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छतरपुर में एनजीटी के आदेशों की उड़ रही धज्जियां, खुले में जल रहा कचरा, धुएं में घुलती सेहत

शहर की सडक़ों और मोहल्लों में हर रोज कचरे के ढेरों से उठता धुआं अब आम दृश्य बन चुका है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के खुले में कचरा जलाने पर प्रतिबंध के आदेश को नगरपालिका और नागरिक दोनों ही नजरअंदाज कर रहे हैं।

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kachra

सडक़ किनारे कचरा जलते हुए

दीपावली पर्व के लिए घर-घर में सफाई अभियान चल रहा है। जिससे शहर में रोजाना निकलने वाले 50 टन कचरे की तुलना में इन दिनों 70 टन तक कचरा निकल रहा है। जिसे नगरपालिका कलेक्ट करके कचरा प्रसंस्करण केंद्र ले जाकर डिस्पोज कर रही है। लेकिन इसके अलावा भी नगरपालिका के कचरा वाहन से ट्रांसपोर्ट होने वाले कचरा के अतिरिक्त सफाई से निकलने वाले कचरे को लोग जला रहे हैं। शहर की सडक़ों और मोहल्लों में हर रोज कचरे के ढेरों से उठता धुआं अब आम दृश्य बन चुका है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के खुले में कचरा जलाने पर प्रतिबंध के आदेश को नगरपालिका और नागरिक दोनों ही नजरअंदाज कर रहे हैं। स्थानीय लोग जलते कचरे की दुर्गंध और धुएं के बीच जीने को मजबूर हैं।

खुले में जल रहा कचरा, लापरवाही बनी आदत

शहर में कोई भी इलाका ऐसा नहीं बचा जहां कचरे के ढेर जलते न दिखें। मुख्य बाजार से लेकर कालोनियों तक, खाली पड़ी जमीनों और सडक़ों के किनारे खुले में प्लास्टिक और पॉलीथिन के ढेरों में आग लगाई जा रही है। यहां तक कि नगरपालिका के अपने डंपर और कूड़ेदान भी इस लापरवाही की चपेट में हैं। कई बार सफाईकर्मी कचरा उठाने की बजाय वहीं जला देते हैं। परिणामस्वरूप हवा में विषैले तत्व घुल रहे हैं, जो शहर के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं।

स्वास्थ्य पर घातक असर, सांस की बीमारियां बढ़ीं

खुले में जलने वाले कचरे से निकलने वाला धुआं जहरीला होता है। इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें शामिल होती हैं। चिकित्सकों के अनुसार यह धुआं फेफड़ों, आंखों और मस्तिष्क पर बुरा असर डालता है। छतरपुर जिला अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, हाल में दमा, एलर्जी और खांसी-जुकाम के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और जिला अस्पताल की ओपीडी में 30 फीसदी तक की बढोत्तरी हुई है। इसका मुख्य कारण हवा में बढ़ता प्रदूषण बताया जा रहा है।

कचरा प्रबंधन व्यवस्था ध्वस्त

सिर्फ जलाना ही नहीं, बल्कि कचरे को खुले में फेंकना भी एक गंभीर समस्या बन चुका है। नगर में कई जगहों पर अस्थायी डंपिंग साइट बना दी गई हैं जहां सड़ा हुआ कचरा दुर्गंध फैला रहा है। इन जगहों पर सब्जियों के छिलके, जानवरों की हड्डियां, कांच, प्लास्टिक और खाने का बचा हुआ मलबा एक साथ फेंका जा रहा है। कई बार पशु पालक भी इन्हीं जगहों पर अपने जानवरों का मल छोड़ देते हैं, जिससे वातावरण और दूषित हो रहा है। कई बार सड़ा हुआ कचरा खुद ही सुलग उठता है, जिससे वायु प्रदूषण और बढ़ता है।

2016 में लागू हुआ था एनजीटी का आदेश, पर अमल शून्य

दिसंबर 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने देशभर में खुले में कूड़ा जलाने पर सख्त प्रतिबंध लगाया था। आदेश के अनुसार सामान्य मामलों में 5000 रुपए, बड़ी मात्रा में कचरा जलाने पर 25000 रुपए का जुर्माना तय किया गया था। एनजीटी के इस आदेश को 9 साल हो चुके हैं, लेकिन छतरपुर में यह नियम केवल कागजों तक सीमित है। अब तक किसी भी व्यक्ति या संस्था पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई है।

नगरपालिका और नागरिक दोनों जिम्मेदार

नगरपालिका के अधिकारी दावा करते हैं कि शहर को स्वच्छ बनाए रखने के प्रयास लगातार जारी हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। नागरिक भी नियमों के प्रति उदासीन हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नगर प्रशासन एनजीटी के निर्देशों का सख्ती से पालन करवाए, जुर्माने की प्रक्रिया शुरू करे और नागरिकों में जागरूकता फैलाए, तभी इस स्थिति में सुधार संभव है। कचरा जलाना सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि शहर की हवा, बच्चों की सांस और आने वाली पीढि़यों की सेहत पर हमला है।

इनका कहना है

स्वच्छता में नागरिकों सहयोग होगा तभी हम शहर को स्वच्छ और सुंदर बना पाएंगे। जो लोग खुले में कचरा जलातेे हैं। ऐसे लोगों पर जल्द ही जुर्माने की कार्रवाई की जाएगी।

माधुरी शर्मा, सीएमओ