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बांस शिल्पकारों को नहीं मिला स्थायी बाजार

बांस शिल्पकारों को नहीं मिला स्थायी बाजार, सडक़ किनारे दुकानें सजाने को मजबूर हुनरमंद हाथ कैंपस में बंद पड़ा बंसी एम्पोरियम

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Bamboo craftsmen

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Bamboo craftsmenजिले के बांस शिल्पकार अपनी पीढ़ी.दर.पीढ़ी चली आ रही कला को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटे हैं। टोकरियों, सूप, दरी, घरेलू सामान से लेकर आकर्षक सजावटी आइटम तक बनाने वाले ये पारंपरिक कारीगर आज भी उचित बाजार के इंतजार में हैं। मजबूरी यह कि साप्ताहिक हाट-बाजारों में सडक़ किनारे बैठकर ही इन्हें अपना सामान बेचना पड़ रहा है,न छांव, न सुरक्षा, न ही ग्राहकों तक पहुंचने का व्यवस्थित मंच।
इधर दूसरी बांस के इन्ही शिल्पियों को उचित मंच प्रदान करने के लिए फ ॉरेस्ट कैंपस में लाखों रुपए की लागत से बनाया गया बंसी एम्पोरियम अपनी शुरूआत के बाद से ही सालों से बंद पड़ा है। कारीगरों का कहना है कि भवन बनकर तैयार हुए कई साल बीत चुके हैं लेकिन उसका ताला अब तक नहीं खुला। न किसी आंवटन की प्रक्रिया हुई, न ही शिल्पकारों को इसके उपयोग की जानकारी दी गई।

कैंपस में बंद पड़ा बंसी एम्पोरियम

शहर के राजीव वार्ड में रहने वाले वंशकारो ने कहा अगर हमें एक स्थायी जगह मिल जाए तो न सिर्फ हमारा कारोबार बढ़ेगा बल्कि हमारी कला को भी पहचान मिलेगी। लेकिन यह एम्पोरियम तो हमारे लिए दूर का सपना बनकर रह गया है। स्थानीय कला और आजीविका के संरक्षण के लिए अब जरूरी है कि वन विभाग और प्रशासन तेजी दिखाए। यदि बंसी एम्पोरियम शुरू हो जाए और शिल्पकारों को वहां जगह मिले, तो जिले का बांस शिल्प प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना सकता हैऔर हुनरमंद हाथों की मेहनत सडक़ किनारे धूल फ ांकने को मजबूर नहीं रहेगी।

इधर दूसरी बांस के इन्ही शिल्पियों को उचित मंच प्रदान करने के लिए फ ॉरेस्ट कैंपस में लाखों रुपए की लागत से बनाया गया बंसी एम्पोरियम अपनी शुरूआत के बाद से ही सालों से बंद पड़ा है। कारीगरों का कहना है कि भवन बनकर तैयार हुए कई साल बीत चुके हैं लेकिन उसका ताला अब तक नहीं खुला। न किसी आंवटन की प्रक्रिया हुई, न ही शिल्पकारों को इसके उपयोग की जानकारी दी गई।


शहर के राजीव वार्ड में रहने वाले वंशकारो ने कहा अगर हमें एक स्थायी जगह मिल जाए तो न सिर्फ हमारा कारोबार बढ़ेगा बल्कि हमारी कला को भी पहचान मिलेगी। लेकिन यह एम्पोरियम तो हमारे लिए दूर का सपना बनकर रह गया है। स्थानीय कला और आजीविका के संरक्षण के लिए अब जरूरी है कि वन विभाग और प्रशासन तेजी दिखाए। यदि बंसी एम्पोरियम शुरू हो जाए और शिल्पकारों को वहां जगह मिले, तो जिले का बांस शिल्प प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना सकता हैऔर हुनरमंद हाथों की मेहनत सडक़ किनारे धूल फ ांकने को मजबूर नहीं रहेगी।
वर्जन
बांस से सामग्री का निर्माण करना हमारा परंपरागत व्यवसाय है। लेकिन हमें इसकी खरीद फरोख्त के लिए उचित स्थान नहीं मिलने से घर पर ही सामग्री तैयार करते हैं और यहीं से बेचते हैं। अगर बाजार में बेचना हो तो इतवारा बाजार में रोड के किनारे दुकान लगाना पड़ती है।
प्रकाश वंशकार राजीव वार्ड निवासी


वर्जन
बांस से सामग्री का निर्माण करना हमारा परंपरागत व्यवसाय है। लेकिन हमें इसकी खरीद फरोख्त के लिए उचित स्थान नहीं मिलने से घर पर ही सामग्री तैयार करते हैं और यहीं से बेचते हैं। अगर बाजार में बेचना हो तो इतवारा बाजार में रोड के किनारे दुकान लगाना पड़ती है।
प्रकाश वंशकार राजीव वार्ड निवासी
वर्जन
हम पीढिय़ों से यह कारोबार करते आ रहे हैं,लेकिन हमें अभी तक स्थायी बाजार नहीं मिल सका है। जबकि शासन ने सभी वर्गो के लिए व्यवस्थाएं की है। यहां का बांस एम्पोरियम भी बंद है,यदि यही खुल जाए और यहां ठिकाना मिल जाए,तो हमारे धंधे को दिशा मिल जाएगी।
सुनील वंशकार भटिया टोला निवासी

फैक्ट फ ाइल-
जिले में वंशकारों की संख्या-1000 परिवार
प्रमुख उत्पाद- बांस की टोकनियां, सूप, टोकरी,डोली, फ ल.सब्जी रखने की डलिया,चटाई

चुनौतियां-
स्थायी मार्केट का अभाव
सडक़ किनारे असुरक्षित और असुविधाजनक बिक्री
उत्पादों की उचित कीमत न मिलना
सरकारी योजनाओं की जानकारी व पहुंच कम

संभावनाएं-
बांस उत्पादों की बढ़ती बाजार मांग
उत्पादों की तेजी से लोकप्रियता
कौशल आधारित पर्यटन, बढ़ावा मिलने की संभावना

समाधान
बंसी एम्पोरियम का तत्काल संचालन
शिल्पकारों के लिए प्रशिक्षण व डिज़ाइन अपग्रेड
ऑनलाइन मार्केटिंग और ई.कॉमर्स प्लेटफ ॉर्म से जोडऩा