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राजपुताना में नसीराबाद से सबसे पहले हुआ आजादी की बगावत का शंखनाद; आजाद हिंद सेना से था विशेष नाता

राजपुताना में आजादी की बगावत का शंखनाद सबसे पहले अजमेर जिले के नसीराबाद से ही हुआ था। नसीराबाद के निवासी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के सिपाही भी रहे थे।

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नसीराबाद का गौरवशाली इतिहास, पत्रिका फोटो

Nasirabad Foundation Day: नसीराबाद की जलवायु को देख अंग्रेजों ने यहां पर सैन्य छावनी बनाते हुए नसीराबाद को शासन करने का जरिया बनाया था। लेकिन इसी महत्वपूर्ण केंद्र से ही बगावत का शंखनाद राजपुताना में सबसे पहले नसीराबाद से ही हुआ था।

नसीराबाद के निवासी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के सिपाही भी रहे थे। वहीं महर्षि दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों ने नगर की धरती को पवित्र किया। इतना ही नहीं यहां ऐसे मनीषियों ने भी जन्म लिया जिनकी प्रतिभा और चमक का लोहार राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर माना गया। 20 नवंबर को नसीराबाद का स्थापना दिवस है।

नसीराबाद छावनी का यूं पड़ा नाम

अजमेर से 22 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला के बीच 20 नवम्बर 1818 को अंग्रेज जनरल सर डेविड ऑक्टर लॉनी उर्फ नसीरूद्दौला ने नसीराबाद को बसाया। नसीरूद्दौला के नाम पर ही छावनी का नाम नसीराबाद रखा गया था। मुगल शासक शाह आलम ने ऑक्टर लॉनी को नसीरूद्दौला की उपाधि दी थी तथा अंग्रेज ब्रिगेडियर नॉक्स ने सैन्य छावनी की स्थापना की।

प्रथम स्वंतत्रता संग्राम 1857 से पूर्व सन 1818 में जब राजपुताना की समस्त देसी रियासतें अंग्रेजों के शासन अधिकार में आ गई। तब अंग्रेजों ने व्यवस्था कायम रखने के उद्देश्य से शहरों के निकट सैनिक छावनियों की स्थापना की थी। इसी के तहत अजमेर के पास नसीराबाद में सैन्य छावनी बसायी गयी थी।

ऐसे हुआ विद्रोह का शंखनाद

सन् 1857 में नसीराबाद, नीमच, देवली और एरिनपुर मे फौजी मुकाम थे। उस समय नसीराबाद में दो रेजीमेंट भारतीय तोपखाना और फर्स्ट मुंबई लांसर के सैनिक थे। 10 मई को मेरठ छावनी में विद्रोह भड़क उठा। इस विद्रोह का समाचार नसीराबाद में भी पहुंचा और 28 मई 1857 की दोपहर 3 बजे ब्रिटिश सेना के भारतीय दस्ते के सैनिकों ने विद्रोह का झंडा गाड़कर राजपुताना में नसीराबाद से विद्रोह की शुरुआत कर दी।

18 जून 1847 को लूटा ब्रिटिश खजाना और हथियार

जवाहरसिंह एवं डूंगरसिंह उर्फ डूंगरी डाकू ने ब्रिटिश विरोधी लोगों के सहयोग से 18 जून 1847 को नसीराबाद छावनी पर सफल आक्रमण कर ब्रिटिश खजाने एवं शस्त्रागारों को लूट लिया। गार्ड हाउस में आग लगा दी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को चुनौती देते हुए अंग्रेजी गार्ड को मार गिराया। इन देशप्रेमी दस्युओं की वीरता के गीत भाट, चारण समाज में आज भी प्रसिद्ध हैं।

स्वतंत्रता संग्राम का रिकॉर्ड किया नष्ट

सन् 1862 में विलियम मार्टिन व उसके भाई गोविन मार्टिन चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के यूनाइटेड प्रेसबिटेरियन मिशन के द्वारा भेजे गये प्रचारक आये तथा उन्होंने यहां गिरजाघर तथा मिशन स्कूल की स्थापना की। सैनिक छावनी का 1818 से 1857 तक का समस्त रिकॉर्ड स्वतंत्रता संग्राम 1857 में नष्ट कर दिया था।

आज यह बदला स्वरूप

छावनी का प्रशासन 1899 में बने केन्टोन्मेंट एक्ट के अनुसार संचालन किया जाता था। बाद में सन् 1924 में संशोधित करके अधिनियम बनाकर किया जाने लगा। अगस्त 1947 को केन्टोन्मेंट बोर्ड की स्पेशल बैठक बुलवाई। उस समय छावनी में 7 वार्ड थे जिनके सात प्रतिनिधि छावनी बोर्ड के निर्वाचित सदस्य कहलाते थे तथा सेना का स्टेशन कमांडर छावनी परिषद का पदेन अध्यक्ष परिषद का अधिशासी अधिकारी पदेन सचिव और इसके अतिरिक्त 6 सेना के वरिष्ठ अधिकारी, विधायक, सांसद एवं उपखंड अधिकारी मनोनीत सदस्य होते थे। वर्तमान में छावनी परिषद का संचालन संशोधित छावनी अधिनियम 2006 के तहत संचालित होता है।