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संविदा कर्मी हटे, मेंटिनेंस ठप, अफसरों पर संकट – बिजली व्यवस्था का सिस्टमिक फेल्योर उजागर

उत्तर प्रदेश में बिजली संकट लगातार बढ़ रहा है। 25,000 संविदा कर्मियों को हटाने से बिजली व्यवस्था चरमरा गई है, जिसके चलते लगातार ट्रिपिंग और कटौती हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'बिजली की कमी नहीं, बजट की कमी नहीं' के दावों के बावजूद, अफसरशाही की लापरवाही और निजीकरण की अनिश्चितता ने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है।

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य़ूपी में बिजली की खस्ता हालत, PC - Patrika Team

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली कटौती और ट्रिपिंग की बढ़ती घटनाएं अब कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि महीनों से जारी प्रशासनिक और संरचनात्मक खामियों का नतीजा हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के यह कहने के बावजूद कि 'ना बिजली की कमी है, ना बजट की,' प्रदेश में बिजली आपूर्ति चरमरा गई है। इसका सीधा जवाब है - बिजली तो है, पर सिस्टम फेल हो चुका है।

वितरण तंत्र की कमजोरी: असली वजह

राज्य में बिजली उत्पादन या उपलब्धता में कोई बड़ी कमी नहीं है। जुलाई के मध्य में 24,227 मेगावाट की मांग के मुकाबले 24,159 मेगावाट की आपूर्ति की गई, फिर भी एक ही दिन में 1155 फीडर ट्रिप कर गए. इसके मुख्य कारण हैं:

  • ट्रांसफॉर्मर का समय पर मेंटेनेंस न होना।
  • संविदा कर्मियों की भारी कमी।
  • फील्ड में कार्यरत कर्मचारियों का सिस्टम में 'असहयोग'।

संविदा कर्मियों की कमी से फील्ड वर्क ठप

ऊर्जा विभाग से हाल ही में 25,000 संविदा कर्मियों को हटाया गया है। पहले इनकी संख्या करीब 85,000 थी, जबकि अब केवल 31,000 स्थायी कर्मचारी बचे हैं, जिनमें से ज़्यादातर प्रशासनिक या ऑफिस के कामों में लगे हैं। इस वजह से:

  • फॉल्ट ठीक करने में बेहद देरी हो रही है।
  • ट्रिपिंग के बाद फीडर बहाल होने में घंटों लग रहे हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में तो पूरी-पूरी रात अंधेरा रहना आम बात हो गई है।

'फेशियल अटेंडेंस' ने बढ़ाई मुश्किलें

एक और बड़ी समस्या फेशियल अटेंडेंस सिस्टम है। अब बिजली कर्मियों को पहले कार्यालय जाकर अटेंडेंस लगानी होती है, फिर वे फील्ड में जाते हैं। कई बार फॉल्ट साइट 20-30 किलोमीटर दूर होती है, जिससे समस्या के समाधान में 2-3 घंटे की अतिरिक्त देरी होती है। उपभोक्ता इंतजार करते रहते हैं, और सिस्टम अपनी 'सही रिपोर्ट' बना देता है।

निजीकरण की घोषणा से गहराया संकट

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष, अवधेश कुमार वर्मा के अनुसार, 'जब से बिजली निजीकरण की चर्चा शुरू हुई है, अधिकारी और इंजीनियर फील्ड में ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। कर्मचारी आंदोलित हैं, विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। इसका असर सेवाओं पर साफ दिख रहा है।' वर्मा यह भी कहते हैं कि करीब एक साल पहले तक व्यवस्था सही चल रही थी और ट्रिपिंग या कटौती जैसे मामले बहुत कम थे।

जवाबदेही शून्य, व्यवस्था ढहने की कगार पर?

ट्रिपिंग की शिकायत दर्ज होने के बाद न तो समय पर सुधार होता है और न ही फीडबैक की कोई निगरानी होती है। कई जिलों में फीडर बार-बार फेल हो रहे हैं, लेकिन अभियंताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। मुख्यमंत्री लगातार समीक्षा कर चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन मध्य और निचले स्तर के अधिकारी सुस्त बने हुए हैं।

यह सिर्फ तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि एक गहरी प्रशासनिक लापरवाही है। ऊर्जा मंत्रालय में फील्ड स्तर पर जवाबदेही तय नहीं हुई है, और संविदा कर्मचारियों की कमी का कोई तात्कालिक समाधान भी नहीं दिख रहा। उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था इस वक्त 'व्यवस्था होते हुए भी व्यवस्था न होने' के गंभीर संकट से गुज़र रही है। बिजली, बजट और नीयत होने के बावजूद, कर्मचारियों की कमी, अफसरशाही की ढील और निजीकरण की अनिश्चितता ने सिस्टम को भीतर से खोखला कर दिया है।