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अंता सीट पर उपचुनाव: कौन हैं प्रमोद जैन भाया? जिन्हें कांग्रेस ने बनाया उम्मीदवार, जानें इनका पूरा सियासी सफर

Anta Assembly by-election: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है।

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Pramod Jain Bhaya

प्रमोद जैन भाया। फोटो- पत्रिका नेटवर्क

Anta Assembly by-election: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। इस सीट पर 11 नवंबर 2025 को मतदान होना है, जबकि 14 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के तौर पर पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता प्रमोद जैन भाया पर एक बार फिर भरोसा जताया है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी अभी तक अपने उम्मीदवार के नाम पर अंतिम फैसला नहीं ले पाई है।

इस बीच, कांग्रेस के बागी नेता नरेश मीणा के निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। ऐसे में अंता का उपचुनाव बेहद रोचक होने की उम्मीद है।

क्यों हो रहा है अंता में उपचुनाव?

अंता विधानसभा सीट बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में कंवरलाल मीणा ने कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया को 5,861 वोटों के अंतर से हराकर यह सीट जीती थी। लेकिन उनकी सदस्यता रद्द होने के बाद अब इस सीट पर उपचुनाव की स्थिति बन गई है। यह उपचुनाव न केवल पार्टियों के लिए बल्कि क्षेत्रीय नेताओं के सियासी वर्चस्व के लिए भी अहम माना जा रहा है।

कौन हैं प्रमोद जैन भाया?

प्रमोद जैन भाया हाड़ौती क्षेत्र के दिग्गज कांग्रेस नेताओं में से एक हैं। वे पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और अंता विधानसभा सीट से लंबे समय से सक्रिय हैं। भाया का इस क्षेत्र में मजबूत जनाधार है और वे कई बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उनका सियासी सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी के प्रभु लाल सैनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

हालांकि, 2018 में भाया ने प्रभु लाल सैनी को हराकर शानदार वापसी की और विधायक बने। लेकिन 2023 के चुनाव में बीजेपी के कंवरलाल मीणा ने उन्हें फिर से हरा दिया। कांग्रेस आलाकमान ने इस बार फिर भाया पर भरोसा जताया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के निर्देश पर भाया को उम्मीदवार बनाया गया है। भाया की इस क्षेत्र में गहरी पकड़ और अनुभव को देखते हुए कांग्रेस को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं।

नरेश मीणा की वजह से त्रिकोणीय मुकाबला

इस उपचुनाव में सबसे बड़ा ट्विस्ट नरेश मीणा की बगावत ने ला दिया है। नरेश मीणा कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। यह कदम कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है, क्योंकि नरेश मीणा का क्षेत्र में अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है।

पिछले साल 2024 में देवली-उनियारा उपचुनाव में नरेश मीणा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर करीब 60,000 वोट हासिल किए थे, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी थी। अंता में मीणा समाज के करीब 40,000 वोट हैं, जो चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। अगर नरेश मीणा निर्दलीय मैदान में उतरते हैं, तो कांग्रेस का वोट बैंक बंट सकता है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि नरेश मीणा को इस बार टिकट नहीं मिलेगा। गहलोत ने कहा था कि नरेश मीणा को सब्र करना चाहिए और वे लंबी रेस के घोड़े हैं। इस बयान से साफ हो गया था कि कांग्रेस भाया पर ही दांव लगाएगी।

BJP में उम्मीदवार को लेकर असमंजस

बीजेपी में अंता सीट के लिए उम्मीदवार के चयन को लेकर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सहमति के बिना बीजेपी उम्मीदवार का ऐलान नहीं करेगी। वसुंधरा राजे का हाड़ौती क्षेत्र में मजबूत प्रभाव है। वे खुद बारां-झालावाड़ क्षेत्र से सांसद रह चुकी हैं, और उनके बेटे दुष्यंत सिंह वर्तमान में इस क्षेत्र से सांसद हैं।

खबरों के मुताबिक, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने शुक्रवार शाम वसुंधरा राजे से मुलाकात की और उम्मीदवार चयन को लेकर विचार-विमर्श किया। चर्चा है कि वसुंधरा राजे कंवरलाल मीणा की पत्नी भगवती देवी को टिकट देना चाहती हैं। इसके अलावा, स्थानीय नेता मोरपाल का नाम भी चर्चा में है, क्योंकि माली समाज के 45,000 वोट इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

वोटों का गणित और सियासी समीकरण

अंता विधानसभा सीट पर कई समुदायों के वोट चुनावी नतीजों को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। मीणा समाज (40,000 वोट), माली समाज (45,000 वोट), और धाकड़ समाज के वोट इस सीट पर निर्णायक हैं। नरेश मीणा के निर्दलीय उतरने से मीणा समाज के वोटों का बंटवारा हो सकता है, जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

वहीं, बीजेपी स्थानीय और प्रभावशाली उम्मीदवार उतारकर इन समुदायों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। वसुंधरा राजे का प्रभाव इस क्षेत्र में बीजेपी के लिए एक बड़ा लाभ हो सकता है, लेकिन उम्मीदवार चयन में देरी पार्टी के लिए चुनौती बन रही है।

स्थानीय नेताओं के प्रभाव की परीक्षा

अंता का उपचुनाव कई मायनों में अहम है। कांग्रेस के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है, क्योंकि प्रमोद जैन भाया इस क्षेत्र में पार्टी का मजबूत चेहरा हैं। दूसरी ओर, बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना जरूरी है, क्योंकि 2023 में उन्होंने इसे कांग्रेस से छीना था। नरेश मीणा के निर्दलीय उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जिससे दोनों पार्टियों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि यह उपचुनाव स्थानीय नेताओं के प्रभाव की परीक्षा होगी। वहीं, वसुंधरा राजे की रणनीति और कांग्रेस की एकजुटता इस उपचुनाव के नतीजों को तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।