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वैकल्पिक नहीं, बल्कि एचआइवी देखभाल का अनिवार्य हिस्सा हो काउंसलिंग

जब किसी व्यक्ति को पहली बार एचआइवी पॉजिटिव होने की खबर मिलती है, तो उसकी मानसिक दुनिया हिल जाती है। कई मरीज गुस्से में आते हैं, कुछ रिपोर्ट को गलत मानने लगते हैं, जबकि कुछ लोग अपराधबोध और शर्म से जूझते हैं। कुछ लोग यह सोचते हैं कि उन्होंने गलती की, इसलिए उन्हें यह बीमारी हुई। वहीं कई लोग सदमे में होते हैं और कुछ भी समझ नहीं पाते। मरीजों के परिवार भी भावनात्मक और सामाजिक चुनौतियों से गुजरते हैं।

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HIV Test

-संक्रमितों को भय, अवसाद, अपराधबोध और सामाजिक दबाव से उबारना जरूरी

-विश्व एड्स दिवस (World Aids Day)

एचआइवी HIV निदान केवल एक चिकित्सीय स्थिति नहीं, बल्कि एक गहरी भावनात्मक यात्रा की शुरुआत भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि सही समय पर दिया गया मानसिक-स्वास्थ्य समर्थन मरीज को भय, अवसाद, अपराधबोध और सामाजिक दबाव से उबरने में मदद करता है। एचआइवी और एड्स AIDS के साथ जीना संभव है। जरूरत है सही जानकारी, निरंतर काउंसलिंग और मजबूत पारिवारिक एवं सामाजिक सहयोग की।

झटका, गुस्सा, डर और इनकार

वासवी अस्पताल के काउंसलर और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षक सुभाष एच. के अनुसार जब किसी व्यक्ति को पहली बार एचआइवी पॉजिटिव होने की खबर मिलती है, तो उसकी मानसिक दुनिया हिल जाती है। कई मरीज गुस्से में आते हैं, कुछ रिपोर्ट को गलत मानने लगते हैं, जबकि कुछ लोग अपराधबोध और शर्म से जूझते हैं। कुछ लोग यह सोचते हैं कि उन्होंने गलती की, इसलिए उन्हें यह बीमारी हुई। वहीं कई लोग सदमे में होते हैं और कुछ भी समझ नहीं पाते। मरीजों के परिवार भी भावनात्मक और सामाजिक चुनौतियों से गुजरते हैं। इसलिए काउंसलिंग Counselling और समर्थन सिर्फ मरीज के लिए ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए भी उतना ही आवश्यक है।

प्रबंधनीय चिकित्सा स्थिति के रूप में देखने की आवश्यकता

ऐसे में एचआइवी की पुष्टि के क्षण से ही मानसिक-स्वास्थ्य सहायता बेहद आवश्यक है। सही समय पर दिया गया काउंसलिंग और भावनात्मक समर्थन मरीज की मानसिक स्थिति, उपचार के प्रति रुझान और जीवन की गुणवत्ता पर गहरा असर डालता है। ऐसे में काउंसलिंग को वैकल्पिक नहीं, बल्कि एचआइवी देखभाल का अनिवार्य हिस्सा माना जाना चाहिए। ऐसे क्षणों में प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य काउंसलर की मौजूदगी व्यक्ति को भावनाओं को सुरक्षित ढंग से व्यक्त करने और स्थिति को स्वीकार करने में मदद करती है। एचआइवी को एक प्रबंधनीय चिकित्सा स्थिति के रूप में देखने की आवश्यकता है। अगर सही इलाज, समय पर दवा और लगातार मानसिक-स्वास्थ्य सहायता मिले, तो मरीज सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

तिरस्कार या भेदभाव का डर

तीन दशकों से अधिक समय से एचआइवी संक्रमित मरीजों को चिकित्सकीय देखभाल प्रदान करती आ रहीं आशा फाउंडेशन की संस्थापक डॉ. ग्लोरी अलेक्जेंडर ने बताया कि समाज में एचआइवी से जुड़े मिथक और भेदभाव का डर इतना गहरा होता है कि मरीज स्वयं को अलग करने लगते हैं। मरीजों को लगता है कि अगर समाज या परिवार को पता चला, तो उन्हें तिरस्कार या भेदभाव का सामना करना पड़ेगा। यही डर उन्हें सामाजिक जीवन से दूर करता है। यह दूरी धीरे-धीरे अवसाद, आत्मविश्वास में कमी और भावनात्मक थकान का कारण बनती है। इसका प्रभाव उनके रिश्तों, विवाह की योजनाओं और परिवार निर्माण जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों पर भी पड़ता है।

चिंता और अवसाद का असर दवाओं पर

सही समय पर दवा यानी एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) लेना एचआइवी प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन मानसिक-स्वास्थ्य समस्याएं अक्सर मरीजों की नियमितता को प्रभावित करती हैं। अवसाद, बीमारी के उजागर होने का डर या भविष्य को लेकर चिंता कई मरीजों को दवा छोडऩे या कभी-कभी ही लेने के लिए मजबूर कर देती है। इसके अलावा कुछ मरीज जिम, तैराकी, या अन्य स्वस्थ दिनचर्या से भी दूर होने लगते हैं, जिससे तनाव और बढ़ता है। असंगठित जीवनशैली और मानसिक दबाव उनकी स्वास्थ्य स्थिति को और गंभीर बना देता है। कई मरीज आर्थिक कठिनाइयों का भी सामना करते हैं। इलाज का खर्च, नौकरी खोने का डर और सामाजिक असुरक्षा मानसिक तनाव को दो गुना कर देती है। यह तनाव धीरे-धीरे मानसिक थकान, भविष्य को लेकर डर और जीवन में रुचि कम होने जैसी समस्याओं को जन्म देता है। युवा, एलजीबीटीक्यू समुदाय, सेक्स वर्कर्स और अन्य संवेदनशील समूहों के लिए यह चुनौतियां और अधिक कठिन होती हैं।

कर्नाटक में 1.97 लाख से ज्यादा मरीज एआरटी पर

राज्य Karnataka में वर्ष 2004 से इस वर्ष अक्टूबर तक 4,09,321 एचआइवी मरीजों ने एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के लिए पंजीकरण कराया। इनमें से 3,43,939 मरीजों ने एआरटी शुरू की। विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के कारण 1,16,200 मरीजों की मौत हो चुकी है। फिलहाल 1,97,844 मरीज एआरटी पर हैं। 95,277 मरीज या तो एआरटी नहीं ले रहे हैं या निजी अस्पतालों में उपचाराधीन हैं।

प्रसार दर राष्ट्रीय औसत से दोगुना

कर्नाटक Karnataka, देश में एचआइवी बोझ के मामले में नौवें स्थान पर है। स्वास्थ्य आंकड़ों के अनुसार, राज्य का एचआइवी प्रसार दर 0.42 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है। प्रसवपूर्व देखभाल (एएनसी) में आने वालों में एचआइवी का फैलाव यह दिखाता है कि राज्य में वयस्क एचआइवी का फैलाव वर्ष 2004 में 1.5 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 0.57 प्रतिशत हो गया है। विभाग विभिन्न समुदायों तक पहुंच बढ़ाने और उपचार को और सुलभ बनाने के लिए व्यापक कार्यक्रम चला रहा है। राज्य में कुल 442 स्टैंड-अलोन इंटीग्रेटेड टेस्टिंग एंड काउंसलिंग सेंटर (आइसीटीसी) और 2930 फैसिलिटी-इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (एफआइसीटीसी) काम कर रहे हैं।