
bal vahini
नागौर. जिले में स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने के लिए संचालित होने वाली बाल वाहिनियों की स्थिति चिंताजनक हो गई है। जिला कलक्टर के निर्देश पर शिक्षा विभाग की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट ने इस व्यवस्था की पोल खोल दी है। बाल वाहिनी के मॉडल वर्ष से लेकर जीपीएस सिस्टम, हैल्पलाइन नम्बर, स्पीड गवर्नर सहित अन्य नियमों की पालना को शामिल करते हुए तैयार की गई रिपोर्ट में ज्यादातर कॉलम ‘नहीं’ से भरे गए हैं। कई वाहन तो ऐसे हैं जिनमें न तो स्पीड गवर्नर है और न ही जीपीएस सिस्टम। गांवों में स्कूली बच्चों का परिवहन करने वाले वाहनों की उम्र भी 20 साल से अधिक हो चुकी है। ऐसे वाहनों में न तो सुरक्षा मानकों का पालन किया जा रहा है और न ही समय पर फिटनेस करवाई जा रही है। कई वाहनों पर आवश्यक पीला कलर तक नहीं है, जो स्कूल वाहनों की अनिवार्य पहचान होती है। वहीं वाहन चालकों की स्वास्थ्य व नेत्र जांच भी समय पर नहीं हो पाती, जिससे बच्चों की सुरक्षा और अधिक जोखिम में पड़ जाती है। इन वाहनों के कारण आए दिन छोटे-बड़े हादसे हो रहे हैं।
गौरतलब है कि जिला सडक़ सुरक्षा समिति की बैठकों में जिला कलक्टर अरुण कुमार पुरोहित ने अध्यक्ष के नाते जिला परिवहन अधिकारी एवं जिला शिक्षा अधिकारी को जिले में संचालित बाल वाहिनियों के फिटनेस की जांच करके अनफिट वाहनों पर सख्त प्रवर्तन कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इसको लेकर संसद सदस्य सडक़ सुरक्षा समिति की बैठक में सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी गत 18 जुलाई को कार्रवाई के निर्देश दिए थे। कलक्टर की ओर से बैठकों में बार-बार निर्देश देने के बाद अब शिक्षा विभाग ने बाल वाहिनियों की रिपोर्ट तैयार करवाई है। इसमें सामने आया है कि अधिकांश वाहिनियों में जीपीएस सिस्टम नहीं लगा, जो निगरानी और ट्रैकिंग का सबसे अहम साधन होता है। स्थिति यह है कि रोजाना हजारों बच्चे ऐसे वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं, जिनकी न तो फिटनेस समय पर होती है और न ही रिन्युअल। कई वाहन कंडम हालत में होने के बावजूद स्कूल रूट पर दौड़ रहे हैं।
फैक्ट फाइल
जिले में कुल बाल वाहिनी - 618
जीपीएस लगा है - 309
बिना जीपीएस - 309
हैल्पलाइन नम्बर लिखे हैं - 590
बिना हैल्पलाइन नम्बर - 28
स्पीड गवर्नर - 470
बिना स्पीड गवर्नर - 148
अभिभावक मजबूर
अभिभावक मजबूरी में इन्हीं वाहनों पर निर्भर हैं, क्योंकि विकल्प सीमित हैं। दूसरी ओर, जिम्मेदार विभागों की लापरवाही भी कम गंभीर नहीं है। इससे साफ है कि जिले में स्कूली बच्चों की सुरक्षा कागज़ों में तो प्राथमिकता है, लेकिन जमीन पर हालात इसके बिल्कुल उलट हैं। विभागीय रिपोर्ट आने के बाद प्रशासनिक कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है, ताकि बच्चों की जान जोखिम में डालने वाली इस व्यवस्था पर जल्द रोक लग सके।
रिपोर्ट में कई गंभीर खामियां उजागर
शिक्षा विभाग की ओर से किए गए निरीक्षण में पाया गया कि कई स्कूली वाहनों में जीपीएस सिस्टम, सीसीटीवी कैमरा, फस्र्ट एड बॉक्स और अग्निशमन यंत्र जैसी अनिवार्य सुविधाएं मौजूद ही नहीं हैं। कई वाहनों में निर्धारित क्षमता से दोगुने बच्चे बैठाए जा रहे हैं, तो कुछ वाहन ऐसे भी मिले जिनमें सीटें तक ठीक हालत में नहीं थीं। कई वाहन बिना परमिट, बिना फिटनेस और बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के चल रहे हैं। अब जिम्मेदार विभाग परिवहन, पुलिस और शिक्षा विभाग ने संयुक्त रूप से बैठक कर इस दिशा में कार्रवाई शुरू करने की तैयारी की है।
आए दिन हो रहे हादसे बढ़ा रहे चिंता
पिछले कुछ महीनों में जिले में बाल वाहिनियों से जुड़े हादसों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वाहन चालकों की लापरवाही, ओवरलोडिंग और खराब अवस्था वाले वाहनों के कारण बच्चों की जान रोजाना जोखिम में पड़ रही है। गत दिनों कंडम वाहन के कारण मेड़ता क्षेत्र में एक बच्ची की मौत हो गई थी।
समय पर फिटनेस न करवाना सबसे बड़ा खतरा
परिवहन विभाग के दस्तावेजों के अनुसार जिले की बड़ी संख्या में बसों और वैनों की फिटनेस महीनों से नवीनीकृत नहीं हुई है। कई वाहनों में ब्रेक, टायर और इंजन तक बेहद खराब हालत में पाए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि फिटनेस न होने वाले वाहन सडक़ पर चलना ही नहीं चाहिए, क्योंकि वे किसी भी पल हादसे का कारण बन सकते हैं।
स्कूल संचालकों को चेताया है
निजी स्कूल संचालकों को बाल वाहिनियों का संचालन नियमानुसार करने के लिए पाबंद किया गया है। जिसमें मुख्य रूप से पीला रंग, जीपीएस सिस्टम, स्पीड गवर्नर, फिटनेस आदि को लेकर सख्त निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ दुपहिया वाहन लेकर आने वाले कम उम्र के बच्चों को रोकने के लिए अभिभावकों से समझाइश करने को कहा है। हमने रिपेार्ट जिला परिवहन अधिकारी को सौंप दी है, नियमों की पालना नहीं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
- ब्रजकिशोर शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी, नागौर
Updated on:
26 Nov 2025 11:21 am
Published on:
26 Nov 2025 11:20 am
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