जयपुर। अटलांटिक महासागर के पश्चिमी हिस्से की कोरल रीफ्स (मूंगा चट्टानें) गंभीर संकट में हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये रीफ्स अब केवल अपनी वृद्धि धीमी नहीं कर रही हैं, बल्कि घिसने (इरोड होने) भी लगी हैं।
अगर धरती का तापमान औद्योगिक युग से सिर्फ 2 डिग्री सेल्सियस (3.6°F) और बढ़ गया, जो इस सदी में संभव है अगर उत्सर्जन तेजी से नहीं घटा, तो इस क्षेत्र की लगभग सभी कोरल रीफ्स का विकास रुक जाएगा। कुछ तो सिकुड़ने भी लगेंगी।
फ्लोरिडा, मैक्सिको और बोनेयर के 400 रीफ स्थलों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि 2040 तक इस क्षेत्र की 70% से ज्यादा रीफ्स बढ़ना बंद कर देंगी। अगर वैश्विक तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो 2100 तक 99% से ज्यादा रीफ्स प्रभावित होंगी।
कोरल रीफ तब बढ़ती हैं जब इन्हें बनाने वाले जीव, खासकर कठोर कोरल, स्वस्थ रहते हैं और बढ़ते हैं। लेकिन जब पानी ज्यादा गर्म या प्रदूषित हो जाता है, तो कोरल ब्लीचिंग का शिकार हो जाती हैं — यानी वे अपने भोजन के लिए जरूरी शैवाल खो देती हैं और अक्सर मर जाती हैं। बीमारियां और घटती पानी की गुणवत्ता भी इन्हें कमजोर करती हैं। अटलांटिक में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि अब मुख्य रीफ बनाने वाली कोरल प्रजातियां दुर्लभ हो रही हैं। इससे रीफ का विकास धीमा हो गया है और वे समुद्र के बढ़ते स्तर के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं।
एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस पेरी का कहना है, “मौजूदा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की स्थिति में अटलांटिक की ज्यादातर रीफ्स न केवल बढ़ना बंद कर देंगी बल्कि कई तो इस सदी के बीच तक घिसने भी लगेंगी।” शोध के अनुसार, अगर तापमान 2°C बढ़ा तो 2100 तक रीफ्स पर औसतन 2.3 फीट और पानी बढ़ जाएगा, और अगर हालात और खराब हुए तो 4 फीट तक पानी बढ़ सकता है। इससे तटीय इलाकों में बाढ़, कटाव और निवास स्थानों का नुकसान बढ़ेगा।
रीफ में कितनी किस्म की कोरल हैं, यह भी उतना ही जरूरी है। लेकिन गर्मी और बीमारियां खास तौर पर उन प्रजातियों को नुकसान पहुँचा रही हैं जो रीफ बनाने में सबसे महत्वपूर्ण हैं। मैक्सिको की यूनिवर्सिदाद नैशनल ऑटोनोमा के डॉ. लोरेंजो अल्वारेज़-फिलिप कहते हैं, “हम अटलांटिक की कोरल रीफ्स में कोरल की संख्या और विविधता दोनों में चिंताजनक गिरावट देख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन इस गिरावट को तेज कर रहा है और इसके सामाजिक व आर्थिक परिणाम भी और गंभीर होते जा रहे हैं।” यह केवल कोरल का मामला नहीं है। समुद्री घास, मछलियों के नर्सरी स्थल और पूरे समुद्री तंत्र पर असर पड़ रहा है। पर्यटन, मत्स्य पालन और तट सुरक्षा पर निर्भर लोग भी प्रभावित होंगे।
वैज्ञानिक कोरल रेस्टोरेशन (मूंगों को नर्सरी में उगाकर कमजोर रीफ्स में लगाना) की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समस्या का पैमाना बहुत बड़ा है। एक्सेटर विश्वविद्यालय की डॉ. एलिस वेब कहती हैं, “अगर वाकई बदलाव चाहिए तो सिर्फ स्थानीय स्तर पर पुनर्स्थापना काफी नहीं है। इसके साथ ही जमीन और पानी के बेहतर प्रबंधन और तेजी से जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण की कार्रवाई जरूरी है। तापमान को 2°C से नीचे रखना बेहद अहम है।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो कोरल रीफ्स की प्राकृतिक वृद्धि और समुद्र के स्तर के बीच संतुलन बिगड़ जाएगा, जिसके गहरे असर तटीय इलाकों और पारिस्थितिकी पर होंगे। पूरा अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
Published on:
22 Sept 2025 05:32 pm
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