श्रीकरणपुर (श्रीगंगानगर). गर्मी की शुरुआत के साथ ही वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध श्री बांकेबिहारी मंदिर में परंपरागत फूल बंगला सजाने की रस्म शुरू हो गई है। मंदिर परिसर में रंग-बिरंगे फूलों से सजा यह भव्य आयोजन भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बन गया है।
वृंदावन स्थित श्री बांकेबिहारी मंदिर के पुजारी नवीन गोस्वामी ने बताया कि फूल बंगला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से प्रेम का भी संदेश देता है। उन्होंने बताया कि गर्मी में जब तापमान बढ़ता है तो भगवान को भी ठंडक की आवश्यकता होती है। ऐसे में अलग-अलग किस्म के देसी और विदेशी फूलों से उनका शयन स्थल सजाया जाता है ताकि उन्हें ठंडक मिले। उन्होंने बताया कि बंगला की सजावट में लिली, गेंदा, गुलाब, कमल, रजनीगंधा जैसे सुगंधित और रंग-बिरंगे फूलों का प्रयोग किया जाता है। हर दिन सुबह और शाम दोनों समय फूल बंगला को सजाया जाता है। इसके लिए कई कुंतल फूल मंगवाए जाते हैं। जिन्हें विशेष ढंग से सजाकर ठाकुर जी के आसन, परिक्रमा स्थल और शयन कक्ष को सजाया जाता है। इस दौरान ठाकुर श्रीबांकेबिहारी जी गर्भगृह से बाहर आकर जगमोहन बरामदा में विराजमान होते हैं। यही वह समय होता है जब भक्तों को ठाकुर जी के विशेष दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
मंदिर में उमडऩे वाले भक्तों में हर कोई इस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखों में समेट लेना चाहता है। वृंदावन में मिले श्रीगंगानगर श्रीबांकेबिहारी भजन सेवा मंडल के संयोजक भुवनेश धींगड़ा, बॉबी कांसल, अंजू उतरेजा, विम्मी मनचंदा, ङ्क्षपकी, शालिनी, निधि, मीनू व अंजू धींगड़ा ने बताया कि फूलों की शीतलता और उनका सौंदर्य जब ठाकुर जी की सेवा में लग जाता है, तो वह ²श्य भक्तों के मन को भी शीतलता प्रदान करता है। यह आयोजन वृंदावन की आध्यात्मिक परंपराओं का एक अनुपम उदाहरण है, जो श्रद्धा, सेवा और प्रकृति प्रेम को एक साथ जोड़ता है। उन्होंने बताया कि गर्मी में ठाकुरजी को शीतलता प्रदान करने के उद्देश्य से होने वाला यह आयोजन हर साल चैत्र शुक्ल एकादशी से हरियाली अमावस्या तक चलता है। इस बार 8 अप्रेल से शुरू हुआ यह आयोजन 23 जुलाई तक चलेगा।
मान्यता है कि आयोजन की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के महान भक्त स्वामी हरिदास जी ने करीब 500 साल पहले की थी। उन्होंने सबसे पहले रायबेल स्थान पर फूल बंगला की परंपरा शुरू की थी, जिसे बाद में बांकेबिहारी मंदिर में भी अपनाया गया। तभी से यह परंपरा निरंतर चल रही है।
उधर, वृंदावन के श्रीराधावल्लभ मंदिर में ठाकुरजी का तीन दिवसीय विवाह उत्सव (10 से 12 अप्रेल) भी बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान सेहरा बांधे हुए ठाकुर जी और उनके साथ सजी-धजी वृषभानु दुलारी राधा रानी की सभी विवाह रस्में शहनाई वादन व अन्य परम्परागत तरीके से पूरी की गई। खास बात है कि विवाह उत्सव में बाराती के रूप में शामिल होने के लिए भी श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है।
Published on:
14 Apr 2025 01:10 am