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थीम-बेस्ड शादियों में भी कायम है चाक, चूल्हा और बाजोट का महत्व

आधुनिकता की चमक में परंपरा का 'विवाह' फेरों के मंडप में आज भी गूंजती है रस्मों की महक

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The importance of the chalk, stove, and table remains even in theme-based weddings.

The importance of the chalk, stove, and table remains even in theme-based weddings.

आधुनिकता की चमक में परंपरा का 'विवाह'फेरों के मंडप में आज भी गूंजती है रस्मों की महक

विवाह, सनातन परंपरा का वह पवित्र संस्कार है जिसमें दो अपरिचित आत्माएं जीवनभर के लिए एक-दूसरे का 'पूरक' बनकर सफर की शुरुआत करती हैं। बदलते दौर के साथ विवाह संस्कारों में भले ही आधुनिकता का समावेश हुआ हो, लेकिन इस महामिलन की मूल आत्मा-इसकी सदियों पुरानी परंपराएं आज भी अडिग और अपने पूरे महत्व के साथ कायम हैं।आधुनिकता संग परंपरा का तालमेल

आज के विवाह समारोहों में जहां एक ओर आधुनिक लाइटिंग, थीम-बेस्ड सजावट और दूल्हा-दुल्हन का राजशाही अंदाज में 'ग्रांड एंट्री' का चलन बढ़ गया है, वहीं फेरों के मंडप में पारंपरिक तत्व अपनी मजबूत जगह बनाए हुए हैं।मंडप का मिश्रण: फेरों के लिए आजकल भले ही रेडिमेड मंडपों का उपयोग हो रहा हो, लेकिन इसके साथ ही पारंपरिक लकड़ी के खम्भे अवश्य लगाए जाते हैं। इन खम्भों के साथ चौकियां और लकड़ी के बाजोट भी उपयोग में लिए जा रहे हैं, जो इस संस्कार के पारंपरिक स्वरूप को जीवंत रखते हैं।

परंपरा के प्रतीक: विवाह संस्कार की मूल आत्मा कहे जाने वाले चाक पूजन, चक्की पूजन, चूल्हा और बिजना (हाथ का पंखा) महज सामग्री मात्र नहीं हैं, इसके अतिरिक्त पीटी करना, मेहंदी लगाना, हल्दी की रस्म साथ ही जब विवाह फेरे होते हैं उन फेरों में प्रत्येक तीन फेरों में जब दुल्हन आगे होती हैं उसके पहले दुल्हन के भाई की ओर से परमल से आहुति लगवाना (लाजा होम) मुख्य द्वार पर तोरण मारना व तोरण पर विधिवत दूल्हे का पूजन करना एवं लहरिया बंधवाना वह साथ ही कन्या के माता-पिता की ओर से दूल्हे के दूध से पैर धुलाना भारतीय सनातन संस्कृति की वैदिक परम्परा है। विवाह उपरान्त पूजन को श्रेष्ठता प्रदान की गई है बल्कि ये रस्मों को उनके मूल स्वरूप में पूरा करने का प्रतीक हैं। परिवार इन वस्तुओं को आधुनिक थीम के बीच भी अवश्य शामिल करते हैं।सामग्री की साज-सज्जा अब बाजार में

बाजार में विवाह सामग्री की दुकानें सज चुकी हैं। अब पारंपरिक आम की लकड़ी के खम्भों के साथ-साथ पेंटेड और गोल्डन-फिनिश वाले खम्भों का भी खूब चलन है। इसमें खाजा पापड़ व मुन्गेड़ी आदि पारंपरिक खाद्य सामग्री भी तैयार की जाती जाती है। 'तणी' का बंधन आज भी है जरूरी है।पंडित अशोक व्यास का कहना है कि भले ही दुल्हन के घर पर अब 'तणी' बांधने की रस्म नहीं निभाई जाती हो, लेकिन फेरों के स्थल पर इसका बंधन आज भी अनिवार्य माना जाता है। इस रस्म में रस्सी के साथ दीयों का उपयोग होता है, यह 'तणी' (एक तरह की रक्षा-रेखा) इस बात का प्रतीक है कि संस्कार अपनी पवित्रता और पारंपरिक मूल्यों को कायम रखे हुए है। विवाह उपरान्त तणी दूल्हे द्वारा खुलवाई जाती है एवं मांडा बरसाया जाता है यह परंपराएं दर्शाती हैं कि राजस्थान में विवाह केवल एक सामाजिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते मूल्यों और संस्कारों का भव्य उत्सव है।