व संरचनात्मक कारण इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं।


याददाश्त और एकाग्रता को मापने का तरीका

सर्वे में लोगों से फोन पर पूछा गया: क्या शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक कारणों से आपको ध्यान केंद्रित करने, चीजें याद रखने या निर्णय लेने में गंभीर परेशानी होती है? यदि जवाब “हां” था, तो इसे संज्ञानात्मक विकलांगता माना गया।

अवसाद (डिप्रेशन) की रिपोर्ट करने वालों के जवाब अलग रखे गए और 2020 का साल भी छोड़ दिया गया, क्योंकि महामारी ने आंकड़ों के पैटर्न को बदल दिया था। यह कोई क्लिनिकल टेस्ट नहीं था, बल्कि यह समझने का तरीका था कि लोग अपनी सोचने-समझने की क्षमता को रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे महसूस कर रहे हैं।

देशभर में “हां” कहने वाले वयस्कों का प्रतिशत 2013 में 5.3% से बढ़कर 2023 में 7.4% हो गया। खासकर 40 साल से कम उम्र वालों में यह वृद्धि चौंकाने वाली रही—5.1% से बढ़कर 9.7%।

70 साल और उससे अधिक उम्र वालों में यह आंकड़ा थोड़ा घटकर 7.3% से 6.6% हो गया। यानी यह समस्या केवल उम्र बढ़ने से जुड़ी नहीं है, बल्कि युवाओं में भी तेजी से फैल रही है।


सबसे ज्यादा प्रभावित कौन

सालाना 35,000 डॉलर से कम कमाने वाले वयस्कों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई—8.8% से 12.6%। जबकि 75,000 डॉलर से ज्यादा कमाने वालों में यह दर सिर्फ 1.8% से 3.9% तक बढ़ी।

शिक्षा स्तर में भी यही पैटर्न रहा—हाईस्कूल पास न करने वालों में यह समस्या 11.1% से 14.3% तक बढ़ी। जबकि कॉलेज ग्रेजुएट्स में यह 2.1% से 3.6% तक बढ़ी।

जातीय और नस्लीय समूहों में भी यह समस्या बढ़ी:

  • नेटिव अमेरिकन और अलास्का नेटिव्स: 7.5% से 11.2%
  • हिस्पैनिक: 6.8% से 9.9%
  • ब्लैक अमेरिकन: 7.3% से 8.2%
  • व्हाइट: 4.5% से 6.3%
  • एशियन: 3.9% से 4.8%

हेवनन के अनुसार, सबसे ज्यादा बढ़ोतरी उन्हीं समूहों में दिख रही है जो पहले से ही सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। हमें उन कारकों को समझना और ठीक करना होगा जो इस समस्या को बढ़ा रहे हैं।


युवाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा

40 साल से कम उम्र के वयस्कों में यह समस्या लगभग दोगुनी हो चुकी है। इसका असर पढ़ाई, नौकरी, पालन-पोषण, सुरक्षा और लंबी अवधि के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।

हेवनन ने कहा कि हमें यह समझने के लिए और रिसर्च करनी होगी कि आखिर युवाओं में इतनी तेजी से यह समस्या क्यों बढ़ रही है। इसका असर आने वाले दशकों में स्वास्थ्य, उत्पादकता और हेल्थकेयर सिस्टम पर पड़ेगा।


कारण क्या हो सकते हैं

यह अध्ययन कारण बताने के लिए नहीं बनाया गया था, लेकिन पैटर्न से पता चलता है कि इसके पीछे ये वजहें हो सकती हैं—

  • आर्थिक दबाव
  • अस्थिर आवास
  • भोजन की कमी
  • लगातार तनाव
  • खराब नींद
  • ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज न होना
  • प्रदूषण
  • संक्रमणों के लंबे असर

इसके अलावा टेक्नोलॉजी का अत्यधिक इस्तेमाल और स्क्रीन टाइम भी ध्यान और नींद की समस्या बढ़ा सकता है।


क्या किया जा सकता है

इस स्थिति को शुरुआती चेतावनी की तरह लेना चाहिए।

  • नींद, तनाव और चिंता जैसी समस्याओं के इलाज को आसान बनाना होगा।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं और कार्यस्थलों पर स्क्रीनिंग और काउंसलिंग की सुविधा बढ़ानी होगी।
  • संज्ञानात्मक रिहैबिलिटेशन और थेरेपी तक पहुंच आसान करनी होगी।
  • साथ ही साफ हवा, सुरक्षित सड़कों, पौष्टिक भोजन और निवारक स्वास्थ्य सेवाओं पर निवेश करना होगा।

अगर आपको लगता है कि आपका दिमाग पहले जितना तेज नहीं रहा, तो आप अकेले नहीं हैं। आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या खासकर युवाओं और कमजोर तबकों में तेजी से बढ़ रही है। यह कोई मेडिकल डायग्नोसिस नहीं है, लेकिन इसे गंभीरता से लेना जरूरी है।

यह अध्ययन Neurology (अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी का जर्नल) में प्रकाशित हुआ।